माननीय प्रधानमंत्री जी
आपके नेतृत्व प्रबंधन पर संदेह नहीं किया जा सकता, मगर कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर आपका ध्यान आकर्षित कराना बतौर पत्रकार मैं अपना नैतिक अधिकार मानता हूं, भले आप उन विषयों को कितनी गंभीरता से ले रहे हो ये आपका विशेषाधिकार है. क्योंकि सवाल हमेशा सत्ता से किया जाता है, माननीय महोदय वर्तमान समय में निश्चय ही आपके समक्ष कई चुनौतियां हैं. मगर एक और बड़ी और गंभीर चुनौती आपके समक्ष है, जिसे शायद आप देख नहीं पा रहे या आप देखकर भी अंजान बने रहना चाह रहे हैं. माननीय महोदय मेरा इशारा 2011- 12 से चले आ रहे सहारा- सेबी विवाद की ओर है. तत्कालीन यूपीए सरकार के कार्यकाल से शुरू हुए विवाद और उबाऊ न्यायिक प्रक्रिया ने इस विवाद को 21 वीं सदी के सबसे बड़े त्रासदी की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है. लागभग 10 सालों से चले आ रहे इस विवाद का अंत आखिर कब होगा ये महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि इस प्रक्रिया ने सहारा के साम्राज्य को पूरी तरह बर्बाद कर उस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से सहारा के पास मात्र दो ही विकल्प बचे हैं या तो संस्था को अपना पैराबैंकिंग सेक्टर को बंद करना होगा या पुनः शून्य से शुरुआत करनी होगी, दोनों ही प्रक्रिया में नुकसान सहारा इंडिया परिवार के 12 लाख कार्यकर्ताओं को उठाना होगा. 1978 से लेकर 2021 तक का वक्त काफी लंबा होता है किसी भी संस्थान के लिए. फाइनेंसियल सेक्टर के लिए 44 साल तक निवेशकों के विश्वास को बनाए रखना आसान नहीं होता. क्या इतने लंबे वक्त तक चलने वाले इस विवाद में सहारा मुद्रा दोहन का केंद्र बन गया है ? समूह अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा न्यायिक प्रक्रिया और अपनी साख को अखबारों के माध्यम से विज्ञापन के पीछे खर्च करने में लगा रहा है. निवेशक और कार्यकर्ता त्राहिमाम कर रहे हैं. माननीय महोदय वक्त रहते अगर इस संस्थान के विषय में आपके स्तर से गम्भीरता नहीं दिखाई गई तो बेरोजगारी, पलायन, आत्महत्या, और न जाने कितने दर्दनाक दृश्य आपको देखने को मिलेंगे. वैसे दैनिक अखबारों और शोषल मीडिया पर उसके उदाहरण आने लगे हैं. माननीय महोदय सहारा समूह का दावा है कि उसने सहारा- सेबी अकाउंट में 24 हजार करोड़ जमा करा दिए हैं. सेबी ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में 23 हजार करोड़ जमा कराए जाने की बात स्वीकार किया है. मार्च 2020 से सहारा- सेबी मामले पर माननीय सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है, आखिर क्यों ? कोरोना त्रासदी का हवाला देकर इतने बड़े मामले पर गंभीरता क्यों नहीं ? सेबी के दावे की जांच क्यों नहीं कराई जा रही है ? सहारा प्रमुख इतने बड़े अपराधी तो नहीं थे जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है. माननीय महोदय सहारा इंडिया परिवार के गौरवशाली इतिहास का आंकलन करते हुए अविलंब इस त्रासदी के निष्पादन का रास्ता निकालने की पहल करें. 12 लाख कार्यकर्ताओं के समक्ष बड़ी मुसीबत मुंह बाए खड़ी है. महोदय सहारा के पास देनदारियों की तुलना में तीन- चार गुणा अधिक की परिसंपत्तियां हैं ऐसा माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है, मगर जब सहारा ने सेबी के दावे और माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार 25 हजार करोड़ सहारा- सेबी खाते हैं जमा करा दिए हैं, तो सुनवाई में विलंब क्यों. आज सहारा के करोड़ों निवेशक अपनी गढ़ी कमाई को लेकर असमंजस में में और कार्यकर्ता हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं आखिर क्यों ? आप तो यशस्वी प्रधानमंत्री हैं आपको इस गंभीर विषय में गंभीरता दिखानी चाहिए.
माननीय महोदय चूंकि मैंने अपने करियर की शुरुआत सहारा इंडिया परिवार से जुड़कर की है. सहारा इंडिया परिवार के क्रियाकलापों को काफी करीब से जाना है. ये उक्त संस्थान में सिखाए गए ज्ञान और व्यवहारिकता ही है जो बगैर किसी यूनियन के सारे कार्यकर्ता एकजुट होकर अपने अभिभावक यानी सहारा प्रमुख के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और हर संभव इस मुसीबत से निकलने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि अब अगर न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और पत्रकारिता का सहयोग नहीं मिला तो दुनिया के सबसे बड़ी बेरोजगारी की त्रासदी के लिए उक्त विवाद को याद किया जाएगा, जिसके लिए देश के चारों स्तंभ जिम्मेवार होंगे.
धन्यवाद
संतोष कुमार