घृतकुमारी/ ग्वारपाठा/ एलोवेरा ( Scientific Name Aloe barbadensis )
प्रचलित नाम– ग्वारपाठा
प्रयोज्य अंग-पंचांग, शुष्करस स एवं पत्रों का गूदा।
स्वरूप-लघु गुल्म, पत्ते मूल पत्री तथा मांसल, पुष्प लम्बे पुष्प दंड पर गुलाबी या लाल रंग के होते हैं।.
स्वाद – तिक्त ।
रासायनिक संगठन-इसके पत्रों में कार्बोदित, टैनिन्स प्रोटीन्स, क्रोमोन्स (एवेसिन एवं एलोसॉन) मैलिक अ अम्ल, सिट्रिक अम्ल, टारटेरिक अम्ल। इसके पत्रों के गुदे में एसिटीलेटेड ग्लुकोमनान्स, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम तथा मैग्नेशियम घटक पाये जाते
गुण– अतिरेचक, वातघ्न, पाचन, बल्य, शोथहर, वेदनाहर
उपयोग–
पत्रों के गूदे का उपयोग अर्श में, गुदा विदर, कास, प्रतिश्याय, आमवात, विबंध में, ज्वर, शूल, आर्त्तवदोष में होता है ।
यह औषधि दीपन, कृमिघ्न, यकृत रोग निवारक, गर्भाशय उत्तेजक तथा दाबहासी गुणवाली है।
घृतकुमारी का रस सैन्धव एवं हरिद्रा के साथ प्रयोग से विबंध, गुल्म, पाण्डु, पाचन विकार तथा यकृत प्लीहा रोगों में लाभदायक हैं।
इसके रस का प्रयोग अनार्त्तव (स्त्रियों के विकार) में लाभकारी। इसके रस का बाह्यलेप स्तनशोथ, चर्मविकारं, नेत्राभिष्यंद, अर्श एवं व्रण में लाभकारी। सूत्र कृमियों में लाभकारी।
ज्वर में (विषम ज्वरं-मलेरिया) – घृत कुमारी का रस एक चम्मच में चार दाने काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन कराना चाहिए।
जीर्ण ज्वर में-घृतकुमारी के एक चम्मच रंस में दो ग्राम हरड़ का चूर्ण मिलाकर प्रातः एवं सायं सेवन कराना चाहिये।
कामला में-घृतकुमारी के दो तोला रस में इतना ही मूली का रस मिलाकर या एक चुटकी लींडी पीपर का चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिये ।
रक्तगुल्म में-महिलाओं को होने वाले रक्तगुल्म का उदर में हुई गांठ में घृतकुमारी का गर्म रस पुराने गुड़ में मिलाकर प्रतिदिन दो बाद खिलाना चाहिये।
उदर रोगों में जलोदर, यकृतोदर, प्लीहोदर रोगों में दो से चार चम्मच घृतकुमारी का रस दुगुने गोमूत्र में मिलाकर पिलाने से उपर्युक्त रोगों में लाभ होता है।
टॉन्सिल में . इसके रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर एक एक चम्मच प्रतिदिन तीन बार सेवन कराने से टॉन्सिल में लाभ होता है। इससे खाँसी में भी लाभ होता है।
जुकाम (प्रतिश्याय) में-इसके रस में हल्दी, अजवायन का चूर्ण या अदरख का रस मिलाकर रस चटाने से लाभ होता है।
गण्ड में-घृतकुमारी के गर्भ से हल्दी का चूर्ण मिलाकर पुल्टिश बांधनी चाहिये। इससे सूजन में भी लाभ होता है।
नेत्र रोग में इसके गर्भ में हल्दी का चूर्ण मिलाकर नेत्रों पर पट्टी बाँधने से आँखों की लाली नष्ट होती है।
विस्फोटक में – घृतकुमारी के गर्भ का लेप करना चाहिए एवं सेवन कराना चाहिए।
दुष्टव्रण में – व्रण में कीड़े पड़े हों या दुर्गन्ध आती हो तो घृतकुमारी के मूल गोमूत्र में घिसकर व्रण पर लगाना चाहिए।
चर्म रोगों में (खाज-खुजली – दद्रु) – इसके रस का लेप करना चाहिए तथा गाय के मूत्र में मिलाकर पिलाना चाहिए।
रक्तपित्त में इसके रस में अडूसा, गिलोय या आँवला का रस मिलाकर सेवन कराना चाहिए, प्रतिदिन दो या तीन बार ।
मात्रा-पत्र स्वरस-10-20 मि.ली. । एलुवा- 0.2-0.3 ग्राम ।
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श्रोत एवं साभार: ब्रह्मवर्चस विश्वविद्यालय के उद्यान एवं जड़ीबूटी विभाग द्वारा रचित किताब “आयुर्वेद का प्राण वनौषधि विज्ञान“