आमेर के राजा मानसिंह व महाराणा प्रताप के मध्य हल्दीघाटी युद्ध हुआ था. यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि हल्दीघाटी में महाराणा के खिलाफ अकबर की सेना के कुंवर मानसिंह सेनापति थे, पर क्या इस युद्ध के बाद भी आमेर-मेवाड़ के मध्य घोर कटुता थी?
विभिन्न इतिहासकारों के मत पढ़ते है तो पाते हैं कि इस युद्ध के बाद दोनों राजघरानों के मध्य इतनी वैमनस्यता नहीं थी जितनी प्रचारित की जाती है!
विभिन्न इतिहासकार लिखते हैं कि राणा द्वारा हल्दीघाटी से पलायन के बाद मानसिंह ने उनका पीछा नहीं किया, मेवाड़ के कब्ज़ा किये क्षेत्र को उजाड़ा नहीं और ना ही मुग़ल सेना को लूटपाट करने दी. यही नहीं बाद के सैन्य अभियानों में अकबर को समझ आ गया कि मानसिंह की राजपूत सेना महाराणा को पकड़ने के प्रति गंभीर नहीं है, सिर्फ खानापूर्ति कर रही है, अत: उसने आमेर की सेना को मेवाड़ के अभियान से दूर कर दिया.
यही नहीं हल्दीघाटी युद्ध जीतने के बाद भी लूटपाट ना करने, मेवाड़ को ना उजाड़ने, घायल घोड़े पर पलायन करते महाराणा को ना पकड़ने पर मानसिंह का कई दिन दरबार में प्रवेश वर्जित कर उन्हें सजा दी. ज्यादातर इतिहासकार कुंवर मानसिंह व महाराणा के मध्य कटुता का कारण भोजन विवाद मानते हैं पर इतिहासकार डा. रघुवीर सिंह ने भोजन विवाद वाली कहानी पर अविश्वास व्यक्त किया हैं. उन्होंने प्रतिपादित किया है कि यह कहानी घटना के कई दशकों बाद कर्नल टॉड ने सुनी सुनाई बातों के आधार पर लिख दी, अत: स्वीकार करने योग्य नहीं है. हालाँकि इसके बाद भी इतिहासकार इस घटना को नकारते नहीं और इस घटना को सही मानते हैं कि आमेर द्वारा अकबर के साथ वैवाहिक रिश्ते से महाराणा आहत थे और इसलिए उन्होंने मानसिंह के साथ भोजन नहीं किया. खैर…..जो भी हो, दोनों ने हल्दीघाटी में आमने-सामने युद्ध किया था जो सच्चाई है|
अब बात करते हैं यदि महाराणा प्रताप अकबर के साथ वैवाहिक रिश्ते के कारण आमेर वालों को हीनता की दृष्टि से देखते थे, तो उन्होंने मानसिंह के पौत्र महासिंह की अपने ही एक भाई की पुत्री दमयंती कँवर से विवाह करने की अनुमति क्यों दी? अनुमति ही नहीं, इतिहास के जानकार बतातें है कि उक्त विवाह में कन्यादान भी स्वयं महाराणा प्रताप ने किया था. यदि अकबर के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के कारण आमेर राजपरिवार को मेवाड़ वाले पतित समझते तो महाराजा जयसिंह द्वितीय के साथ महाराणा अमरसिंह द्वितीय की पुत्री चन्द्रकँवर का विवाह कैसे और क्यों हुआ? जयपुर के महाराजा माधोसिंह जी की शादी बनेड़ा के सिसोदिया राजा सरदार सिंह की पुत्री रतन कँवर के साथ हुई. ये विवाह हुए, ये ही नहीं ये तो सिर्फ दो-तीन उदाहरण है, दोनों राजपरिवारों का इतिहास खंगाला जाय तो और भी वैवाहिक रिश्ते सामने आयेंगे जो साबित करते हैं कि मेवाड़ राजपरिवार जानता था कि अकबर के साथ भारमल की जिस कथित राजकुमारी हरखा की शादी की गई वह पासवान (उपपत्नी) पुत्री थी, जिसकी माता पारसी या पुर्तगाली थी. साथ ही हल्दीघाटी युद्ध की कटुता सामयिक थी जो थोड़े समय के अन्तराल के बाद ही धूमिल हो गयी और दोनों राजपरिवार पहले की तरह वैवाहिक रिश्तों की डोर में बंधे रहे.
यदि मानसिंह व महाराणा के मध्य घोर कटुता होती और दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे होते तो हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व दोनों सेनाएं आमने सामने थी, युद्ध की तैयारियां चल रही थी तभी एक दिन कुंवर मानसिंह महज एक हजार सैनिकों के साथ शिकार खेलते हुए महाराणा के सैन्य शिविर के पास तक पहुँच गए. गुप्तचरों की सूचना के बाद महाराणा आसानी से मानसिंह के इस छोटे से दल पर रात में आक्रमण कर उसे गिरफ्तार कर सकते थे. इस आक्रमण में मानसिंह की जान जा सकती थी. लेकिन महाराणा ने सदभाव दिखाया और मानसिंह पर हमला करने का आदेश नहीं दिया. ठीक इसी तरह घायल चेतक पर महाराणा द्वारा हल्दीघाटी से पलायन करते वक्त मानसिंह ने पीछा नहीं किया. वर्तमान धार्मिक कट्टर विचाधारा के लोग इन घटनाओं की अपने मुताबिक कैसी भी व्याख्या कर सकते हैं पर ऐतिहासिक तथ्यों पर मनन करने के बाद ये तय लगता है कि बेशक दोनों राजपरिवार आमने-सामने थे, पर दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति सदभावना थी, फिर युद्ध का कारण भी कोई आपसी मुद्दा नहीं था.
साभार – संग्राम गाथा