सहारा – सेबी मामला करीब 13 वर्षों से चल रहा है. निवेशकों के पैसे के भुकतान को लेकर अक्सर सहारा – सेबी मामला सुर्खियों में रहता है.
क्या आपको पता है? सहारा इंडिया की सकल संपत्ति कितनी है और इस कम्पनी पर निवेशकों का कितना देनदारी है. यहां हम सहारा इंडिया कम्पनी की एक शार्ट प्रोफाइल बताने जा रहें है जिससे आप खुद तय कर पाएंगे कि कम्पनी की वर्तमान स्थिति क्या है.
31 मार्च 2021 तक सहारा इंडिया की कुल (सकल) संपत्ति है, दो लाख नेबासी हज़ार दो सौ बावन (289,253) करोड़ रुपए.
अगर निवेशकों की देनदारी की बात करें तो सहारा इंडिया 1978 से लेकर 31 मार्च 2021 तक कुल 18.35 करोड़ निवेशकों को कुल दो लाख उन्नासी हजार छः सौ छियासी (279686) करोड़ रुपये भुगतान कर चुका है. लगभग 105,654 की देनदारी है. यह आकड़ें 31 मार्च 2021 तक के है.
2014 से वर्षवार आंकड़ों की बात करें तो कोरोना काल 2020-2021 को छोड़ हर वर्ष औसतन नौ लाख से ज्यादा निवेशक सहारा इंडिया से जुड़ते रहें है. अंतिम 8 वर्षों सहारा इंडिया से लगभग छः करोड़ उनसठ लाख अठाइस हजार छप्पन (65928756) लोग जुड़े और एक लाख सरसठ हज़ार पांच सौ इक्यासी करोड़ रुपये निवेश किये. यह आंकड़े दिसंबर 2021 तक के हैं.
वर्ष 2014 में 8855386 निवेशकों ने कुल 20418. 74 करोड़ रुपए निवेश किए. वहीं 2015 में 9393477 निवेशकों ने 18518.57 करोड़, 2016 में 9295287 निवेशकों ने 19538. 17 करोड़, 2017 में 9191460 निवेशकों ने 323661.48 करोड़, 2018 में 10613428 निवेशकों ने 27633.11 करोड़ , 2019 में 8945590 निवेशकों ने 26333.54 करोड़, 2020 में 4359421 निवेशकों ने 13158.11 करोड़ और वर्ष 2021 दिसंबर तक 4974785 निवेशकों ने 18319.50 करोड़ रुपये निवेश किया है.
इन आंकड़ों पर गौर किया जाय तो आज भी सहारा इंडिया की स्थिति सुदृढ़ है. आज भी सहारा इंडिया निवेश करने के लिए सबसे सुरक्षित कम्पनी है. सहारा इंडिया भारतीय रेल के बाद दूसरी सबसे बड़ी रोजगार देने वाली कम्पनी है. वर्तमान में सहारा इंडिया के पास कुल देनदारी से लगभग तीन गुणा से ज्यादा की संपत्ति है.
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सहारा इंडिया का कहना है कि , निवेशकों की धनराशि पूर्णतः सुरक्षित है. लेकिन वर्तमान में भुगतान कानुनी कारणों से नहीं हो रहा जिसके कारण सम्मानित जमाकर्ताओं में असंतोष हैं. भुगतान अवश्य होगा , निवेशक भुगतान में विलम्ब से विचलित न हों. निवेशकों का विलम्ब अवधि का ब्याज सहित भुगतान किया जाएगा.
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