शहनाई के स्वर, जयकारे के शोर, आरती और पुष्प वृष्टि के कारणों से बिल्कुल नावाकिफ शृंगी तो बस नगर की शोभा और नर-नारियों के शृंगार देखने में व्यस्त थे। एक रंग-बिरंगी दुनिया में खो जाने के चलते आश्रम की यादें मानस पटल से सरक कर दूर जा चुकी थीं। अब वहां एक-एक कर जगह बना रही थी कुंवारी अनुभूतियां, जो सुंदर और जवान थीं, चंचल और शोख थीं, सौन्दर्य और खुशबू से लबरेज थीं।
लेकिन इसी के साथ उस मूसलाधार वृष्टि के बीच दो घटनाएं एक साथ आकार ले रही थीं। इधर मालिनी के राज दरबार में शृंगी का शाही सत्कार किया जा रहा था और उधर सूने आश्रम में ऋषि विभांडक गुस्से की आग में जल रहे थे। शृंगी को आश्रम में अनुपस्थित देख उन्हें ‘यह समझते देर नहीं लगी कि यह काम उसी ‘युवक’ का है, जिसके बारे में शृंगी ने उन्हें सब कुछ बता दिया था। गुस्से से वह बिफर उठे और उस अज्ञात युवक को सजा देने को मचल उठे । मगर मौसम का मिजाज उन्हें आश्रम छोड़ने से मना कर रहा था। देखते-ही-देखते बारिश तेज हो गयी। गुस्से से वह बार-बार हाथ मल रहे थे। शृंगी की तलाश में निकलने की कोई पतली सी संभावना भी न देख वर्षा थमने तक क्रोध को पीने की कोशिश करने लगे। दूसरी तरफ उस मूसलाधार वृष्टि में मालिनी का दरका भूगोल कुछ इस कदर जलप्लावित हो गया मानो अकाल यहां कभी पड़ा ही न हो। इधर राजमहल में शृंगी के सम्मान और स्वागत के बीच राजा रोमपाद ने ऋषि विभांडक के स्वागत की एक विशेष योजना बनायी, जिससे समस्त मालिनीवासियों को तत्क्षण अवगत करा दिया गया। क्योंकि वह जानते थे कि वर्षा थ्रमते ही ऋषि विभांडक वहां जरूर आ पहुंचेंगे, जिनकी क्रोधाग्नि मालिनी को जलाकर राख कर देगी।
शाही फरमान के हिसाब से मालिनीवासियों ने उस संभावित परिस्थिति से जूझने की तैयारी कर ली । कई दिनों के बाद जब वर्षा थमी तो विभांडक, शृंगी और उनके अपहरणकर्ता की तलाश में निकल पड़े। उन्होंने सबसे पहले अपना रुख मालिनी राज्य की ओर ही किया। कहते हैं जैसे ही विभांडक ने मालिनी की सीमा में प्रवेश किया, पूर्व से प्रतीक्षारत मालिनीवासियों ने उन पर पुष्प वृष्टि की और जयकारे लगाकर उनका पुरजोर स्वागत-सत्कार किया। उस स्वागत के कारण से अपरिचित विभांडक ने जिस किसी से राज्य के बारे में पूछा, हरेक ने बस इतना ही कहा-ऋषि शृंगी का । विभांडक इस माजरे को तो नहीं समझ पाये, लेकिन इतना जरूर समझ गये कि आश्रम से शृंगी को लाने वाला युवक उसे लेकर यहीं आया है।
बहरहाल, अपना वही सवाल दुहराते हुए और लगभग वही जवाब बटोरते हुए। विभांडक मालिनी के राज दरबार तक जा पहुंचे। वहां भी हजारों नर-नारी पुष्प और आरती की थाल लिए स्वागत को तैयार खड़े थे। नतीजा यह हुआ कि राजभवन तक पहुंचते-पहुंचते उनका गुस्सा खत्म हो गया। लेकिन नजरें अभी भी शृंगी को ही तलाश रही थी।
क्रमशः…