प्रचलित नाम- दवना/दौना
प्रयोज्य अंग- पंचांग ।
स्वरूप-गुल्म जैसा लम्बा सुगंधित क्षुप, आधे से ढाई मीटर ऊँचे, पत्ते लम्बे पतले एवं खंडित
होते हैं।
स्वाद – तिक्त ।
रासायनिक संगठन इस वनस्पति में – कार्बोदित, ग्लायकोसाइड्स-ट्रायटर्पेनोइड्स, टैनिन्स, फिनॉल्स, एल्युमिनियम, कैल्शियम, लोह लैड एवं उड़नशील तेल घटक पाये जाते हैं।
गुण- रसायन, शामक, मूत्रल, ज्वरघ्न, दीपन, पाचन, व्रण रोपण, वामक, उद्वेष्टनरोधी।
उपयोग- शोथ में, मूत्र अवरोध, ज्वर, श्वासरोग, आध्मान, कृमि एवं बच्चों के जलोदर में प्रयोग किया जाता है।
इसके स्वरस को कर्णशूल में डालते हैं।
यह कफ, वायु, विष दोष, श्वासरोग, ज्वर, कृमि तथा दुर्गन्ध का नाश करता है।
इसके पत्रों के स्वरस का सेवन करने से बच्चों के कृमि नष्ट होते हैं, उदरशूल तथा आध्मान में भी लाभकारी। इसी प्रकार इसके पत्रों के स्वरस का उपयोग यदि प्रौढ़ व्यक्ति करता है, तो अजीर्णता एवं उदरशूल में उसे लाभ होता है। यदि घरों में चांचड जैसे जन्तु हो गये हों, तो दमनक के पौधे घर में रखने पर इसकी उग्रगंध से ऐसे जीव जन्तु बाहर भाग जाते हैं।
डॉ. देसाई के मतानुसार दमनक कड़वा, पाचन, ज्वरघ्न, संकोच विकास प्रतिबंधक, वामक, आनुलोमिक, आर्त्तवजनक एवं व्रणरोपण है।
अधिक मात्रा में इसका सेवन हानि करता है, इसलिए पत्र स्वरस की 5-10 बूँद ही सेवन करनी चाहिए।
यह औषधि बच्चों के लिये दिव्य औषधि है, बच्चों के सर्वरोगों में उपयोग किया जाता है। वात तथा संकोच विकास प्रधान रोगों में विशेषतः कमजोरी होने पर सेवन कराया जाता है। उदर एवं आंतरोगों में तथा आध्मान उदरकृमि में त्रिकटु एवं डीकामाली के साथ प्रयोग किया जाता है। इसके पंचांग के क्वाथ से दुष्टव्रण को धोने से दर्द कम होकर व्रण ठीक होता है। इसके फांट का प्रयोग अनार्त्तव में लाभकारी।
कृमिरोग में इसके पंचांग का चूर्ण रात भर जल में भिगोकर प्रातःकाल दातून करने के पश्चात् थोड़ा खाकर इस जल को छानकर पीने से कृमि थोड़ी ही देर में बाहर निकल आते हैं।
मात्रा-पंचांग का क्वाथ-5 मि.ली. चूर्ण- ½ -1 ग्राम ।

अन्य भाषाओं में दमनक के नाम
Sanskrit-दमनक, दान्त, मुनिपुत्र, तपोधन, गन्धोत्कट, ब्रह्मजट, विनीत, कलपत्रक, दमन;
Hindi-दौना, दवना (मजपत्री, नागहोन);
Odia-दोयोना (Doyona), नागोदोयोना (Nagodoyona);
Kannada-मान्जे पत्रे (Manje pathre);
Gujrati-डमरो (Damero);
Tamil-मचीपत्तरी (Machipatri), तिरुनिपचाई (Tirinupachai);
Telugu-दवनामु (Davnamu), मचीपथी (Machipathri);
Nepali-तितेपाते (Titepatae);
Punjabi-तर्खा (Tarkha), बन्जीरू (Banjiru);
Malayalam-तिरुनीपत्र (Tirunipatra), अप्पा (Appa), कटुचट्टी (Kattuchatti), नीलम्पला (Nilampala);
Marathi-दवना (Davana), गाथोना (Gathona), सुरबन्द (Surband)।
English-मदरवर्ट (Motherwort), सेजब्रश (Sagebrush)
Artemissia vulgaris Linn. ASTERACEAE (COMPOSITAE)
ENGLISH NAME:-Indian worm wood/Fleabane. Hindi – Nagdaman
PARTS-USED:- Whole plant.
DESCRIPTION:- A tall aromatic shrub like herb, 0.5-2.5 meter high leaves linear dissected.
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Plant Contains: Carbohydrates, Glycosides, Proteins, Resins, Steroids Triterpenoids, Tannins, Iron & Volatile oil.
ACTIONS: Rejuvenator, Demulcent, Diuretic, Antipyretic, Stomachic, Digestive, wound healing, Emetic, Antispasmodic. USED IN:-Inflammation, Retention of urine, Fever, Asthma, Flatulance, Worms and Dropsy (Inchilderen)