पद्मावती की प्रेम कहानी सुनाने के बाद बेताल उड़कर पुनः वृक्ष के निकट पहुँच चुका था। उसे खोजते हुए महाराज विक्रमादित्य पुनः उसी शिंशपा-वृक्ष के नीचे पहुंचे। वहां चिता की मटमैली रोशनी में उनकी नजर भूमि पर पड़े उस शव पर पड़ी जो धीरे-धीरे कराह रहा था। कड़ी मेहनत के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ लिया। वह उसे अपने कंधे पर लादकर श्मशान की ओर ले चले। रास्ते में बेताल ने राजा को एक नई कहानी शुरू की और बेताल बोला…
यमुना किनारे ब्रह्मस्थल नाम का एक स्थान है, जो ब्राह्मणों को दान में मिला हुआ था। वहां वेदों का ज्ञाता अग्निस्वामी नाम का एक ब्राह्मण था। उसके यहां मन्दरावती नाम की एक अत्यंत रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। जब वह कन्या युवती हुई, तो वो और उसका पूरा परिवार उसके लिए योग्य वर ढूंढने में लग गया। एक दिन ब्राह्मण किसी के घर पूजा करने के लिए गया और उसका बेटा भी पढ़ाई के लिए घर से बाहर चला गया। उस समय घर में ब्राह्मण की बेटी और उसकी पत्नी ही थी। उसी वक्त एक ब्राह्मण लड़का उनके घर आता है। ब्राह्मण की पत्नी उस लड़के का अच्छे से सत्कार करती है और खाना खिलाती है। लड़के का स्वभाव ब्राह्मण की पत्नी को पसंद आता है और वो उससे अपनी बेटी की शादी का वादा कर देती है।
उधर, ब्राह्मण गणपति जिनके घर पूजा करने गया था, वहां भी वो एक ब्राह्मण लड़के से मिलता है और उससे अपनी बेटी की शादी करवाने का वचन दे देता है। ब्राह्मण का बेटा जहां पढ़ने गया था, वो भी वहां एक लड़के से यही वादा कर देता है। कुछ देर बाद गणपति और उसका बेटा दोनों खुद से चुने हुए लड़के को लेकर घर पहुंचते हैं। दोनों घर में एक और ब्राह्मण लड़के को देखकर चौंक जाते हैं। अब सभी इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि लड़की एक है और शादी का वादा तीनों ने अलग-अलग लड़कों से कर दिया है, अब क्या होगा? लड़की का विवाह किससे करवाएंगे? वे तीनों ब्राह्मण कुमार भी चकोर का व्रत लेकर उसके मुखमंडल पर टकटकी लगाए रात-दिन वहीं रहने लगे।
एक बार मंदारवती को अचानक दाह-ज्वर हो गया और उसी अवस्था में उसकी मौत हो गई। उसके मर जाने पर तीनों ब्राह्मण कुमार शोक से बड़े विकल हुए और उसे सजा-संवारकर श्मशान ले गए, जहां उसका दाह-संस्कार किया।उनमें से एक ने वहीं अपनी एक छोटी-सी मढैया बना ली और मंदारवती की चिता की भस्म अपने सिराहने रखकर एवं भीख में प्राप्त अन्न पर निर्वाह करता हुआ वहीं रहने लगा। दूसरा उसकी अस्थियों की भस्म लेकर गंगा-तट पर चला गया और तीसरा योगी बनकर देश-देशांतरों के भ्रमण के लिए निकल पड़ा।
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योगी बना वह ब्राह्मण घूमता-फिरता एक दिन वत्रोलक नाम के गांव में जा पहुंचा। एक दिन अचानक योगी बनकर घूम रहा ब्राह्मण किसी तांत्रिक के घर पहुंच गया। ब्राह्मण को घर में देखकर तांत्रिक खुश हुआ और उसका सत्कार किया। तांत्रिक ने योगी से कुछ दिन अपने घर में ही रहने के लिए कहा। तांत्रिक की जिद देखकर योगी उनके घर में ही रुक गया। एक दिन तांत्रिक अपनी विद्या में बहुत लीन था और उसकी पत्नी सबके लिए खाना बना रही थी। उसी वक्त उनका बेटा रोने लगा और अपनी मां को परेशान करने लगा। तांत्रिक की पत्नी से उसे बहुत संभालने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माना। आखिर में तांत्रिक की पत्नी को इतना गुस्सा आया कि उसने अपने बच्चे की पिटाई कर दी। उसके बाद भी जब बच्चा चुप नहीं हुआ, तो उसने उसे चूल्हे में डालकर जला दिया। यह सब देखकर योगी ब्राह्मण बहुत नाराज हुआ और बिना कुछ खाए ही अपनी पोटली लेकर उनके घर से जाने लगा। इतने में तांत्रिक आया और योगी से कहा, “महाराज खाना तैयार है, आप इस तरह गुस्से में बिना खाए यहां से न जाएं।” गुस्से में योगी ने कहा, “मैं इस घर में एक मिनट भी नहीं रुक सकता, जहां ऐसी राक्षसी रहती हो, वहां मैं कैसे कुछ खा सकता हूं।” इतना सुनते ही तांत्रिक झट से चूल्हे के पास जाता है और एक किताब से एक मंत्र पढ़कर अपने बेटे को जिंदा कर देता है। यह सब देखकर योगी हैरान रह जाता है। उसने सोचा कि अगर यह किताब मेरे हाथ लग जाए, तो मैं अपनी पत्नी को भी जीवित कर सकता हूं। योगी यह सोच ही रहा होता है कि उधर तांत्रिक बेटे को जीवित करने के बाद फिर से योगी से खाना खाने का आग्रह करता है। योगी खाना खाता है और वहीं रुक जाता है।
अब योगी के दिमाग में बस यही चल रहा था कि बस वो किसी तरह से उस किताब को हासिल कर ले। सोचते-सोचते रात हो जाती है। सब खाना खाकर सो जाते हैं। आधी रात को योगी उस मंत्र वाली किताब को लेकर रात-दिन चलता हुआ वह योगी तांत्रिक के घर से सीधे उस श्मशान घाट पहुंचता है, जहां ब्राह्मण की लड़की का अंतिम संस्कार किया गया था। उस जगह पहुंचा, जहां उसकी प्रिया का दाह हुआ था। वहां पहुंचते ही उसने उस दूसरे ब्राह्मण को देखा जो मंदारवती की अस्थियां लेकर गंगा में डालने गया था। तब उस योगी ने उससे तथा उस पहले ब्राह्मण से, जिसने वहां कुटिया बना ली थी और चिता-भस्म से सेज रच रखी थी कहा कि “तुम यह कुटिया यहां से हटा लो, जिससे मैं एक मंत्र शक्ति के द्वारा इस भस्म हुई मंदारवती को जीवित करके उठा लूं।”
इस प्रकार उन्हें बहुत समझा-बुझाकर उसने वह कुटिया उजाड़ डाली। तब वह योगी पुस्तक खोलकर मंत्र पढ़ने लगा। उसने धूल को अभिमंत्रित करके चिता-भस्म में डाल दिया और मंदारवती उसमें से जीती-जागती निकल आई। यह देख तीनों ब्राह्मण खुश हो जाते हैं।
इतनी कहानी सुनाकर बेताल चुप हो जाता है। कुछ देर बाद वह राजा विक्रम से पूछता है, “बताओ वह लड़की किसकी पत्नी हुई?” विक्रमादित्य, बेताल के दोबारा उड़ने के डर से जवाब नहीं देते।
गुस्से में बेताल कहता है, “देखो अगर तुम जवाब पता होते हुए भी नहीं दोगे, तो तुम्हारा मस्तक चूर चूर हो जाएगा।” इतना सुनते ही राजा बोलते हैं, “जो ब्राह्मण श्मशान में कुटिया बनाकर रह रहा था, वो उसकी पत्नी हुई।” बेताल पूछता है, “कैसे?”
तब विक्रमादित्य जवाब देते हैं, “जो हड्डी चुनकर फकीर बन गया, वो उसका बेटा हुआ। जिसने तांत्रिक विद्या से उसे जीवित किया, वो उसके पिता समान हुआ और जो उसकी राख के साथ जीवन जी रहा था, वो ही उसका पति हुआ।”
जवाब सुनते ही बेताल ने कहा, “राजन तुमने बिलकुल सही उत्तर दिया है, लेकिन शर्त के मुताबिक तुम्हें मुंह नहीं खोलना था। इसलिए, मैं दोबारा उड़ रहा हूं।” इतना कहकर बेताल दोबारा घने जंगल के किसी पेड़ में जाकर लटक जाता है और राजा विक्रम उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने लगते हैं।
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