बीएनएन डेस्क :13 अप्रैल 1919 का दिन भारतीय इतिहास में बेहद अहम है. आज ही के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था. इस हत्याकांड को आज 102 साल हो गए हैं. ब्रिटिश सरकार ने इस नरसंहार के 100 साल बाद गहरा अफसोस व्यक्त किया था. मगर इस क्रूर घटना के जख्म इतने गहरे हैं कि जलियांवाला बाग की प्राचीर में आज भी मौजूद हैं. आज हम आपको उस जगह की तस्वीरें दिखाएंगे जहां उस भयावह मंजर के निशान आज भी मौजूद हैं और सोचने पर सिहरन पैदा कर देते हैं…
पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की मांग जोरों पर थी. पंजाब के अमृतसर जिले के जलियांवाला बाग में भी एक सभा बुलाई गई थी. इस दौरान क्रूर अंग्रेज सिपाहियों ने जनरल डायर के आदेश पर इन क्रांतिकारियों पर गोली की बौछार कर दी. लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला. लगभग 1000 लोगों ने इस नरसंहार में अपने प्राणों की आहुति दी थी. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
इसका हो रहा था विरोध
दरअसल, जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का सभा आयोजित कर लोग विरोध कर रहे थे. शहर में कर्फ्यू लगा था. वहीं इस सभा में कुछ नेता भाषण देने वाले थे. कर्फ्यू के बीच हजारों की संख्या में लोग सभा स्थल पहुंच गए. इनमें वह लोग भी शामिल थे जो बैसाखी पर्व पर परिवार के साथ मेला देखने आए थे. लेकिन जानकारी मिलने पर जलियांवाला बाग पहुंच गए थे.
कहा जाता है कि जलियांवाला बाग में लोगों की संख्या का अंदाजा होते ही ब्रिटिश हुकूमत बौखला गई थी. यहां लगभग पांच हजार लोग मौजूद थे. ब्रितानिया हुकूमत इस घटना को 1857 की क्रांति की पुनरावृत्ति मान रही थी. इसे कुचलने के लिए ही क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं. बाग में जब नेता भाषण दे रहे थे तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां आ धमका. ब्रिटिश सैनिकों के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं. सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दीं. 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं. जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था. वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे. भागने का कोई रास्ता नहीं था.
ऐसे में कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया. अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है. ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है. अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1000 से अधिक लोग शहीद हुए और 2000 से अधिक घायल हुए.