बेल / बिल्व में हैं कई औषधीय गुण : वनौषधि – 7
पसीने से शरीर में आने वाली दुर्गन्ध में बिल्व पत्रों के स्वरस को पूरे शरीर पर लगाने से दुर्गन्ध दूर होती है ।
प्रचलित नाम- बेल / बिल्व (वैज्ञानिक नाम – Aegle marmelos)
प्रयोज्य अंग-मूल, छाल, पत्र, पके-कच्चे फल, पुष्प ।
स्वरूप- बहुवर्षायु (चिरस्थायी), पतनशील, चिकना लघुवृक्ष, जिसकी शाखाओं पर लम्बे कांटे होते हैं। त्रिपर्णी संयुक्त पते, श्वेत हरिताभ पुष्प, फल बीजिमांसल ।
स्वाद- तिक्त कषाय ।
रासायनिक संगठन-इसके फल में-गोंद, पैक्टीन, प्रहासक शर्करा, शर्करा, तेल जिसमें मार्मेलोसीन, (इसमें उड़नशील तेल होता है।) इसके उपरांत अल्पमात्रा में टैनिन्स, इसके पत्रों तथा मूल में प्रह्वासक शर्करा तथा टैनिन्स, लोह, कैल्शियम, मैग्नेशियम तथा पोटैशियम पाये जाते हैं।
गुण- फल – पित्तहर, ज्वरहर, दीपन, ग्राही, कफ निःसारक, पत्र वातहर, शोथहर, ज्वरघ्न, ग्राही ।
उपयोग में- अतिसार, प्रवाहिका, मधुमेह, कर्णरोग, कामला, अर्श, शोथ तथा वमन में । इसके फल का शरबत जीर्ण विबंध, अर्श, आध्मान एवं कुपचन में लाभकारी।
(प्रतिदिन प्रातः) । मूल की छाल का क्वाथ विषम ज्वर में लाभकारी।
ताजे पत्रों का स्वरस ज्वर, कफ ज्वर, कफ विकारों तथा शोथ में लाभकारी।
मधुमेह में ताजे पत्रों का स्वरस १-२ तोला, इसके उपरांत कामला तथा विबंध में भी लाभकारी।
प्रवाहिका में इसके फल की मज्जा एवं तिल समान भाग लेकर दोनों का कल्क बना लें, दही की मलाई या घी के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है ।
रक्तातिसार एवं पित्तातिसार में कच्चे फल की मज्जा के चूर्ण में यष्टिमधु, मधु तथा मिश्री मिलाकर तण्डुलोदक में डालकर सेवन कराना चाहिये।
पसीने से शरीर में आने वाली दुर्गन्ध में बिल्व पत्रों के स्वरस को पूरे शरीर पर लगाने से दुर्गन्ध दूर होती है ।
संग्रहणी में कच्चे फल की मज्जा का चूर्ण तथा सोंठ दोनों समभाग लेकर तक्र से पी जाये तथा भोजन न कर केवल तक्र का सेवन करे।
छर्दि में बिल्व मूल क्वाथ में मधु मिलाकर सेवन करने से तीनों प्रकार की छर्दि का शमन होता है ।
रक्तार्श में इसके फल के गूदे का सेवन तक्र के साथ कराना चाहिये।
शोथ में-इसके पत्रों का स्वरस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन से सर्व प्रकार के शोथ, कामला, अर्श में होने वाले विबंध रोगों में लाभ होता है ।
बधिरता- बिल्व को गोमूत्र में पीसकर तेल में गर्म कर सिद्ध करें, इस तेल को कान में डालने से बधिरता दूर होती है।
आम शूल में इसके अपरिपक्व फल की मज्जा का चूर्ण गुड़ मिलाकर सेवन कराना चाहिये।
विषम ज्वर में बिल्व वृक्ष पर उत्पन्न बन्दाक स्वरस तक्र या घृत के साथ सेवन कराना चाहिये।
अपक्व बिल्व मज्जा को तेल में एक सप्ताह तक रखने के बाद स्नान करने से पूर्व इस तेल की मालिश करने से शरीर तथा पैर के तलुओं का दाह ठीक होता है।
इसके पत्ते बिना पानी डाले, बारीक पीसकर कल्क बनायें, इस कल्क का प्रयोग दूषित व्रणों पर करने से व्रण ठीक हो जाते हैं।
मात्रा– छाल तथा मज्जा का चूर्ण- 3 से 6 ग्राम
(नित्य तीन बार) । स्वरस- 10 से 20 मि.ली. ।
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औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
Aegle marmelos
ENGLISH NAME:- Bengal Quince. Hindi-Bel
PARTS-USED:- Roots, Bark, Leaves, Ripe-Unripe Fruit, Flowers.
DESCRIPTION:- Medium deciduous glabrous tree with long spines on the branches. leaves or trifoliate compound, Flowers greenish white, fruit large globose, rind hard, ripe
after one year pulp, sweet, edible.
TASTE:-Bitter-Astringent.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Fruit contanis: Gum, Pectins, Reducing Sugars, Sugars, Oil, Which contains Marmelosin (This Contains Voiletileoil) small amount of Tannin; Leaves & Root contains: Reducing Sugars, Tannins, Iron, Calcium, Magnessium,
Potassium.
ACTIONS:-Antibilious, Febrifuge, Stomachic, Astringent, Expectorant (Fruits); Leaves:
Carminative, Anti-inflammatory, Antipyretic, Astringent. USED-IN-Diarrhoea, Dysentery, Diabetes, Eardisease, Jaundice, Piles, Inflammation,
Vomiting.