प्रचलित नाम- ईशर मूल, रुद्रजटा, ईश्वरी, गंधनाकुली, अर्कमूल
प्रयोज्य अंग- पंचांग ।
स्वरूप-काष्टीय लता, शाखाएँ नलाकार धारदार एवं सुगंधित;
पत्ते हृदयाकार एवं हरे रंग के,
पुष्प बतख आकार एवं हरित वर्णी होते हैं।
स्वाद-तिक्त ।
रासायनिक संगठन-इस वनस्पति में एरिस्टोलॉकिन के तीन क्षार, तीन भूयात्य अम्ल (एरीस्टीनिक, एरीस्टीडीनिक एवं एरिस्टोलिक अम्ल) इसके अतिरिक्त उड़नशील तेल जिसमें संभवत: बोर्नीऑल पाया जाता है। राल, टैनिन एवं स्टार्च घटक भी पाये जाते हैं।
गुण- बल्य, उत्तेजक, गर्भाशय संकोचक, • ज्वरहर, शूलहर एवं विषहर ।
उपयोग- ज्वर, आमवात, संधिशोथ एवं कोष्ठ अल्पमात्रा में आमाशय उत्तेजक, अधिक मात्रा में प्रयोग विषैला है। चूर्ण का प्रयोग ज्वर एवं संधिशोथ में अत्यंत लाभकारी। श्वित्र में पंचांग का रस मधु में मिलाकर लगाया जाता है। पत्रों के रस का प्रयोग सर्पविष में काली मिर्च के साथ सेवन से लाभ होता है।
पत्रों का उदर पर लेप बच्चों के विबंध में लाभकारी ।
ईश्वरी की एक अन्य वनौषधि जो कीड़ामार नाम से जानी जाती है। वर्षा ऋतु में उगती है, जो लघु क्षुप होने के साथ साथ जमीन पर फैली रहती है, पत्र गोल हल्के हरे रंग के (धुँआ लगा हो ऐसे हरे रंग के) पुष्प बैंगनी रंग के होते हैं। यह वनौषधि तिक्त, उष्णवीर्य, शोथघ्घ्री, कृमिघ्न, कासहर, विषघ्न, रुचिकर (स्वयं अरोचक किन्तु गुण में रुचिकर), वात, कफ तथा ज्वर नाशक ।
यह वनौषधि लोगों में बहुत ही प्रचलित है। ताजी अवस्था में इसका प्रयोग अति गुणकारी है। यह गर्भाशय को उत्तेजित करती है, इसलिये गर्भवती महिलाओं के लिये इसका प्रयोग वर्जित है, किन्तु जिन स्त्रियों को अनार्त्तव शूल होता हो, मलावरोध होता ऐसे समय इसके पंचांग सेवन कराने अच्छा होता है। कीड़ा मार पत्रों एरण्ड तेल लगाकर थोड़ा गरम बच्चों नाभि पर बाँधने दस्त होकर पेट साफ जाता है। उदरशूल कारण शिशु हो, तो भी हो जाता है।
कृमिरोग इसके का रस प्रतिदिन आधा चम्मच सेवन से कृमि हो जाते हैं। प्रसव समय गर्भाशय संकोचन लिये इसके का प्रयोग किया जाता इसमें अर्गट जैसा गर्भाशय संकोचन गुण प्रसव पश्चात् गर्भाशय संकोचन लिये इसके का प्रयोग किया है। सोराइसीस चर्मरोग में इसके पंचांग का एरण्ड के तेल में पकाकर इसका प्रयोग करने से लाभकारी सिद्ध हुआ है।
यह वनौषधि समग्र वर्ष ताजी अवस्था में उपलब्ध नहीं होती, अतएव जब ताजी अवस्था में उपलब्ध हो, उस समय इसका रस निकालकर या पत्रों को थोड़े से भाप में उबालकर कल्क बनाकर उसमें समभाग काली मिर्च मिलाकर एक-एक रत्ती की गोली बनाकर प्रयोग करना लाभकारी है। मात्रा-पंचांग मात्रा वयस्क व्यक्ति के लिये 100-300 मि.ग्राम। बच्चों के लिये कीटारि घनवटी-एक से दो जल में घिस कर सेवन करानी चाहिए।
Arti Aristolochia indica Linn. ARISTOLOCHIACEAE
ENGLISH NAME:-Indian birthwort. Hindi – Antamool
PARTS-USED:- Whole plant.
DESCRIPTION:-A Woody climber, branches cylindrical striated and aromatic. Leaves cordate green, flowers green. Capsule basket shaped; seeds winged.
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Plant Contains: Three bases of Aristolochine, Nitrogenous acids (Aristinic acid, Aristidinic acid and Aristolicacid). Volatile Oil which. perhaps contains Borneol, Resin, Tannin & Starch. ACTIONS: Tonic, Stimulant, Ebolic, Anti pyretic, Analgesic & Antidote, purgative, anthet mintic, stomachic, cardiotonic, anti-inflammatory, sudorefic.
USED IN:-Fever, Rheumatism, Arthritis and Ascities; In Small amount stimulant to stomach but poisnous when it is used in large amount, flatulence strangary, ameno, rrhoea, catarrh.