बबूल इसे कीकर भी कहते हैं। यह मूलतः अफ्रीका एवं भारत में पाया जाने वाला वृक्ष है। इस पेड़ में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। भारत में औषधि के रूप में एवं दातुन करने में बाबुल का खूब इस्तेमाल किया जाता रहा है।
कान्तिवान संतान के लिये बबूल के सूखे पत्रों प्रयोग।
अति मैथुन के कारण या गरमी के कारण वीर्य पतला होने पर बबूल के गोंद का प्रयोग।
प्रचलित नाम- कीकर (बबूल)
वैज्ञानिक नाम – Acacia arebica
प्रयोज्य अंग-कांड, पत्र, फल, कांड की छाल एवं गोंद ।
स्वरूप- मध्यम कद का कंटकीय वृक्ष, मुख्य तना छोटे कद का, पत्र संयुक्त, चमकीले पीले पुष्प गोलमुंडक में।
स्वाद- कटु कषाय ।
रासायनिक संगठन-इसकी छाल में बीटा ऐमीरीन, गैलीक अम्ल, टैनिन, कैटेचीन, क्वेरसेटिन, ल्युकोसायनीडीन । फल में-गैलिक अम्ल, कैटेचीन, क्लोरोजैनिक अम्ल । गोंद में- गैलेक्टोज़, एरेबीक अम्ल, कैल्सियम एवं मैग्नेशियम के लवण, इसके बीज में ऐस्कोरबीक अम्ल, नियासिन, थायमीन एवं एमिनो अम्ल पाये जाते हैं।
गुण-ग्राही, कृमिघ्न, विषहर, शोथहर, कुष्ठघ्न ।
उपयोग- चर्मरोग में, रक्त प्रवाहिका, रक्तस्त्रावी रोग में, प्रमेह, श्वेत प्रदर में, अस्थिभग्न,रक्तस्तंभक, व्रणरोपण, शुष्ककास ।
गोंद पौष्टिक, मुख के छाले, गले के सूखने में इसको चूसने से लाभ, मूत्रकृच्छ्र, अतिसार में तथा मधुमेह में इसका सेवन लाभकारी।
छाल का क्वाथ-मुख रोग, दाँत हिलना तथा गले की सूजन में लाभ ।
अतिसार में – इसकी पत्तियों का स्वरस छाशं में मिलाकर पिलाने से हर प्रकार के अतिसार में लाभ होता है। इसकी दो फलियाँ खाकर ऊपर से छाछ पीनी चाहिए।
प्रवाहिका में- इसकी कोमल पत्तियों के एक चम्मच रस में थोड़ा-सा हरड़ का चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए तथा ऊपर से छाछ पिलानी चाहिए।
अत्यार्त्तव में- इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पिलाने से मासिक में अधिक रक्त बहना बंद होता है।
दाह एवं तृषा में इसकी छाल के काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए।
अरुचि में इसकी कोमल फलियों के आचार में सैन्धव लवण मिलाकर खिलाने से रुचि बढ़ती तथा जठराग्नि प्रदीप्त होती है । है
मुख रोग-दंत रोग-इसकी छाल को जल में उबालकर इस जल से कुल्ला करना चाहिए। या इसका दातून या गोंद मुँह में चबाने से उपर्युक्त रोगों में लाभ होता है।
टॉन्सिल में छाल के काढ़े से या पत्रों के रस से कुल्ला करना चाहिए। कोमल टहनी या पत्रों के रस में हल्दी मिलाकर तीन या चार दिन तक पिलाना चाहिए।
रक्तस्राव में- शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव होता हो, तो उस पर पत्रों का रस (पीसकर) लगाना चाहिए या सूखे पत्रों या सूखी छाल का चूर्ण उस पर छिड़क देना चाहिए।
पित्तजकास में- गरमी की खाँसी में इसके पत्रों को चबाकर इस रस को कुंठ में उतारना चाहिए तथा इसकी गोंद को चूसना चाहिए। यह प्रयोग स्वर भेद के लिये भी उपयोगी है।
अस्थिभग्न में इसके बीजों का चूर्ण मधु में मिलाकर चटाने से बहुत ही लाभ होता है।
जलोदर में इसकी छाल के क्वाथ को घन स्वरूप बनाकर इसकी आधे ग्राथ की गोली बनाकर एक-एक गोली प्रातः, सायं, रात्रि समय मधु के साथ या छाछ के साथ सेवन करानी चाहिए ।
कान्तिवान संतान के लिये सूखे पत्रों का चूर्ण दो से चार ग्राम गर्भवती महिला को प्रतिदिन प्रातः सेवन कराने से .सुंदर बालक का जन्म होगा।
धातु पुष्टि में अति मैथुन के कारण या गरमी के कारण वीर्य पतला हुआ हो या प्रमाण कम हुआ हो, तो इसके गोंद को घी में तल कर दुगुनी शर्करा मिलाकर सेवन कराना चाहिए।
मात्रा- छाल का क्वाथ-50-100 मि.ली. । फल का चूर्ण-3-6 ग्राम। गोंद – 3-6 ग्राम ।
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औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
ENGLISH NAME:-Indian Gum tree.
Acacia arebica (L.) Del SSP indica Brenen Syn: Acacia arubica Lumk (Mimosaceae)
Hindi-Babul
PARTS-USED:- Stem, Leaves, Fruits, Stembark, Gum, Seeds.
DESCRIPTION:- A medium sized, spiny tree with short trunk, spines straight and sharp, in pairs, shipular leaves compound, pinnae 6-12 pinnules 20-40; flowers bright, yellow, in heads, axillary.
TASTE: Acrid.
CHEMICAL CONSTITUENTS – Bark contains: Beta-amyrin, Gallic acid, Tannins, Catechin, Quercetin, Leucocyanidin; Fruits Contain: Gallic acid, Catechin, Chlorogenic acid, Gum contains: Galactose, Arabic acid, Calcium & Magnesium. Seeds Contain: Ascorbicacid, Niacin Thiamine, Aminoacids.
ACTIONS:- Astringent, Anthelmintic, Antidotal, Anti-inflammatory, Anti leprotic, emolient demulcent
USED-IN- Skin deseases, Blood dysentery, Hemorrhagic diseases, polyuria, Leucorrhoea, Fracture, Styptic, Wound healing, Drycough, gargle, stomatis.