पुकार रही है चाहते हमारी, जागोहे भारत की नारी.
मन मे है हुंकार भरा,शक्ति हमारी देख जरा.
हमसे ही समृद्धि है, सुसज्जित होती यह धरा.
सागर की लहरो सी उमड़ती मन मे है विचार नये.
हवा की झोको सी बहती जीवन के उल्लास नये.
पितृसत्ता के बोझ तले न रौंदूंगी संजोए सपने.
नारीवाद का परचम लहरा नित्य गढ़ेगे जीवन अपने.
एक नहीं, अब दस भी नहीं, अनगिनत है हाथ हमारी.
क्रांति की लिए मशाल अब निकल पड़ेगी हर नारी.
सुबह नहीं, सिर्फ़ शाम नहीं, सारा दिन हमारा है.
वर्ष का सिर्फ एक दिन नहीं ,पूरा वर्ष हमारा है.
इन संकल्पो के साथ सदा हम आगे बढ़ते जायेंगे.
हवा के झोको सी बहते हम अपना परचम लहरायेंगे.
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओं को समर्पित मेरी स्वरचित कविता.
डॉक्टर सविता बनर्जी.