प्रचलित नाम– सफेद मुशली/खैरूव।
प्रयोज्य अंग– रसदार मूल एवं पत्राभास कांड।
स्वरूप– विशाल कंटकीय लता, शाखाएँ झुकी हुई धारदार, कंटक 1-2से 3-4 इंच लम्बे पत्ते सदृश शाखाएँ जो 6-20के झुमके में होती है।
स्वाद – मधुर ।
रासायनिक संगठन-इसके रस युक्त मूल में शर्करा एवं लेष्मा (लुआन) पाये जाते हैं। पत्राभास कांड, ग्लायकोसाइड्स एवं सेपोनिन्स घटक पाये जाते हैं।
गुण– शीतल, स्नेहन, बल्य, मधुर, शुक्रवर्धक ।
उपयोग– इसमें स्टार्च न होने के कारण इसके कांड का उपयोग मधुमेह में किया जाता है।
सभी प्रकार के दौर्बल्य में शुक्रदौर्बल्य में, श्वेत प्रदर में, अतिसार एवं प्रवाहिका में लाभकारी।
शुक्र वृद्धि के लिये-इसके मूल कंद को अच्छी तरह धोकर ऊपर से छील कर तथा अच्छी तरह सूखने के पश्चात् महीन चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए।
इसके पश्चात् प्रतिदिन १४ तोला गाय के दूध में मूसली का चूर्ण दो तोला मिला कर अग्नि पर परख कर इस दूध को अच्छी तरह उबाल लो (आधा दूध रह जाने तक) इसमें तीन तोला मिश्री, घी दो तोला, मिलाकर थोड़ा पका लो, इसके पश्चात् इसमें जायफल, छोटी इलायची दाना का चूर्ण एवं केसर तथा बादाम एवं चिरौंजी मिला लो (मात्रा अनुसार) इसमें से आधा पाक प्रातः तथा आधा सायं समय नित्य सेवन करना चाहिये। इस तरह प्रतिदिन ताजा तैयार कर सात दिन या चौदह दिन तक सेवन करने से शुक्रवृद्धि होकर वीर्य गाढ़ा बनता है।
अश्मरी में इस मूसली के कंद खाने से अश्मरी गलकर बाहर आ जाती है।
प्रदर में-इस मूसली के कंद तथा गुड़हल की कलियाँ मिश्री के साथ खाकर ऊपर से दूध पीना चाहिये।
संग्रहणी में:- इस मूसली के कंद को छाछ में पीसकर एक तोला खिलाना चाहिये।
पथ्य-छाछ एवं चावल खाने चाहिये।
मात्रा- इसका प्रयोग एक ग्राम चूर्ण में एक ग्राम चीनी मिलाकर दूध के साथ किया जाता है।

Asparagus adscendens, Roxb. LILIACEAE
ENGLISH NAME:- Musale. Hindi – Musele. PARTS-USED:- Fleshyroots and cladodes.
DESCRIPTION:- A large spinyclimber, Scandent angular, branches, spines 1/2 to 3/4 Inch. Cladodes 6-20 incluster.
TASTE:-Sweet.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Fleshyroots Contains: Sugars & Mucilage, Cladode Contains Glycosides and Saponins. ACTIONS: Cooling, Demulscent and Tonic, Sweet, Spermopoiteic. USED IN:-Diabetes, General debility, Seminal debility, Leucorrhoea, Diarrhoea, Dysentery.