रांचीः साइमन मरांडी दो बार राजमहल क्षेत्र के सांसद और पांच बार विधायक चुने गए. वह झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे. इनके व्यवहार और अपनापन के कारण क्षेत्र के लोग इन्हें दादा के नाम से ज्यादा पुकारते थे. इन्होंने पाकुड, साहिबगंज, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा देवघर यानी पूरे संताल परगना में झारखंड मुक्ति मोर्चा की जमीन मजबूत करने, नए लोगों को पार्टी में लाकर संगठन को मजबूत करने में अपनी सूझबूझ दिखाते हुए पूरी ताकत लगाई थी. जिसका लाभ भी पार्टी को मिला. गुरु जी (शिबू सोरेन) को संताल की जमीन में दिशोम गुरु बनाने वालों में एक नाम साइमन मरांडी तो दूसरा नाम सूरज मंडल का आता है.
कोलकाता के अस्पताल में ली आखिरी सांस
आज सुबह कोलकाता से स्वर्गीय साइमन मरांडी का पार्थिव शरीर पाकुड़ जिला स्थित उनके हिरणपुर आवास के लिए निकल चुका है. परिजनों ने बताया कि 14 अप्रैल यानी बुधवार को लिटीपाड़ा प्रखंड के ताल पहाड़ी डुमरिया स्थित उनके पैतृक आवास के निकट उन्हें दफनाया जाएगा.
1977 में पहली बार निर्दलीय चुनाव जीते, जेएमएम गठन में निभाया अहम रोल
साइमन मरांडी ने छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत की थी. साइमन ने पहली बार 1977 में बतौर निर्दलीय मरांग मुर्मू को 149 मतों से हराकर लिट्टीपाड़ा का नेतृत्व किया था. बाद में उन्होंने शिबू सोरेन के साथ मिलकर जेएमएम का गठन किया. साइमन मरांडी ने पांच बार यहां से लगातार जीत हासिल की. 1989 में लोकसभा चले जाने के कारण साइमन ने यह सीट अपनी पत्नी सुशीला हांसदा को सौंप दी. वर्तमान में इस लिट्टीपाड़ा सीट से उनके पुत्र दिनेश विलियम मरांडी विधायक हैं.
पनी पत्नी को भी चार बार विधायक बनाया,
साइमन मरांडी पांच बार 1977, 1980, 1985, 2009, में 2017 विधायक रहे हैं. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम से बगावत कर बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़े, परंतु हार गए. बाद में वे जेएमएम में वापस लौट आए और उपचुनाव में साल 2017 में वे फिर से विधायक निर्वाचित हुए. 2019 के चुनाव में अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने अपने पुत्र दिनेश विलियम्स मरांडी को चुनाव लड़ाया और वह विजयी रहे. इससे पहले वे जेएमएम के टिकट पर राजमहल सीट से 1989 और 1991 में सांसद रह चुके हैं. हेमंत सोरेन की सरकार में साल 2013 में मंत्री भी बनाए गए थे. वहीं साइमन मरांडी की पत्नी सुशीला हांसदा भी 1990 से 2009 तक लिट्टीपाड़ा से लगातार चार बार विधायक रही.