नई दिल्ली, 21 जून : अरुणाचल प्रदेश में तीन जून को एएन-32 हादसे में मारे गए 13 में से पांच वायुसैनिकों को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को श्रद्धांजलि दी। यहां पालम टेक्नीकल क्षेत्र में आयोजित समारोह में एयर चीफ मार्शल बी. एस. धनोआ भी उपस्थित थे। गुरुवार को ईस्टर्न एयर कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, एयर मार्शल आर डी माथुर ने जोरहाट में एक श्रद्धांजलि समारोह में वायु सेना के कर्मियों को श्रद्धांजलि दी।
वायुसेना ने दुर्घटना के 18 दिन बाद गुरुवार को छह वायुसेना कर्मियों के शवों और सात के अवशेषों को बरामद किया था। इसके बाद इन अवशेषों को असम के जोरहाट लाया गया।
वायुसेना ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘भारतीय वायुसेना एएन-32 विमान हादसे में तीन जून 2019 को अपनी जान गंवाने वाले बहादुर एयर वॉरियर्स को श्रद्धांजलि देती है। दुख की इस घड़ी में हम पीड़ितों के परिवार के साथ खड़े हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले।’असम के जोरहाट हवाई अड्डे से तीन जून को दोपहर करीब 12.30 बजे उड़ान भरने वाला वायु सेना का विमान एएन-32, शियोमी जिले के मेचुका एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड में कभी नहीं पहुंचा। विमान का अंतिम संपर्क ग्राउंड स्टाफ के साथ उस दिन दोपहर एक बजे हुआ था। विमान लापता होने के दिन से ही सेना, आईटीबीपी, भारतीय नौसेना, इसरो, राज्य पुलिस और जिला प्रशासन सहित विभिन्न एजेंसियों के कर्मियों और संसाधनों को इसकी तलाश थी। खोज के लिए सी-130जे विमान, सुखोई-30 एमकेआई विमान, भारतीय नौसेना के पी8आई लंबी दूरी के टोही विमान, उन्नत लाइट हेलीकॉप्टर, एमआई-17 और चीता हेलीकॉप्टर तैनात किए गए और उपग्रह फोटोग्राफी भी की गई। लापता एएन-32 का मलबा अरुणाचल के सियांग जिले के जंगल में मिलने की पुष्टि के बाद बुधवार को दो हेलीकॉप्टर के जरिए 15 जवान और पर्वतारोही दल को दुर्घटना वाले इलाके में उतारा गया था। भारतीय वायुसेना का खोजी दल गुरुवार सुबह एएन-32 विमान के दुर्घटनास्थल पर पहुंचा, जहां उन्हें कोई भी जीवित नहीं मिला। वायु सेना ने कहा कि इसी वजह से विमान में सवार 13 लोगों के परिवारों को सूचित कर दिया गया है कि कोई जीवित नहीं है।
विमानों के लिए अत्यंत दुर्गम क्षेत्र
कई शोध में यह बात सामने आई है कि अरुणाचल के इस इलाके में वायुमंडल में बहुत ज्यादा हलचल रहती है। तकरीबन 140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा यहां की घाटियों के संपर्क में आने पर ऐसी स्थितियां बनाती हैं कि विमानों के लिए उड़ान भरना मुश्किल हो जाता है।
सर्च ऑपरेशन भी कठिन
दूर-दूर तक घने जंगल और आबादी नहीं होने के कारण लापता विमानों की खोजबीन करने का कार्य भी बेहद कठिन है। इसमें कई बार दशकों लग जाते हैं। इससे पहले भी अरुणाचल की पहाड़ियों पर कई बार ऐसे विमानों का मलबा मिल चुका है, जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लापता हो गए थे। इसी साल फरवरी में ईस्ट अरुणाचल के रोइंग जिले में 75 साल पहले लापता हुए एक विमान का मलबा मिला था। यह अमेरिकी वायुसेना का विमान था, जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान असम से चीन के लिए उड़ा था।
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वायुसेना का भरोसेमंद विमान है एएन-32
इस विमान में पायलट, को-पायलट, गनर, नेविगेटर और इंजीनियर सहित 5 क्रू-मेंबर होते हैं। इसमें अधिकतम 50 लोग सवार हो सकते हैं। जीपीएस से लैस इस विमान में मौसम की जानकारी देने वाला रडार और मॉडर्न नेविगेशन सिस्टम होता है इसलिए इसका इस्तेमाल हर तरह के मैदानी, पहाड़ी और समुद्री इलाकों में किया जाता रहा है, चाहे सैनिकों को पहुंचाने की बात हो या सामान ढोकर ले जाने की। 2009 में भारत ने 400 मिलियन का कॉन्ट्रैक्ट यूक्रेन के साथ किया था, जिसमें एएन-32 की ऑपरेशन लाइफ को अपग्रेड और एक्सटेंड करने की बात कही गई थी। अपग्रेड किये गए एएन-32 आरई एयरक्राफ्ट 46 में 2 कॉन्टेमपररी इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर्स शामिल किए गए हैं लेकिन एएन-32 को अब तक अपग्रेड नहीं किया गया था।
पहले भी हादसे के शिकार हो चुके हैं एएन-32
इससे पहले भी एएन-32 विमान हादसे का शिकार हुए हैं। एक हादसा तो पहली बार भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद अरब सागर के ऊपर हुआ था। साल 2009 में अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम सियांग जिले के एक गांव के पास एएन-32 विमान हादसे का शिकार हुआ, जब इस विमान में सवार 13 लोग मारे गए थे। साल 2016 में एक अन्य एएन-32 विमान बंगाल की खाड़ी के ऊपर लापता हो गया था, जो चेन्नई से पोर्ट-ब्लेयर की उड़ान पर था और उसमें चालक दल के छह सदस्यों सहित कुल 29 लोग सवार थे। काफी खोजबीन के बाद आज तक न तो सेना को उस विमान का मलबा मिला और न ही उसमें सवार किसी के शव।