झारखंड को प्रकृति ने कई सौगात दिए हैं, उनमें से एक है यह कि प्राकृतिक खूबसूरती। यहां बहुत सारे पर्यटक स्थल हैं। अनेक खूबसूरत जलप्रपात हैं, पहाड़ियां और पहाड़ हैं।
लोध जलप्रपात
लोध जलप्रपात झारखंड के लातेहार जिले में पलामू प्रमंडल के अंतर्गत महुआडॉंड़ प्रखण्ड में जंगल के बीच में स्थित है। जसकी ऊँचाई 469 फीट है। यह झारखंड का सबसे ऊंचा झरना और भारत का 21 वां सबसे ऊंचा झरना है।यह बुरहा नदी पर स्थित है। बुढ़ा नदी पर अवस्थित होने के कारण इसे बुढ़ा घाघ भी कहते हैं। लोध जलप्रपात एक तीखा झरना है। लोध जलप्रपात झरने के गिरने की गड़गड़ाहट की आवाज इसे भव्य और खूबसूरत बनाती है जो 10 किमी दूर तक भी सुनाई देता है।समुद्रतल से 800 मी. की ऊँचाई पर है।यह नेतरहाट से 16 किमी की दूरी पर है। डाल्टनगंज से120 किमी,रांची से 200 किमी और नेतरहाट से 70 किमी की दूरी पर है।लोध झारखंड के सबसे के सबसे खूबसूरत जलप्रपात में से एक है। यहाँ पानी 469 फीट की ऊँचाई से गिरते है। यही कारण है कि यह सबसे ज्यादा खूबसूरत भी है। अगर आपको जलप्रपात देखने का शौख है तो आपको यहां जरूर एना चाहिए।यह पर्यटकों को अपने अवकाश का आनंद लेने के इच्छुक लोगों को प्राकृतिक रूप से आकर्षित करता है।प्राकृतिक सौंदर्य में धनी, झारखंड प्रयटकों को विविध वनस्पति और घने जंगलों के बारे में, झरने का भ्रमण आदि की सुविधा देता है।
हुंडरू जलप्रपात
हुंड्रू जलप्रपात रांची शहर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। शहर में आने वाले लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि वे शहर में रहने के दौरान रांची-पुरुलिया रोड पर स्थित स्थान पर जाएं।हुंडरू जलप्रपात रांची सुवर्णरेखा नदी के दौरान बनाई गई है, जहां 320 फीट की ऊंचाई से गिरती है यह राज्य का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात है। रांची से नजदीक होने के कारण यह झारखंड के सबसे प्रसिद्ध जलप्रपात है।हुंड्रू जलप्रपात के आधार पर, एक पूल है, जो एक स्नान स्थल और एक पिकनिक स्थान के रूप में कार्य करता है। इतनी बड़ी ऊंचाई से गिरने वाले पानी का शानदार दृश्य लंबे समय से लोगों से अपील कर रहा है। पानी के लगातार गिरने से कटाव के कारण चट्टान के विभिन्न रूपों ने जगह की सुंदरता में जोड़ा है।बरसात के दिनों में तो इसका दृश्य और भी सुंदर व मनमोहक हो जाता है। प्रकृति की गोद में बसे हुंडरू फॉल की खूबसूरती देखते ही बनती है। बरसात के मौसम में यह एक जबरदस्त रूप ले लेता है, लेकिन गर्मियों में यह एक रोमांचक पिकनिक स्थल में बदल जाता है, वैसे तो यहां सैलानियों का आना–जाना सालोभर लगा रहता है। परंतु दिसंबर से फरवरी माह के बीच यहां बड़ी तादाद में लोग पहुंचते हैं।
दशम जलप्रपात
दशम फॉल रांची-टाटा मार्ग पर तैमारा गांव के पास है। यह रांची शहर से 34 किमी दूर स्थित है। जगह दासम गढ़ के रूप में भी जाना जाता है। इस झरने का मुख्य जल स्रोत कचनी नदी है, जो यहां 144 फीट की ऊंचाई से आता है। इस गिरावट की अनूठी विशेषता यह है कि जब झरना देखा जाता है, तो 10 पानी की धाराएं भी गिरती दिखाई देती हैं।
यह झरना खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से घिरा हुआ है। यहां का नजारा अत्यंत ही खूबसूरत है।दशम जलप्रपात का असली नाम “दा:सोम” है। “दा:सोम शब्द स्थानीय मुन्डारी भाषा का है । दा:सोम शब्द दो शब्द दा: और सोम से बना है। दा: का अर्थ पानी और सोम का अर्थ जमाव होता है। वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि मुण्डारी में पानी को ‘दाअ’ और स्वच्छ को ‘सोअ’ कहते हैं। झरने से गिरता हुआ उज्जवल पानी बडा स्वच्छ दिखता है। स्वच्छ पानी का झरना ‘दाअसोअ’ से ‘दासोम’ और बाद में अपभ्रंश होकर ‘दशम ‘ हो गया।साल, सिद्धा, केंद आदि वृक्षों से घिरे वन के बीचों बीच झरना का नजारा देखने के लिए रास्ते में कुछ-कुछ दूरी पर रेलिंगयुक्त प्लेटफार्म बने हुए हैं। जंगल और पहाडियों के बीच से एक नदी बहती है, जो यहां आकर काफी ऊंचाई से, लगभग 45 मीटर की ऊंचाई से गिर कर आगे बढ ज़ाती है। इतनी ऊंचाई से भी नदी का पानी यदि सीधे गिरता तो उतना आकर्षक नहीं लगता, ऊंचाई से गिरते पानी के रास्ते में बडे-बडे चट्टानों से टकराने के कारण पानी का रंग-ढंग बदल जाता है और मनमोहक झरना बन जाता है।दशम फॉल से निकला पानी आगे करीब 50-60 मीटर जाने के बाद समतल नदी का रूप ले लेता है। बीच-बीच में कहीं-कहीं चट्टानें मिलती हैं। क्योंकि पूरा छोटानागपुर ही चट्टान पर बसा है।
गौतम धारा – जोन्हा
जोन्हा जलप्रपात झारखण्ड की राजधानी राँची से 40 कि.मी. दूर टाटा-राँची मार्ग पर ‘तईमारा’ नामक गाँव के निकट स्थित है। यहाँ भगवान गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है, जिसके चलते इसे ‘गौतम धारा’ भी कहा जाता है।राँची-मूरी मार्ग से दक्षिण में स्थित यह प्रपात भी राँची पठार की भ्रंश रेखा पर निर्मित है।
इस जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 150 फीट है।
जोन्हा प्रपात राढू नदी पर स्थित है। इसके पास में ही ‘सीताधारी’ नामक एक छोटा प्रपात भी है।
जलप्रपात हर दिन पर्यटकों की भीड़ से चहल-पहल भरा रहता है।
जोन्हा जलप्रपात पर बुद्ध का प्रसिद्ध मंदिर है और पर्यटक भगवान बुद्ध के मन्दिर के दर्शन के लिए भी जाते है।
इसके आस-पास का नज़ारा भी बहुत ख़ूबसूरत है, जो पर्यटकों को मंत्र-मुग्ध कर देता है।रांची-पुरुलिया राजमार्ग पर स्थित रांची से 45 किमी दूर, स्थानीय गांव के नाम पर जोन्हा जलप्रपात है। इसे गौतमधारा भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान बुद्ध को समर्पित एक मंदिर है, जो इसके आसपास के क्षेत्र में है। यहां चट्टानों को नदी के फटे हुए गुरलिंग पानी में शामिल होने के लिए अपने प्राकृतिक ढाल के नीचे माना जाता है। गिरावट अपेक्षाकृत अधिक सोमवार दिखाई देती है, जो स्पॉट के सुरम्य आकर्षण को बढ़ाती है।
भटिंडा फॉल
भटिंडा फॉल झारखंड राज्य के धनबाद जिले में है। यह धनबाद रेलवे स्टेशन से सिर्फ 14 किमी दूर स्थित है। यह दो नदियों (कतरी और दामोदर) के मिलन पर बना अनोखा जलप्रपात है। यहां कतरी नदी पारसनाथ से निकल कर उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हुई मुनीडीह पहुंचती है।पूरब की तरफ से दामोदर नदी आती है। फॉल के पास दोनों नदियां मिलती हैं। यहां चट्टानें 12 डिग्री के कोण पर नदी की धार की दिशा में झुकी हुई हैं।ये चट्टानें नदियों की धार को रोकती हैं। नदी की धार जब चट्टानों से टकराकर 10 मीटर की ऊंचाई से गिरती हैं, तो बड़ा सुंदर दृश्य बनता है।यह हरियाली और ऊबड़-खार्बर पहाड़ियों के बीच घिरा हुआ है। फॉल्स विशाल चट्टानी पत्थरों द्वारा रेखांकित हैं।इस जलप्रपात में ही सात खटिया नामक स्थान है जहाँ एक बड़ा सा कुंड है जो काफी गहरा है इसी कुंड में ज्यादातर लोग डूब जाते हैं।कहा जाता है कि चट्टानों के बीच तीन तरह के तालाब हैं। बड़ा, मध्य और छोटा तालाब। पानी पहले बड़े तालाब में आता है। फिर ओवरफ्लो कर मध्य तालाब में और वहां से छोटे तालाब में जाता है। हर तालाब में गहरे कुएं हैं।यहाँ झरने शांति और आकर्षण की भावना पैदा करते हैं। यह जगह हमें शांति और शांतिपूर्ण परिवेश का अनुभव करने का मौका देती है। यदि आप धनबाद में रेस्तरां के साथ किसी भी बेहतरीन होटल की तलाश में हैं, तो यह क्षेत्र आपको कुछ अच्छे विकल्प भी दे सकता है। अधिकतर लोग यहां पिकनिक मनाने के उद्देश्य से आते हैं हालांकि, ऐसे अन्य पर्यटक भी हैं जो यहां कुछ दिन प्रकृति के बीच समय बिताना पसंद करते हैं।भटिंडा जलप्रपात की ख़ूबसूरती मानसून के बाद देखने को मिलती है आसपास के हरे भरे पेड़ पौधे इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं।कुछ का मानना है कि भटिंडा फॉल प्रकृति की देन है। यहां दो नदियों का मिलना और चट्टानों से नदी का टकराना एकदम प्राकृतिक है। यह किसी मानवीय निर्माण कार्य से नहीं बना।कुछ लोगों का कहना है कि जहां फॉल है, वहां बलुआ पत्थर मिलते हैं। नदी किनारे पत्थरों को काटना आसान है। इसलिए कभी वहां पत्थरों का खनन किया गया, जिससे फॉल बना।
तमासीन जलप्रपात
चतरा जिला मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर दूर कान्हाचट्टी प्रखंड के तुलबुल पंचायत में तमासीन जलप्रपात स्थित है. कान्हाचट्टी प्रखंड से इसकी दूरी लगभग 32 किलोमीटर है। सैंकड़ों फीट की ऊंचाइयों से गिरती जल धारा ऐसी प्रतीत होती है, जैसे दूध की धारा रूपी नदी प्रवाहित हो रही हो. दो घाटियों यानि पहाड़ियों के बीच सफेद पत्थरों का अनोखा रूप सफेद गोमेद की तरह रौशनी बिखेरती हुई पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. इस रमणीक स्थल का धार्मिक महत्व भी है.
पंचघाघ जलप्रपात
पंचघाघ पांच झरनों का संयोजन से बना है। यह झरना बनई नामक प्रसिद्ध नदी के टूटने के कारण बनता है। पंचघाघ का पानी लंबी ऊंचाइयों से नहीं गिरता है फिर भी, जब कोई इसके पास आता है, तो पानी का गर्जन लगभग सुन सकता है, क्योंकि सभी पांच धाराएँ चट्टानों को बहुत अशांत तरीके से टक्कर मारता हैं। पानी कम ऊंचाई से गिरता है, जिससे पर्यटकों को पानी के तेज प्रवाह में आनंद लेना काफी सुरक्षित है। ज्यादातर लोग परिवार और दोस्तों के साथ पिकनिक के लिए यहां पहुंचते हैं। झरने के आसपास प्राकृतिक सुंदरता इसे और अधिक सुंदर और शांतिपूर्ण बनाती है।
रानी जलप्रपात
यह झरना जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर खूँटी-तमाड़ रोड पर स्थित है। यह तजना नदी पर स्थित है। रानी फॉल को रेत नदी के साथ धीमी नदी के प्रवाह के लिए जाना जाता है जो जिसके पर्यटकों के लिए सुरक्षित माना जाता है।
पेरवाघाघ जलप्रपात
यह खूँटी जिले के तोरपा के फटका पंचायत में छाता नदी पर स्पष्ट जल प्रवाह के साथ एक सुंदर झरना गिरती है। यह ज्ञात है कि “पेरवा” शब्द कबूतर को दर्शाता है और “घाघ” का मतलब घर है जो झरने के अंदर “कबूतरों का घर” दर्शाता है। यह अभी भी माना जाता है कि ये कबूतर झरने के अंदर रहते हैं।कैसे पहुंचे- यह सड़क से खूँटी जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर है।
हिरणी जलप्रपात
पश्चिम सिंहभूम जिले में रामगढ नदी पर हिरणी प्रपात स्थित है। यह प्रपात रांची – चाईबासा स्थित है। हिरणी प्रपात जंगलों के बिच स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुनता के वजह से पुरे झारखण्ड में प्रसिद्ध प्रपातों में से एक है। इसकी कुल ऊंचाई 121 फ़ीट है। हिरणी जलप्रपात की दुरी खूंटी से 20 किमी जिला खूंटी से , 62 किमी जिला और 68 किमी जिला चाईबासा से।
उसरी जलप्रपात
उसरी प्रपात गिरिडीह के उसरी नदी पर है। उसरी नदी झारखण्ड की प्रमुख नदी बरकार नदी की सहायक नदी भी है। उसरी जलप्रपात खंडोली पहाड़ी पर स्थित है। धनबाद से 52 किमी की दुरी पर स्थित है यह प्रपात। उसरी जलप्रपात की ऊंचाई मात्र 39 फ़ीट है। उसरी प्रपात गिरिडीह से 13 दुरी पर स्थित है।
रजरप्पा जलप्रपात
झारखण्ड के रामगढ जिले से 25 किमी की दुरी पर स्थित रजरप्पा प्रपात 12-15 फीट ऊंचा है । यह प्रपात भेड़ा नदी तथा दामोदर नदी के संगम पर स्थित है।
मोतीझरना जलप्रपात
यह प्रपात राजमहल क्षेत्र में अजय नदी पर स्थित है। इस प्रपात की ऊंचाई 150 फ़ीट है।
मोती झरना झारखंड के साहेबगंज जिले के तालझारी प्रखण्ड में स्थित एक गांव है।