प्रचलित नाम – सतवन / सतौना
प्रयोज्य अंग-पत्र, छाल एवं काष्ठ ।
स्वरूप- विशाल वृक्ष, शाखाएँ चक्राकार समूह में, पत्र तिक्त दुग्ध रस युक्त एवं सप्तवर्णी पुष्प सफेद रंग के होते हैं । यह लगभग 12-18 मी तक ऊँचा, बृहत्, सदाहरित, सुन्दर वृक्ष होता है। इसके पत्र सरल, 4-7 की संख्या में, शाखाओं के अन्त में चक्करदार क्रम में होते हैं। इसके पुष्प श्वेत अथवा हरिताभ श्वेत वर्ण के होते हैं। इसकी फलियां 2-2 एक साथ, पतली, बेलनाकार, 30-60 सेमी लम्बी, लगभग 3 मिमी व्यास की, गोलाकार तथा गुच्छों में होती हैं।
स्वाद – तिक्त ।
रासायनिक संगठन इसके पत्रों में पिक्रालिनॉल, एकॉमीजाइन ट्यूबोटायविन, ऐकुवामिसीन, इसके पुष्पों में पिक्रीनाईन, स्ट्रीक्टामाईन, टेट्राहाइड्रो एलसटोनिक, हेक्साकॉसेन, ल्युपियॉल, बीटा- एमीरीन, पामीटिक अम्ल तथा यूरोलिक अम्ल । कांड की छाल में एकीटामाइन, ग्लुकोसाइड (वेनोटरपाइन) पाये जाते हैं।
गुण– ग्राही, संज्ञास्थापन, यकृत बल्य, कुष्ठघ्न, दीपन, रक्तशोधन, स्तन्य जनन ।
उपयोग- व्रण, रक्तदोष, बेरीबेरी, यकृत अवरोध, जलोदर, प्रवाहिका, मलेरिया ज्वर, जठरांत्र अवरोध में लाभकारी, दुग्धक्षीर का बाह्य प्रयोग छालों में, आमवातशूल में, दंतशूल में, काष्ठ की पेस्ट का प्रयोग आमवात तथा कटे-छिले भाग में लाभकारी।
मलेरिया ज्वर में इसके प्रयोग से केवल ज्वर नियंत्रण होता है, तिक्तद्रव्य से पाचन सुधरता है ।
छाल का क्वाथ: अतिसार तथा जीर्ण प्रवाहिका में लाभकारी।
प्रसूति के पश्चात् इसके सेवन से दुग्ध की मात्रा बढ़ती है।
दुग्ध क्षीर का लेप जीर्ण व्रणों तथा चर्मरोगों में लाभकारी।
ज्वर, शूल, गुल्म में इसकी छाल का क्वाथ पिलाने से लाभ ।
व्रणरोपण के लिये-इसकी छाल को दूध में पीसकर इसका लेप करने से व्रण रोपण क्रिया शीघ्र होती है।
मूत्रकृच्छ्र में इसकी कोमल टहनियों के अग्रभागों के स्वरस में मिश्री मिलाकर पिलाने से लाभ।
जुकाम एवं ज्वर में-सप्तपर्ण की छाल, गिलोय, नीम की अंतर छाल- यह सब दो दो तोला की मात्रा में लेकर इनका क्वाथ बनाकर पिलाना चाहिये ।
अमेरिका के फार्मास्युटीकल एसोसिएशन (1877) के रिपोर्ट में सप्तपर्ण को शक्तिवर्धक एवं ज्वर नाशक माना गया है तथा इसका प्रयोग बार-बार आने वाले ज्वर में तथा जुकाम में बहुत ही किया गया था, इसका परिणाम बहुत ही संतोषजनक था। इसकी छाल में से उपलब्ध डीटेइन तथा डीटेमिन तिक्त रसायन है जो अतितिक्त है, जो क्वीनाईन से भी ज्यादा गुणकारी माने गये हैं। क्वीनाईन तथा डीटेमाईन दोनों ही समान मात्रा में दिये जाते हैं तथा दोनों का परिणाम एक ही जैसा आता है । क्वीनाईन अधिक मात्रा में लेने से कानों में बहराश आती है तथा नींद नहीं आती। जबकि डीटेमाईन का कोई ऐसा प्रभाव नहीं होता तथा इसका प्रभाव अच्छा तथा सफल होता है। शिशुओं को सप्तपर्ण की छाल आधा ड्राम तथा प्रौढ़ों को यह एक ड्राम (प्रतिदिन) तक दी जा सकती है। सैनिक अस्पतालों में डीटेमाईन का प्रयोग किया जाता था (क्वीनाईन के बदले में) ।
जीर्ण अतिसार तथा प्रवाहिका में इसकी छाल का प्रयोग अतिलाभकारी है।
चरक संहिता में सप्तपर्ण की छाल, रस तथा बीज वातपित्त प्रशमन कारक, कुष्ठघ्न, दर्दनाशक तथा शीत निवारक कहा गया है ।
सुश्रुत संहिता में इसको आम वात प्रशमन, अरुचि नाशक गुल्म शूल नाशक, आम पाचक कहा गया है। इसकी छाल थोड़ी कड़वी सुगंधित एवं खट्टी होती है।
मात्रा – त्वक् चूर्ण- 4 -8 ग्राम ।
क्वाथ के लिए 2-4 ग्राम ।
Alstonia scholaris R.Br. APOCYANACEAE
ENGLISH NAME:- Devil’s tree. Hindi- Chhatwan PARTS-USED:- Leaves, Bark and wood.
DESCRIPTION:– A large tree with whorled branches and leaves with bitter milky
juice, white flowers.
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Leaves Contain: Picralinol; Akuammigine, Tubotaiwine, Akuammicine; Flowers: Picrinine, Strictamine, Tetrahydro alstonic, Hexacosane, Lupeol, Beta-Amyrin, Palmiticacid, Urolicacid. Stembark: Echitamine,
Glucoside (Venoterpine).
ACTIONS:- Astringent, Sedative, Liver Tonic, Antileprotic, Stomachic, Blood Purifier, Galactagogue.
USED IN:-Ulcers, Dyscrasia, Beriberi, Liver congestion, Dropsy, Dysentery, Malaria, Gastro-intestinal troubles: Milkylatex applied externally on sores, Rheumatic pain and Toothache; Wood paste applied on Rheumatism and Wounds.
अंग्रेज़ी में नाम : Devil tree (डेविल ट्री)
संस्कृत-सप्तपर्ण, विशालत्वक्, शारद, सुपर्णक, गन्धिपर्ण, सप्तच्छद, छत्रपर्ण, मुनिच्छद, विषमच्छद; हिन्दी-सतौना, सत्त्न, छतिवन, सतिवन; उर्दू-कासिम (Kashim); उड़िया-छोटिना (Chhotina), कुम्बरो (Kumbaro); कोंकणी-सेन्थनी-रुकू (Santhni-rooku), कडूसेल्ले-रुकू (Kadusalle-rooku); कन्नड़-हाले (Haale), बन्टाले (Bantale); गुजराती-सातवण (Saatvan); तमिल-ऐलीलाप्पलाई (Elilappalai), मरानल्लारी (Maranallari); तेलुगु-पलागरुड (Palagaruda), ईडाकूला पाला (Edakulaa pala); बंगाली-छातिम (Chhatim), छतवान (Chatwan); नेपाली-छतिवन (Chatiwan); मराठी-सत्त्ाप्ण (Saatvin),
सप्तपर्णी (Saptaparni); मलयालम-दैवपाल (Daivapala), ऐरीलमपाल (Erilampala), कुम्बारो (Kumbaro)।
अंग्रेजी-दिता बार्क (Dita bark), कॉमन एल्स्टोनिया (Common alstonia), इण्डियन पुलै (Indian pulai)।