सुनील कुमार,
जमशेदपुर: झारखंड में काफी पुराने तथा नए जल क्षेत्र हैं, जो मुख्यतः वर्षा पर आधारित हैं. जल क्षेत्रों का निर्माण सिंचाई के लिए किया जाता है, ताकि यहां के किसान अपने खेतों में दो-तीन फसल उगा सकें. लेकिन पानी और वर्षा की किल्लतों को देखते हुए किसानों ने यह तय किया कि क्यों ना हम जल संचय करने का कोई अच्छा तरीका अपनाएं. अगर हम जल संचय नहीं करेंगे तो यहां कृषि और उनसे जुड़े हुए कार्यक्रमों का विकास इस राज्य में संभव नहीं है. इसलिए सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान किसानों को अधिक से अधिक तालाब पोखर बनाने को लेकर प्रोत्साहन दे रही है.
आज लगभग 29 हजार हेक्टेयर जल क्षेत्र इस राज्य में उपलब्ध है. लगभग 0.2% की दर से इसमें वृद्धि हो रही है. इन सभी जल क्षेत्रों में मछली पालन की असीम संभावनाएं देखी जा रही है, तथा इसका उपयोग मछली पालन के रूप में किसान कर सकते हैं. लेकिन यह कुछ क्षेत्र तक ही सीमित है, अधिकतर जगहों पर किसान इसे अधिक महत्व नहीं देते हैं, जिसके कई कारण है,.अगर भौगोलिक और तकनीकी कारण देखा जाए तो, उनकी मछली का उत्पादन 300 से 500 किलोग्राम वर्ष हेक्टेयर है. जबकि हमारे पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में कुछ किसान 14 सौ हेक्टेयर वर्ष का उत्पादन कर रहे हैं. औसतन देश का उत्पादन भी 12 सौ से 15 सौ किलोग्राम वर्ष हेक्टेयर के लगभग है. इस तरह की स्थिति को देखने से यह प्रतीत होता है कि झारखंड में मछली पालन की असीम संभावनाएं हैं, जिससे किसान को सालों भर रोजगार एवं आमदनी में वृद्धि हो सकती है. इन संभावनाओं को देखते हुए मत्स्य विभाग के जो आला अधिकारी हैं, उनको इनकी समस्याओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यक्ता है.
हम बताते हैं, उन्हें किन-किन बातों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है:
1. तलाब की मिट्टी अम्लीय है, यह सही है,कि मिट्टी अम्लीय होने पर भी तालाब का पानी अम्लीय नहीं होता लेकिन तलाब में दी जाने वाली जैविक खाद की पानी में उपलब्धता कितनी है, यह देखना जरूरी है, जिससे मछली को प्राकृतिक भोजन सुचारू रूप से मिल पाए.
2. तलाब मौसमी है, या उसमें हम जब चाहे पानी की व्यवस्था कर सकते हैं, या उस तालाब का पानी हम हमेशा रिचार्ज कर सकते हैं, जिससे मछलियों को बढ़ने के लिए अधिक समय मिल जाए.
3. शुद्ध एवं सही किस्म के बीज :- मछली पालन के लिए यह बहुत आवश्यक है कि शुद्ध और सही किस्म का बीज (जीरा) उप्लब्ध हो. मत्स्य बीज (जीरा) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो. यह सही है कि विगत कुछ वर्षों से सरकार मत्स्य पालन को लेकर गंभीर हुई है. तालाबों एवं पोखर निर्माण को लेकर सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों के द्वारा अच्छी पहल हुई है. लेकिन अभी भी हम 50% से 60% आवश्यकताओं के लिए दूसरे राज्य पर निर्भर करते हैं.
4. जैविक खाद की कमी :- हमारे झारखंड राज्य में 80% से 90% छोटे और मंझौले वर्ग के किसान हैं. जिनके पास मवेशियों की संख्या काफी कम है, या यूं कहें कि जैविक खाद की इनके पास उपलब्धता न के बराबर है. इन जैविक खादों का उपयोग किसान पहले अपने खेतों में करते हैं, तथा तालाब को प्राथमिकता अंत में देते हैं. इस राज्य के लिए यह भी एक बहुत बड़ी कमी मानी जाती है.
5. पूंजी का अभाव :- क्योंकि मछली पालन में पूंजी की काफी जरूरत पड़ती है. जिस कारण से किसान मछली पालन में अधिक ध्यान नहीं देते. अगर सरकार किसानों की इस समस्या को हल कर दें तो शायद मछली पालक खुश रहेंगे और मेहनत भी करेंगे.
6. जागरूकता की कमी :- हम अक्सर देखते हैं कि मछली पालकों के पास सुचारू रूप से इस मछली पालन को करने के लिए सही तरीका नहीं मालूम है. आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि किसान को सही तरीका नहीं मालूम होने से और उन्हें जागरूक नहीं होने से मत्स्य पालन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इनकी आवश्यकताएं भी काफी कम है इसलिए मछली पालन में किसान अधिक रुचि नहीं लेते. साथ ही साथ भाषा एवं इनका गांव से बाहर न निकलना भी एक बहुत बड़ा कारण है.
बताते चलें कि जब हमने कुछ किसानों से बात की तो उन्होंने यह भी बताया कि सरकार अब मछली पालकों के तरफ रुख कर रही है, और एक उन्नत तरीका अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. मछली पालन के लिए किसानों का यह भी कहना था कि सरकार मत्स्य विभाग के द्वारा उन्हें बीज (जीरा) और मछली के खाने की भी व्यवस्था समुचित रूप से कर रही है. जिससे किसानों को काफी मदद मिल रही है.
हमने जब मत्स्य विभाग के कर्मचारियों से बात की तो मत्स्य विभाग के एक बड़े अधिकारी जो सरायकेला खरसावां में नियुक्त किए गए हैं, उन्होंने हमें इस पर विशेष जानकारी दी और कहा कि हम अपने स्तर से हर गांव के किसानों को मछली पालन की सही जानकारी मुहैया कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मछली पालकों को हम ज्यादा से ज्यादा उन्नत खेती करने का सही तरीका बताएंगे. सरकार ने इस जिले के कई किसानों को इजराइल भेज करके वहां के मछली पालन की उन्नत खेती के बारे में भी काफी जानकारी हासिल कराई है. जिससे यहां के किसान काफी लाभान्वित हुए हैं.,और अपने मछली पालन के रोजगार को एक नई दिशा दे कर अपने जीवन को सुधारने में प्रयासरत हैं.
बहरहाल सरकार और सरकार के अधिकारी अगर मछली पालन पर किसानों को जागरूक करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं कि मछली पालन में झारखंड सबसे अव्वल दर्जे पर होगा.