प्रचलित नाम – बांस
प्रयोज्य अंग- कांड एवं कोमल शाखाएँ।
स्वरूप- महाकाय बांस जिसकी ऊँचाई लगभग 50-60 फूट, कांड पीत स्वर्णिम मूलकांड मजबूत भूमिजन्य होते हैं।
स्वाद- कटु ।
रासायनिक संगठन इसके कांड में सायनोजेनिक ग्लूकोसाइड, टैक्सीफायलिन, कांड की पर्व में नक्कर पदार्थ-वंशलोचन, जबकि इसमें प्रवाही पदार्थ तबशीर होता है, इसके अतिरिक्त कांड में बेन्जोइक अम्ल पाया जाता है।
गुण- कफ निःसारक, उत्तेजक, बल्य, बाजीकारक, उद्वेष्टननिरोधी, तृषाशामक।’
उपयोग- पर्व का मृदुभाग चूने में मिलाकर इसका बाह्य प्रयोग जख्मी भागों तथा व्रण में लाभकारी, इसके अंतर्ग्रहण से रधिरक्षय, श्वसनीशोथ, श्वासरोग में लाभ होता है।
वंशलोचन के सेवन से क्षय, श्वासरोग, कुष्ठ रोग में लाभ होता है। कोमल शाखाओं का सत-रक्त शोधक गुणवाला एवं श्वित्र तथा शोथ में लाभकारी।
इसकी गांठो को पीस कर इसका लेप जोड़ों के दर्द पर लाभकारी होता है।
मूल का कल्क चर्मरोगों (दाद एवं विस्फोटक व्याधियों) पर उपयोगी।
कोमल पत्रों का प्रयोग ज्वर, सूत्रकृमि, कुष्ठरोग एवं कफ में रक्त आने जैसे रोगों पर अति लाभकारी ।
मात्रा – क्वाथ – 50-100 मि.ली. । वंशलोचन 1-3 ग्राम।
अन्य भाषाओं में बांस के नाम
Sanskrit-वंश, कर्मार, तृणध्वज, शतपर्वा, यवफल, वेणु, मस्कर, तेजन, तुंगा, शुभा, तुगा, किलाटी, पुष्पघातक, बृहत्तृण, तृणकेतुक, कण्टालु, महाबल, दृढ़ग्रन्थि, दृढ़पत्र, धनुर्द्रुम, दृढ़काण्ड, कीचक, कुक्षिरन्ध्र, मृत्युबीज, वादनीय, फलान्तक, तृणकेतु, तृणराजक, बहुपर्वन्, दुरारुह, सुशिराख्य;
Hindi-बाँस, कांटा बांस;
Uttrakhand-कॉन्टाबांस (Kantabans);
Odia-बेयूदोबांसो (Beudobaunso), कोंटाभ्रंशो (Kontabanso);
Urdu-बांस (Bansa);
Assamese-काटा (Kata);
Kannada-बिदीरु (Bidiru), गाले (Gale);
Gujrati-वाँस (Bans);
Telugu-वेदरू (Bedaru), बोंगा (Bonga);
Tamil-मुंगिल (Mungil);
Bengali-बाँश (Bansh);
Panjabi-मागे (Magae), नाल (Nal);
Nepali-बांस (Bans);
Marathi-बांबू (Bamboo), कलाक (Kallak);
Malayalam-इल्ली (Illi), वेणु (Venu), काम्पू (Kampu)।
English-मेल बैम्बु (Male bamboo), स्पाईनी बैम्बु (Spiny bamboo);
Arbi-कसाब (Qasab), तवाशीर (Tabashir);
Persian-नाइ (Nai)
बांस का औषधीय गुण
बांस प्रकृति से मीठा, एसिडिक, तीखा, कड़वा, भारी,रूखा और ठंडे तासीर का होता है। यह कफ और पित्त कम करने में सहायता करता है। बांस के फायदे के कारण कुष्ठ, व्रण या अल्सर, सूजन, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, प्रमेह या डायबिटीज, अर्श या पाइलस तथा जलन कम करने में मददगार होता है।
बांस का अंकुर कड़वा, मधुर, तीखा, अम्लिय या एसिडिक,रूखा, भारी, मल-मूत्र को निकालने वाला और कफ बढ़ाने वाला होता है। यह जलन, रक्तपित्त यानि नाक या कान से खून बहने की बीमारी तथा मूत्र संबंधी बीमारियों में भी फायदेमंद होता है।
वंशलोचन भी कड़वा, मधुर, ठंडे तासीर का, रूखा, वात कम करने वाला, पौष्टिक, वीर्य या सीमेन बढ़ाने वाला, स्वादिष्ट, रक्त को शुद्ध करने वाला और शक्ति बढ़ाने वाला (banslochan ke fayde) होता है। यह प्यास, खांसी, बुखार, क्षय, रक्तपित्त यानि नाक या कान से खून बहने की बीमारी , कामला या पीलिया, कुष्ठ, पाण्डु या एनीमिया,मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, अपच तथा जलन कम करने में मदद करता है।
यह उल्टी, अतिसार या दस्त, प्यास, जलन या गर्मी, कुष्ठ, कामला या पीलिया, रक्तछर्दि या खून की उल्टी, फूफ्फूस में सूजन, खाँसी, सांस लेने में तकलीफ, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, मुखपाक (Stomatitis),बुखार या फीवर, आँख संबंधी रोग एवं सामान्य कमजोरी (कमजोरी मे चीकू के फायदे)में फायदेमंद होता है। बांस की जड़ प्रकृति से ठंडी, विरेचक या शरीर से मल-मूत्र निकालने में मददगार, मूत्र संबंधी बीमारी में लाभकारी तथा शक्ति बढ़ाने में मददगार होती है। इसके पत्ते भी प्रकृति से ठंडे, आँख के बीमारी में लाभकारी और बुखार से राहत दिलाने में सहायता करते हैं।
Bambusa arundinacea, willd POACEAE (GRAMINAE)
ENGLISH NAME:-Bamboo. Hindi-Bans
DESCRIPTION:-Agiant bamboo with stout rootstalks, the clump reaching 50-60 feet and high/stem golden yellow. TASTE:-Acrid.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Stem contains: Cyanogenic accumulation-Banslochan, Lliquid-accumulation in hollow inter nodes is tabashin and Benjoic acid.
Expectorent, stimulant, Tonic, Anti, spasmogenic, Antithirst. USED withlime, applied on used tocure tuber culsis, Bronchitis, Asthma, Bans lochan is also Tuberculosis, Asthma, Leprosy; Extract of the young aerial shoots is blood purifier and also useful in leucoderma and inflammation.