प्रचलित नाम-पीलाधतूरा, सत्यानाशी, कटुपर्णी, सुवर्णक्षीरी।
प्रयोज्य अंग-मूल एवं पीतक्षीर
स्वरूप-कंटकी गुल्म, फैली हुई शाखाएँ, पत्ते कंटकयुक्त एवं भिन्न वर्णी; पुष्प पीतवर्णी ।
स्वाद तिक्त ।
रासायनिक संगठन-इसके मूल में- बर्बेरिन, प्रोटापाइन नाईट्रेट, वसा अम्ल, सेरिल एल्कोहल एलोक्रिप्टोपाईन, इसके पुष्पों में टैनिन, रेसीन एवं आर्जीमोन तेल, इसके मूल में बीटासिटोस्टीरॉल, इसके पत्रों में ग्लुकोसाइड्स, केम्फेरीन, एन्थराक्वीनॉन, उत्पततेल एवं क्राइसाफेनीक अम्ल, इसके बीज में स्वादहीन गहरे बदामीरंग का तेल एवं कार्बोदित, एल्युमिनियम, फोस्फेट एवं सल्फेट घटक पाये जाते हैं ।
गुण– कफ निःसारक, कृमिघ्न, मृदुरेचक, शामक, कुष्ठघ्घ्र, शोथहर, रसायन ।
उपयोग- पीतक्षीर-कामला, त्वक् रोग एवं विषम ज्वर में लाभकारी।
इसका बाह्य प्रयोग अंग एवं व्रण से बहते रक्त को बंद करने में किया जाता है।
मूल का स्वरस कालीमिर्च के साथ मिलाकर बच्चों के बिल्ली काटने से होने वाले रोग पर लाभकारी, व्रण रोपण में, कुष्ठ रोग में एवं रक्तशोधन में लाभकारी।
रेचन के लिये-इसके मूल का चूर्ण गरम जल के साथ (शक्ति अनुसार) सेवन करना चाहिये ।
नपुंसकता दूर करने के लिये-कटुपर्णी की एक माशा छाल तथा बरगद का दुग्ध क्षीर दोनों को गरम कर, चने के बराबर गोली बनाकर 14 दिन तक पान के साथ सेवन करने से नपुंसकता दूर होती है।
सुवर्णक्षीरी तेल- इसके 750 ग्राम बीज उबलते हुए जल में डालने पर कुछ समय पश्चात् जल को ठंडा होने दो, जिससे बीज का तेल जल पर तैरने लगेगा, रुई के फाहे द्वारा इस तैरते हुए तेल को इकट्ठा कर एक छोटी सी शीशी में भर लेना चाहिए। इस तेल का प्रयोग-खाज-खुजली में प्रतिदिन स्नान से पहले किया जा सकता है।
नेत्र रोग में-सुवर्णक्षीरी का क्षार एक माशा, पाँच तोला गुलाब जल में मिलाकर, प्रतिदिन दो बार दो-दो बूंद नेत्रों में डालने से नेत्र शोथ नेत्रों की लाली धुँध, जाली तथा नेत्रफूली दूर होकर नेत्रों को लाभ होता है। इसके अतिरिक्त इसके पत्रों का स्वरस नेत्रों में डालने से उपुर्यक्त नेत्ररोगों में लाभ होता है।
श्वास रोग तथा कास में-इसके मूल का चूर्ण आधा से एक ग्राम उष्ण जल या दूध के साथ पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है। या चार से पाँच बूँद पीतक्षीर को बतासे पर डालकर सेवन कराने से लाभ। नेत्र रोगों में इसके पीतक्षीर को शीशे के बर्तन में डालकर इस रस से दो गुना गाय का घी मिलाकर अच्छी तरह घोंटना चाहिए। नेत्रों में इसका अंजन करने से अनेक नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
दद्रु रोग में इसके स्वरस का प्रयोग रोग ग्रस्त भाग पर करने से लाभ होता है।
जलोदर में इसका स्वरस पिलाने से मूत्र खुल कर आता है तथा संग्रहित जल निकल जाता है।
उत्तम रक्त शोधक-इसके पंचांग का स्वरस एक भाग, दो भाग मधु में मिलाकर एक तार की चासनी कर बोतल में भर लेना चाहिये। इसमें से एक तोला लेकर, दो तोला जल में मिलाकर पिलाने से सर्व प्रकार के रक्त विकार मिट जाते हैं।
चर्म रोगों पर (छाले, फोड़े, फुन्सी, विस्फोटक, खुजली, दाह, फिरंग, उपदंश) – पंचांग का रस या पीतक्षीर को रोग ग्रस्त भाग पर लगाने से लाभ होता है।
कफ प्रकोप सहित श्वास रोग में इसके पत्रों के रस के रस क्रिया (घन) बनाकर इसमें बेन्झेइक एसिड समभाग मिलाकर चने के बराबर बनाकर श्वासरोगी को खिलाने से लाभ होता है।
इयोसीनोफिलिया नाम का श्वास रोग हुआ हो, जिसमें रक्त में श्वेत कणों की मात्रा बढ गयौ हो एवं श्वासरोग जैसे ही चिह्न दिखाई देते हैं, इसका प्रयोग करने से इस रोग में लाभ होता है।
फिरंग रोग (सिफिलिस) कटुपर्णी के. पंचांग का रस निकालकर, इसमें से आधा तोला लेकर एक मि. ली. दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए। इसके छालों पर कटपुर्णी का क्षीर भी लगाना चाहिये।
कुष्ठ रोग (लप्रेसी) -इसके स्वरस में थोड़ा नमक छांट कर सेवन से (कुछ लम्बे समय तक) लाभ होता है। प्रतिदिन आधा से एक तोला ताजे रस का सेवन लाभकारी होता है यह प्रयोग चालू रखना चाहिए।
खाज-खुजली में कटुपर्णी का क्षीर लगाने से लाभ होता है। या इसके पत्रों के रस को तेल में पका कर (100 मि.ली. रस को 400 मि.ली. सरसों का तेल) इस पके हुए तेल का प्रयोग लाभकारी है।
पीतक्षीर का प्रयोग पीलिया तथा विषम ज्वर में लाभकारी। पुराने व्रण एवं खुजली में लगाने से लाभ होता है।
Argemone maxicana Linn. PAPAVARACEAE
ENGLISH NAME:- Mexican Poppy/Prickly poppy.
Hindi – Satyanashi 37
PARTS-USED:-Roots and Yellowlatex.
DESCRIPTION: – A Prickly herbwith spreading branches and yellow sap. leaves Spiny & Variegated; Flowers-Yellow. Spine ending, amplexicaule, lobect
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS-Roots Contain:-Berberine, Protopine nitrate, Fatty acids, Ceryl alcohol, Allocryptopine; Flowers Cantain: Tannin, Resin and Argemone oil; Root Cantain: Betasitosterol, Leaves Cantain: Glucosides, Kampferin, Anthraquinone, Essential oil & Chrysophanic acid; Seeds Contain: Tasteless. oil of Darkbrowncoluor and Carbohydrates, Albumin, Phosphate & Sulphate.
ACTIONS: Expectorent Anthelmintic, Laxative, Demulcent, Antileprotic, Anti inflammatory, Rejuvinator.
USED IN:-Latex-yellow used in Jaundice, skin affection, Malaria, applied externally to stopbleeding from cuts and wounds; Root’s juice mixed with peppar is given to children for the disease of supposed to be caused by cats, in woud healing, Leprosy, Blood purifier.