खास बातें:-
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अति उग्रवाद प्रभावित 13 जिलों में चुनाव कराना पुलिस के लिए बन गई चुनौती
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एक दर्जन जिलों में भाकपा माओवादी और आधा दर्जन जिले में पीएलएफआई संगठन है सक्रिय
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टीपीसी, जेजेएमपी और टीएसपीसी जैसे नक्सली संगठन भी कभी-कभार दर्ज कराते हैं अपनी उपस्थिति
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झारखंड में नक्सली हुए हैं कमजोर, लेकिन उनका पूरी तरह नहीं हो पाया है सफाया
रांचीः झारखंड नक्सल मुक्त हो गया है या नहीं इस पर राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी शुरू हो गई है. बीजेपी का कहना है कि झारखंड में उग्रवाद अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है. वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि झारखंड में 19 जिले उग्रवाद प्रभावित हैं, जिसमें 13 जिले अति उग्रवाग प्रभावित हैं. इस कारण पांच चरणों में चुनाव कराने का निर्णय लिया गया, लेकिन दो दिन पहले चंदवा थाने से महज दो किलोमीटर दूर एक दारोगा समेच चार पुलिस कर्मियों की हत्या कर नक्सलियों ने झारखंड में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है.
यूं कहें कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों से पहले नक्सलियों ने एक बड़ा धमाका कर दिया है. इस घटना में पुलिस प्रशासन को रणनीति बदलने की भी चुनौती दे डाली है.
नक्सलियों में अभी भी दम-खम है बाकी
झारखंड में नक्सली कमजोर हुए हैं, लेकिन उनका पूरी तरह सफाया नहीं हो पाया है. चंदवा और पिपरा बाजार घटना को अंजाम देकर नक्सलियों ने साबित कर दिया है कि अभी भी उनमें दम-खम बाकी है.
झारखंड के अति उग्रवाद प्रभावित 13 जिलों में शांतिपूर्ण चुनाव कराना पुलिस के बड़ी चुनौती बन गई है. इन 13 अति उग्रवाद प्रभावित जिलों में खूंटी, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम, रांची, दुमका, पलामू, गढ़वा, चतरा, लोहरदगा और बोकारो शामिल हैं.
डीआइजी ने चूक की बात भी स्वीकारी
झारखंड पुलिस नक्सलियों पर कार्रवाई पर पूरी तरह से तैयार नहीं है. चंदवा घटना से यह बात भी सामने आ रही है कि पुलिस टीम को न तो अतिरिक्त सुरक्षा बलों की जरूरत महसूस हुई और न ही कोई सावधानी बरती गई.
होमगार्ड के महज चार जवानों को पुरानी रायफल के साथ अत्याधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों से मुकाबला करने की सोंच भारी पड़ गई. चंदवा थाने से महज दो किलोमीटर की दूरी पर नक्सलियों ने चार पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी. डीआइजी ने इस घटना में चूक की बात स्वीकार की है.
कई नक्सली संगठन हैं सक्रिय
झारखंड में कई नक्सली संगठन सक्रिय हैं. उनका प्रभाव भी अलग-अलग जिलों में है. भाकपा माओवादी सबसे बड़ा और खतरनाक नक्सली संगठन है. इसका प्रभाव दुमका, चतरा, लातोहार, पलामू, गढ़वा, गुमला, सिमडेगा, बोकारो, गिरिडीह, पूर्वी सिंहभूम , पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग और रामगढ़ में है.
इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा नक्सली संगठन पीएलएफआइ है. इस संगठन का भी प्रभाव लगभग छह से सात जिलों में है. इसके अलावा टीपीसी, जेजेएमपी और टीएसपीसी जैसे नक्सली संगठन कभी-कभार अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहते हैं.
क्या है प्रशासन की रणनीति
चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है. लेकिन चंदवा और पिपरा की घटना ने पुलिस प्रशासन को फिर से दुबारा रणनीति पर विचार करने को मजबूर कर दिया है. राज्य की पुलिस को विशेष ट्रेनिंग भी दी जा रही है.
नक्सल प्रभावित जिले को ए, बी और सी कटेगरी में बांटा गया है. सुरक्षा बलों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए कम्यूनिकेशन ग्रिड स्थापित किए गए हैं. झारखंड में माओवादी दूसरे राज्यों से आकर चुनाव प्रभावित न करें, इसके लिए समन्वय समिति की बैठकें हो रही हैं.
नक्सल विरोधी अभियान चलाने का फैसला
चुनाव से पहले अति संवेदनशील जिलों में नक्सल विरोधी अभियान चलाने का फैसला लिया गया है. इसमें केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों की भी मदद ली जा रही है. नक्सलियों की सूचनाएं एकत्र करने की रणनीति बनाई गई है.
सूचना देने वाले आमलोगों को पुरस्कृत भी किया जाएगा. जिलों के एसपी को पड़ोसी राज्यों की पुलिस के साथ समन्वय कर अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है. झारखंड पुलिस पड़ोसी राज्यों के संसाधनों का भी इस्तेमाल करेगी. चुनाव आयोग ने पूर्व डीजीपी एम.के. दास को विशेष पुलिस ऑब्जर्वर नियुक्त किया है.
2014 के चुनाव में भी नक्सलियों ने किया था धमाका
इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में शिकारी पाड़ा से मतदान कराकर लौट रहे पांच सुरक्षाकर्मी सहित आठ मतदानकर्मी मारे गए थे. उन्हें बारूदी सुरंग के जरीए विस्फोट करा कर वाहन उड़ा दिया गया था.
इस घटना के बाद तत्कालीन दुमका के एसपी को निलंबित भी किया गया था. फिलहाल इस चुनौती से निबटने के लिए पुलिस प्रशासन को लंबा सफर तय करना है.