प्रचलित नाम– सतमूली/सतावर
प्रयोज्य अंग– कंद सदृश रस युक्त मूल तथा पत्राभास कांड।
स्वरूप– विशाल घनी, अतिशाखीत, पत्र रहित, कंटकयुक्त लता तथा पत्र सदृश्य शाखाएँ, पुष्प सफेद छोटे होते हैं।
स्वाद – मधुर ।
रासायनिक संगठन-इसके रस युक्त मूल में शर्करा, श्रेष्मा (लुआब) एवं सेपोनिन्स, इसके ताजे पत्राभास कांड में-डायोसजेनिन, चारसेपोनिनन्स (शतावरीन) चौथे शतावरीन में ग्लायकोसाइड्स। (सारसा सेपोजेनिन) रहामनीस तथा ग्लूकोज घटक पाये जाते हैं। गुण- रसायन, मेधावर्धक, ग्राही, स्तन्य जनन, शुक्रवर्धक, हृद्य तथा मूत्रल ।
उपयोग– संभावित गर्भपतन, श्वेत प्रदर, शुक्रदौर्बल्य, सामान्य दौर्बल्य, दुग्ध वर्धक, शिरोवेदना, मूर्छा में, रक्तमाराधिक्य को कम करता है।
अम्लपित्त एवं आमाशयिक व्रण में उपयोगी।
पत्राभास कांड का सत कैंसर प्रतिरोधक है।
पत्राभास कांड का स्वरस- 2-4चम्मच दिन में दो बार दुग्ध एवं शर्करा के साथ इसका प्रयोग बलवृद्धि के लिये किया जाता है।
मूत्र में रक्त आना-इसके मूल के चूर्ण में समभाग गोक्षुर का चूर्ण मिलाकर इसमें से एक चम्मच चूर्ण लेकर एक कप दूध में उबाल कर, शर्करा मिलाकर प्रातः प्रतिदिन तीन बार सेवन कराने से मूत्र में रक्त का आना बंद होता है।
रक्तातिसार में-शतावरी का ताजा चूर्ण बकरी के दूध में सेवन कराने से तथा चावल का सेवन बकरी के दूध के साथ कराना चाहिए।
मूत्रकृच्छ्र में-इसके मूल का चूर्ण शीतल जल के साथ सेवन कराना चाहिए।
स्वरभेद (कंठ दोष) में- जुकाम-कफ के कारण स्वर भेद हो जाये, तो इस में शतावर के मूल का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन कराना चहिए।
रात्रि अंधता में इसकी हरिताभ शाखाओं को घी में सेक कर सेवन कराने से लाभ होता है।
रक्तपित्त में-शतावर के मूल का चूर्ण दूध में उबालकर सेवन कराने से इस रोग में लाभ होता है।
आंतव्रण में-उदर, अमाशय, छोटी आंत में अल्सर होने पर शतावरी के मूल का चूर्ण (बड़ी चम्मच) बकरी के दूध में उबालकर प्रतिदिन तीन -चार बार सेवन कराने से इस में लाभ होता है।
अम्लपित्त में शतावर के मूल का चूर्ण दूध में उबालकर सेवन कराना चाहिए या चूर्ण जल के साथ फाकी के रूप में सेवन कराने से लाभ होता है।
स्त्रीरोग में प्रसूता माता के दूध में कमी हो या गर्भाशय में किसी प्रकार की विकृति हुई हो तो शतावर मूल का चूर्ण अधिक बार सेवन कराने से लाभ होता है।
शुक्रदोष में शुक्राणुओं की कमी, वीर्य का पतला होना, शुक्रदौर्बल्य, नपुंसकता में शतावर के मूल का सेवन दूध के साथ या चूर्ण का पाक बनाकर सेवन कराना चाहिए।
वृक्क शोथ में रक्त प्रदर एवं श्वेत में-इसके मूल का चूर्ण दूध में उबालकर सेवन कराने से लाभ होता है। प्रमेह में (मधुमेह) बीस प्रकार के प्रमेह में एक कप दूध में २० ग्राम शतावर रस मिलाकर पिलाना चाहिए।
राजयक्ष्मा में (टी. बी.) इसके मूल का चूर्ण एक-एक चम्मच प्रातः सायं दूध के साथ सेवन कराना चाहिए।
आरोग्य सुरक्षा के लिये-स्वास्थ्य, बुद्धि, शक्ति, शुक्र दौर्बल्य में, एक चम्मच शतावर चूर्ण दूध में उबालरक या जल के साथ सेवन कराना चाहिए।
मात्रा- मूल का चूर्ण- 3-6ग्राम क्वाथ 50-100 । स्वरस 10-20मि.ली.
अन्य भाषाओं में सतावर के नाम
• Asparagus in Hindi or Asparagus meaning in Hindi- सतावर, सतावरि, सतमूली, शतावरी, सरनोई
• Shatavari in English- Wild asparagus (वाईल्ड एस्पैरागस)
• Asparagus in Sanskrit-शतावरी, शतपदी, शतमूली, महाशीता, नारायणी, काञ्चनकारिणी, पीवरी, सूक्ष्मपत्रिका, अतिरसा, भीरु, नारायणी, बहुसुता, बह्यत्रा, तालमूली, नेटिव एस्पैरागस (Native asparagus)
• Asparagus in Urdu- सतावरा (Satavara)
• Asparagus in Oriya- चोत्तारु (Chhotaru), मोहनोले (Mohnole)
• Asparagus in Gujarati- एकलकान्ता (Ekalkanta), शतावरी (Shatavari)
• Asparagus in Tamil or Asparagus meaning in tamil- किलावरि (Kilavari), पाणियीनाक्कु (Paniyinakku)
• Asparagus in Telugu or Asparagus in telugu- छल्लागडडा (Challagadda), एट्टावलुडुटीगे (Ettavaludutige);
• Asparagus in Bengali- शतमूली (Shatamuli), सतमूली (Satmuli)
• Asparagus in Punjabi- बोजान्दन (Bozandan); बोजीदान (Bozidan)
• Asparagus in Marathi- अश्वेल (Asvel), शतावरी (Shatavari)
• Asparagus in Malayalam- शतावरि (Shatavari), शतावलि (Shatavali)
• Asparagus in Nepali- सतामूलि (Satamuli), कुरीलो (Kurilo)
• Asparagus in Arabic- शकाकुल (Shaqaqul)
• Asparagus in Persian- शकाकुल (Shaqaqul)
• Asparagus racemosus, Willd. LILACEAE
ENGLISH NAME:- Asparagus. Hindi – Satawar/Sahasmuli
PARTS-USED:- Fleshyroots and cladodes. DESCRIPTION- Extensive spinous much branched climber, leafless with cladodes
white & small Flowers. TASTE:-Sweet.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Fleshyroots Contains: Sugars, Mucilage& saponins, Fresh cladodes contain:- Diosgenin, Four saponins (Shatavarin), Shatavarin IV is Glycosides of Sarsa sapogenin, Rhamnese and Glucose. ACTIONS: Rejuvenator, Nervine tonic, Astringent, Galactogogue, spermo poietic Heart tonic Diuretic.
USED IN:-Threaten abortion, Leucorrhoea, Seminal debility, Goneral debility, Agalactia, Headach, Hysteria, Reduces blood pressur; Useful in acidity and ulcer patient, Extract of cladode is Anticancer.