प्रचलित नाम- कट सरैया/पीला वासा
प्रयोज्य अंग- मूल एवं पत्र ।
स्वरूप- लघु क्षुप, अतिशाखीत तथा कंटक युक्त
पुष्प पीतवर्णी ।
श्वेतपुष्प-सहचर
पीतपुष्प-कुंटक
रक्तपुष्प-कुरबक
नीलपुष्प-दासी, वाण
स्वाद- तिक्त ।
रासायनिक संगठन- इस वनस्पति में बीटा सिटोस्टीरॉल, स्कूटेलॉरिन 7-2रहामनोसिल ग्लूकोसाईड, इरीडोइड्स बारलेरिन एवं एसी बारलेरिन इसके अतिरिक्त इसमें पोटैशियम अधिक पाया जाता है।
गुण- मूत्रल, स्वेद जनन, कफ निःसारक, पूतिरोधी, शोथहर, व्रणरोपण, विषघ्न ।
उपयोग- पत्र का रस-प्रतिश्याय, उदर विकारों तथा ज्वर में लाभकारी।
सूखी छाल कास में, पंचांग का क्वाथ- जलोदर, कास, दंतशूल, पक्षाघात में लाभकारी, मूल का कल्क-पीड़िका एवं ग्रंथि शोथ में छाल का रस-जलशोथ में उपयोगी।
पिसे हुए पत्रों का व्रण पर लेप लाभकारी।
पत्रों के रस को नारियल के तेल में मिलाकर मुंह पर लगाने से मुंह के मुंहासे एवं पीड़िका नष्ट होते हैं।
मधु के साथ पत्रों के रस का सेवन बच्चों के कफ युक्त खांसी में लाभकारी ।
पत्रों का लेप कुष्ठरोग पर लाभकारी। नमक के साथ पत्रों को पीसकर इसका लेप मसूड़ों एवं दांतों पर करने से लाभकारी।
गर्भवती स्त्रियों के लिए यह वनौषधि अमृत समकक्ष है। इसके मूल के रस में दाल चीनी, पीपर (पिप्पली), लौंग का चूर्ण मिलाकर सेवन कराना चाहिये। इसके अतिरिक्त इसमें एक चौथाई ग्राम केसर मिलाकर सेवन कराने से गर्भावस्था के समय होने वाले अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है।
चर्मरोगों (दाद, खाज -खुजली) में-सैरेयक के पंचांग को पीसकर कल्क बना उसमें थोड़ा तैल मिलाकर मंद अग्नि पर थोड़ी देर रखने के पश्चात् उतार कर अच्छी तरह घोट लेना चाहिए, इसमें थोड़ा कपूर मिलाकर इसका प्रयोग करने से लाभ होता है।
इसके पत्रों रस के प्रयोग से ज्वर, प्रतिश्याय आदि लाभ होता है। इसके पत्रों की राख जात्यादि घृत घोंट कर व्रण, जख्म आदि पर लगाने से लाभ होता है।
सूजन पर इसके पंचांग स्वरस का लेप सूजन वाले भाग पर करने लाभ।
बच्चों के खाँसी-जुकाम में इसके पत्रों के स्वरस को मधु मिलाकर सेवन लाभ होता है।
वीर्य पतन में- सफेद कट सरैया पत्रों के स्वरस में जीरा मिला कर सात दिन तक सेवन कराने से लाभ होता है।
पित्त कट सरैया, तुलसी तथा भृंगराज पत्रों को सम भाग मिलाकर पीसकर गाय दूध मिलाकर पिलाना चाहिए।
दंत शूल कट सरैया तथा अकरकरा दोनों को मिलाकर पीसकर दाढ़ के नीचे रखने से दंत एवं दाढ़ शूल नष्ट होता है।
मुँह में छाले पड़ने पर कट सरैया, जामून की छाल तथा आँवला मिलाकर, क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से मुँह में हुये छाले ठीक हो जाते हैं।
दाँतों में से रक्त आता हो तो-कटसरैया के पत्रों का स्वरस मधु में मिलाकर दाँतों पर घिसने से रक्त बहना बंद होता है।
दंत कृमि में- कटसरैया के पत्रों को चबाने से दाढ़ के नीचे रखने से या इसकी दातून करने से दंत कृमि नष्ट होते हैं।
वातरोगों में-कट सरैया, देवदार तथा सोंठ का क्वाथ बनाकर उसमें एरण्ड तैल मिलाकर पिलाने से वातरोग ठीक हो जाता है।
मात्रा- स्वरस- 10-20 मि.ली., क्वाथ – 50-100 मि.ली. । चिकित्सक के परामर्शानुसार।
अंग्रेज़ी : Crossandra (क्रौससैन्ड्रा)
संस्कृत-सहचर, झिण्टी, अम्लान, कुरण्टक, सैरेयक, कुरबक, बाणा, बाण, दासी; हिन्दी-कटसरैया, पियाबांसा; बंगाली-कांटाजटी (Kantajati); मराठी-कोरांटी (Koranti), कालसुन्दा (Kalsunda); गुजराती-पीलो कांटारीयो (Pilo kantariyo), कांटाशीलो (Kantashelio); मलयालम-चेम्मूल्ली (Chemmulli), कुट्टीवेटीला (Kuttivetila); तमिल-कोडीप्पचलई (Kodippachalai), कोविन्दम (Kovindam); तेलुगु-गोब्बी (Gobbi), कोंडागोब्बी (Kondagobbi); उड़िया-दासोकोरांति (Dasokoranti), कुंटा (Kurunta); कन्नड़-गोरंटे (Gorante), गोराटा (gorata)।

Barleria prionitis, Linn. ACANTHACEAE
ENGLISH NAME:- Spiny yellow-Barleria. Hindi – Kata Saraya/Piyavasa
PARTS-USED:- Root and Leaves. DESCRIPTION:-A small shrub, much branched, very prickly with yellow flowers.
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Plant Contains: Beta-sitosterol, Scutellarein-7 Rhamocyl glucoside, Iridoids, Barlerin and Ac-Barlerin. It also contains Potassium. ACTIONS: Diuretic, Diphoretic, Expectorant, Antiseptic, Anti-inflaminatory. Wound
healing, Antidote.
USED IN:-Leaf Juicein: Catarrha, Abadominal disorder, Fever, Driedbark in: Cough,
Decoction of Plant in: Dropsy, Cough, Toothache, Paralysis, Paste of Root applied in:
boils and glandular swellings Juice of bark in Anasarca.
