पिता बनकर बच्चों के जीवन की बगिया महकाया।
बच्चों के जीवन मे हरदम खुशियों की आशा भी लहराया।
कभी हंसते- मुस्कुराते, कभी गंभीरता की चादर ओढ़कर
कभी विहसते गोद मे उठाकर,कभी सुरक्षा की डांट लगाकर
बच्चों के जीवन मे सुनहरे भविष्य की आशा जगाया।
मां है निश्चित बच्चों की प्यार, मां ही करती संपूर्ण देख भाल
मां सोचती भी है कि मुझसे ही महक रहा बच्चों का संसार।
पर कहीं न कहीं पिता के बल पर ही मां भी करती गर्व का इजहार।
मां की शान,बच्चों की आन,घर की मुस्कान, पिता ही तो है।
सविता बनर्जी