झांसी ने सांप्रदायिक सद्भाव की एक अनूठी मिसाल पेश की है. जहां एक ओर लाउडस्पीकर को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है, वहीं यहां के एक मंदिर और मस्जिद ने स्वेच्छा से लाउडस्पीकर उतार लिए हैं. मंदिर के पुजारी और मस्जिद के इमाम ने खुद आगे बढ़कर यह काम किया है. इस प्रयास की हर जगह सराहना की जा रही है.
आपको बता दे झांसी महानगर से सटे कस्बे बड़ागांव के गांधी चौक पर रामजानकी मंदिर स्थित है. इसके पास ही जामा मस्जिद है. मंदिर में सुबह और शाम आरती के दौरान लाउडस्पीकर बजते थे. मस्जिद में पांचों वक्त की नमाज के समय लाउडस्पीकर का उपयोग होता था. पिछले कई दशकों से यहां ऐसा होता आ रहा था. धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है. इसी बीच उक्त मंदिर के महंत श्याम मोहन दास और मस्जिद के इमाम हाफिज मोहम्मद ताज आलम ने आगे बढ़ते हुए अपने-अपने धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटा दिए. अब मंदिर-मस्जिद में बगैर किसी शोर के नियमित रूप से अपनी-अपनी धार्मिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं.
मंदिर के महंत श्याम मोहन दास ने कहा कहा –
मंदिर के महंत श्याम मोहन दास ने कहा कि मंदिर में नियमित रूप से सुबह-शाम आरती और भजन-कीर्तन हो रहे हैं, लेकिन अब लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं किया जा रहा है. शांति के साथ सभी धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं.
मस्जिद के हाफिज मोहम्मद ताज आलम ने कहा कि मस्जिद में पिछले कई सालों से दो लाउडस्पीकर लगे हुए थे, जिन्हें उतार दिया गया है. पांचों वक्त की नमाज अब लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किए बगैर की जा रही है.
इतिहास में भी दिखे हिन्दू मुस्लिम साथ –
जब झाँसी में 1857 में संग्राम हुआ था, तब वीरांगना लक्ष्मीबाई की सेना में एक ओर हर-हर महादेव के उद्घोष गूंजते थे, तो वहीं दूसरी ओर अल्लाह हू अकबर के नारे में गुंजायमान होते थे. मजहब अलग-अलग थे, लेकिन उद्देश्य सभी का एक झांसी को फिरंगियों से मुक्त कराना था. झांसी और रानी की खातिर सैकड़ों हिंदू मुस्लिमों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. सांप्रदायिक एकता और सद्भाव की इस विरासत को झांसी आज भी अपने में सहेजे हुए है.