1303 ई. किले वालों ने अलाउद्दीन के डेरों पर जाकर कई बार बातचीत कर रावल रतनसिंह को छुड़ाने की कोशिश की पर हर बार अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी के बदले रावल को छोड़ने की बात कही।
इतिहास में कुछ एेसे योद्धा भी हुए जिनके नाम हमेशा साथ-साथ ही लिए जाते हैं, जैसे :- जयमल-पत्ता, जैता-कूम्पा, सातल-सोम।
इसी तरह रानी पद्मिनी के समय गोरा-बादल नाम के योद्धा थे
गोरा-बादल ने चित्तौड़ के सभी सर्दारों से सलाह-मशवरा किया कि किस तरह रावल रतनसिंह को छुड़ाया जावे।
आखिरकार गोरा-बादल ने एक योजना बनाई
अलाउद्दीन को एक खत लिखा गया कि,रानी पद्मिनी एक बार रावल रतनसिंह से मिलना चाहती हैं इसलिए वह अपनी सैकड़ों दासियों के साथ आयेंगी।
अलाउद्दीन इस प्रस्ताव से बड़ा खुश हुआ
कुल 800 डोलियाँ तैयार की गईं और इनमें से हर एक के लिए 16-16 राजपूत कहारों के भेष में मुकर्रर किए।
(बड़ी डोलियों के लिए 4 की बजाय 16 कहारों की जरुरत पड़ती थी)
इस तरह हजारों राजपूतों ने डोलियों में हथियार वगैरह भरकर अलाउद्दीन के डेरों की तरफ प्रस्थान किया गोरा-बादल भी इनके साथ हो लिए।
(कवि लोग खयाली बातें लिखते हैं कि इन डोलियों में सच में दासियाँ और रानी पद्मिनी थीं तो कुछ कवि लोगों के मुताबिक रानी पद्मिनी की जगह उनकी कोई सहेली थी हालांकि ये बातें समझ से परे हैं)
गोरा-बादल कई राजपूतों समेत सबसे पहले रावल रतनसिंह के पास पहुंचे
जनाना बन्दोबस्त देखकर शाही मुलाज़िम पीछे हट गए
गोरा-बादल ने फौरन रावल रतनसिंह को घोड़े पर बिठाकर दुर्ग के लिए रवाना किया
अलाउद्दीन ने हमले का अादेश दिया
सुल्तान के हजारों लोग कत्ल हुए
गोरा-बादल भी कईं राजपूतों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए
फरवरी, 1303 ई.
अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी फौज को तन्दुरुस्त कर चित्तौड़ के किले पर हमला किया
इस समय अमीर खुसरो भी अलाउद्दीन के साथ था
रानी पद्मिनी के नेतृत्व में चित्तौड़ के इतिहास का पहला जौहर हुआ अपने सतीत्व की रक्षा के लिए 376 या 1600 क्षत्राणियों ने जौहर किया।
18 अगस्त, 1303 ई.
6 महीने व 7 दिन की लड़ाई के बाद रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग फतह कर कत्लेआम का हुक्म दिया जिससे मेवाड़ के हजारों नागरिकों को अपने प्राण गंवाने पड़े।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग अपने बेटे खिज्र खां को सौंप दिया व चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा।
रावल रतनसिंह ने पहले ही अपने भाई-बेटों को ये कहकर दुर्ग से बाहर निकाल दिया था कि यदि हम लोग मारे जावें तो आप सब फिर से किले पर अधिकार कर लें।
(रावल रतनसिंह व रानी पद्मिनी का प्रकरण समाप्त)