अतीस वनौषधि हिमालय पर 2000 से 5000 फुट की ऊंचाई पर पाया जाने वाला पौधा है। इसका ज्ञान हमारे आचार्यों को अत्यन्त प्राचीनकाल से था। प्राय: समस्त रोग को दूर करने वाली होने से यह विश्वा या अतिविश्वा के नाम से वेदों में उल्लेखित है।
यजुर्वेद अ. 12 मत्र 84 अतिविश्वा परिष्ठास्तेन‘ इत्यादि जो ऋचा है, उसमें अतिविश्वा‘ शब्द अतीस के लिए लिया गया है।
चरक संहिता के लेखनीय, अर्शोघ्न इत्यादि प्रकरणों में तथा आमातिसार के प्रयोगों में इसका उल्लेख पाया जाता है।
सुश्रुत के शिरोविरेचन अध्याय तथा वचादि, पिप्पल्यादि व मुस्तादिगण में भी इसका उल्लेख है।
प्रचलित नाम- अतीस, अतिविषा।
वैज्ञानिक नाम – Aconitum heterophyllum
प्रयोज्य अंग- मूल कंद (नवीन सफेद कंद 1 इंच लम्बा तथा 1/2 इंच मोटा) बिना कीड़ा लगा।
स्वरूप- एक छोटा क्षुप जो लगभग 3 से 4 फीट ऊँचा होता है। इसका काण्ड गोल जिस पर दो तरह के पत्ते होते हैं। कंद मूल के पास के पत्ते पंचपत्री एवं गोल जबकि कांड के अग्र की ओर के पत्ते छोटे एवं दन्तुर, पुष्प नीले या हरित नीलवर्णी होते हैं।
स्वाद-तिक्त
रासायनिक संगठन- इसके कंद में वसा, एकोनाइटिक अम्ल, टैनिक अम्ल, क्षारभ (अतिसिन विषैला नहीं), पामीटिक (अतिसिन-विषैला अम्ल, स्टीयरीक ग्लीसराइड्स, गोंद, शर्करा पाये जाते हैं ।
गुण-दीपन, ग्राही, कृमिघ्न, वमनशामक, तृषा शामक, तीक्ष्ण, त्रिदोष शामक, उष्ण, वीर्य, तिक्त पौष्टिक, पाचन ।
इस बूटी की विशेषता यह है कि यह विष वर्ग वत्सनाभ कुल की होने पर भी विषैली नहीं है। इसके ताजे पौधों का जहरीला अंश केवल छोटे जीव जन्तुओं के लिए प्राणघातक है। यह विषैला प्रभाव भी इसके सूख जाने पर ज्यादातर उड़ जाता है। छोटे-छोटे बालकों को भी दिया जा सकता है। परन्तु इसमें एक दोष है कि उसमें दो महीने बाद ही घुन लग जाता है।
उपयोग-
इसके कंद का प्रयोग सभी प्रकार के ज्वरों में, खाँसी, यकृत रोगों, कृमिरोग, अर्श, प्रतिश्याय, अतिसार, विषघ्न, वमन में, बल्य, विषम ज्वर में, कुपचन, शोथ में, शूल में इसका प्रयोग लाभकारी है।
छोटे बच्चों के रोगों में यह एक उत्तम औषधि है। बच्चों को खाँसी, श्वास रोग, ज्वर एवं वमन में इसके कंद का चूर्ण ऋतु, शरीर का बंधारण, उम्र एवं रोग का विचार कर योग्य मात्रा में मधु मिलाकर सेवन कराना चाहिए।
छोटे बच्चों के ज्वर तथा वमन में अतिविष एवं नागरमोथा का चूर्ण मधु में मिलाकर सेवन करना चाहिए।
पित्तातिसार में अतिविष, इंद्रयव एवं कुटकी की छाल का चूर्ण चावल के धोवन में मधु मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
श्वास रोग तथा खाँसी में अतिविष का तीन से चार माशा लेकर इसे मधु में मिलाकर रात को तीन से चार बार चाटने से श्वास रोग एवं खाँसी ठीक हो जाते हैं।
संग्रहणी सभी प्रकार के ज्वरों, अरुचि तथा अग्निमांद्यता में, अतिविष, नागर मोथा, लोध्र, पहाड़ी मूल, वाला (खस), कुटकी, एवं धव के पुष्प का क्वाथ बनाकर सेवन से ऊपर दर्शाये गये सभी रोग ठीक होकर धातु में वृद्धि होती है।
तृषा में अतिविष एवं बच का क्वाथ पिलाना चाहिए। बच्चों के आमातिसार में अतिविष, शुण्ठी एवं नागरमोथा का क्वाथ पिलाना चाहिए।
बच्चों के सभी प्रकार के अतिरिक्त में अतिविष के चूर्ण को मधु या गुड़ में मिला कर सेवन कराना चाहिए।
संग्रहणी में अतिविष, शुण्ठी एवं गिलोय का क्वाथ बनाकर पिलाने से लाभ होता है। कृमिरोग में अतिविष तथा विडंग का क्वाथ बनाकर सेवन से कृमि बाहर निकल जाते हैं।
मात्रा-चूर्ण आधा से दो माशा (अतिसार में)। चूर्ण दो से चार रत्ती (बल्य तथा पौष्टिक) ।
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औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
ENGLISH NAME:-Indian Atees.
Hindi- Atis
PARTS-USED:-Rhizome.
DESCRIPTION:- A small herb about 3 to 4 feet high; Stem cy-lindrical; leaves heterophyllus, radical leaves near the root are pentapalmate, upper cauline leaves are small and dentate. Flowers blue or greenish blue.
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Rhizome Contains:- Non poisonous Alkaloid (Atisine), Aconitic acid, Tanic acid, Fat, Oleic acid, Palmitic acid, Stearic glyceride, Gum, Sugar.
ACTIONS:-Stomachic, Astringent, Anthelmintic, Anti-emetic, Anti dyric. Digestive. USED IN:- All types fever, Cough, Liver disease, Worms infectation, Piles, Rhinitis, Diarrhoea, Antidote, Vomiting, Tonic, Malarial fever. Indigestion, Oedema, Colicpain.
‘वनस्पतियों का जीवन श्रेष्ठ है, क्योंकि इनके द्वारा सब प्राणियों को सहारा मिलता है, उनका निर्वाह होता है। जैसे किसी सज्जन पुरुष के घर से कोई याजक खाली हाथ नहीं लौटता, वैसे ही इन वृक्षों से भी सभी को कुछ न कुछ मिल ही जाता है।’
– श्रीमद्भागवत पुराण