सहारा इंडिया और सेबी का मामला शुरू होता है सितम्बर 2009 से जब केंद्र में UPA की सरकार थी, सहारा समूह निवेशकों के लिए शेयर बाजार में उतारना चाह रहा था. इसके लिए सहारा इंडिया ने सेवी के सामने अपना प्रारंभिक प्रस्ताव रखा.
अक्टूबर 2009 में सहारा इंडिया ने शेयर बाजार में उतारने के लिए अपने प्रोसेसिंग को आगे बढ़ते हुए सहारा की दो कम्पनी सहारा इंडिया रियल स्टेट कारपोरेशन लिमिटिड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटिड ने कमोनी के रजिस्ट्रार के पास आईपीओ (रेड हैरिंग प्रॉस्पेक्ट्स) की अर्जी दाखिल की.
दिसंबर 2009 को सेबी के पास प्रोफेसनल ग्रुप फ़ॉर इन्वेस्टर ने सहारा की दोनों कम्पनियों के खिलाफ कथित तौर पर गलत लेनदेन होने की शिकायत कर दी.
जनवरी 2010 को रौशन लाल भी नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिये सेबी के पास सहारा इंडिया की वैसी ही शिकायत कर दी.
सेबी ने इन शिकायतों पर सहारा समूह के इन्वेस्टमेंट बैंकर इनम सेक्युरिटीज़ और फिर बाद में सीधे सहारा ग्रुप से जवाब माँगा.
बाद में सेबी की जांच में ये बात सामने आई कि सहारा समूह ने 50 से अधिक निवेशकों से जिस तरीके से धन जुटाए है उसके लिए सेबी की अनुमति लेनी अनिवार्य थी. जिसका पालन नहीं किया गया.
इसके बाद बात आगे बढ़ी और नवम्बर 2010 में सेबी ने सहारा इंडिया की दो कम्पनियों को आदेश जारी करते हुए कहा कि निवेशकों से जुटाए गए धन निवेशकों को वापस किया जाए.
अब सेबी अपने फैसले पर अडिग था तब सहारा इंडिया ने सिक्योरिटी एपिलेट ट्रिब्यूनल में जाकर सेबी के फैसले का विरोध किया.
जून 2011 सेक्यूरिटीस ऐपिलेट ट्राईब्यूनल ने सेबी के फैसले को सही ठहराते हुए सहारा ग्रुप की दोनों कंपनियों से निवेशकों के 25,781 करोड़ रुपए लौटाने को कहा.
यहां उल्लेखनीय है कि बीबीसी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार सेबी के समक्ष शिकायत करने वाली एक ग्रुप थी जिसका नाम था प्रोफेशनल ग्रुप फ़ॉर इन्वेस्टर्स और दूसरे थे रौशन लाल. इन्हीं के शिकायत पर सेबी ने जांच बिठाया और विवाद बढ़ा. कुछ मीडिया के खबरों अनुसार उस समय के तत्कालीन केंद्र सरकार के कुछ राजनेताओं ने और तत्कालीन सेबी प्रमुख ने सहारा और सेबी के विवाद को अपनी नाक की बात बन ली जिसका नतीजा निवेशकों को भुगतना पड़ रहा है.
यह लेख विभिन्न मीडिया में समय समय पर प्रकाशित खबरों के संकलन के आधार पर बनाई गई है. इस संबंध में कोई भी दावा bnnbharat.com नहीं करता है.