रांचीःआजसू ने एक बार फिर 73 फीसदी आरक्षण की मांग की है. सरकार में आजसू कोटे के मंत्री रामचंद्र सहिस ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि झारखंड में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण मिलना उनका संवैधानिक अधिकार है. एकीकृत बिहार में भी पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी आरक्षण हासिल था. जबकि झारखंड अलग होने के बाद इसे 14 फीसदी कर दिया गया. आरक्षण के मसले पर 2001 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया गया था. इस उपसमिति में पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो भी शामिल थे. सुदेश महतो की विशेष पहल पर मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32, पिछड़ा वर्ग 27 व अनुसूचित जाति को 14 फीसदी यानि 73 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की गई थी. वर्ष 2002 में 73 फीसदी आरक्षण को लेकर संकल्प भी जारी किया गया था. बाद में इसे झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. कोर्ट के आदेश के आलोक में सरकार ने सेवाओं की नियुक्तियों में 50 फीसदी आरक्षण सीमित रखने का निर्णय लिया. जबकि सरकार को शासनिक और न्यायिक स्तर पर इस मामले में पहल करनी चाहिए थी.
दूसरे राज्यों में मिल रहा पिछड़ों को 30 से 50 फीसदी आरक्षण
मंत्री सहिस ने कहा कि तमिलनाडू, केरल, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश, आंध्रप्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में पिछड़ों को 30 से 50 फीसदी तक आरक्षण हासिल है. राज्य की सरकारें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ा सकती हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 82 फीसदी कर दिया है. वहां अनुसूचित जनजाति को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 13 फीसदी और पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है. इसी पैटर्न पर झारखंड में भी आरक्षण बढ़ाया जाना चाहिए.
पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा
झारखंड में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 2014 में ही पिछड़ों का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी की जाने की अनुशंसा की जा चुकी है. आयोग ने अपनी अनुशंसा में स्पष्ट रूप से कहा है कि झारखंड में पिछड़े वर्गों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति दयनीय है. सरकारी नौकरी में इनका प्रतिनिधित्व कम है. मंत्री सहिस ने कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई पार्टी की विचारधारा है. जबकि झामुमो के लिए ये चुनावी नारा है.