राहुल मेहता
रांची: ‘‘14 वर्षीय प्रीति अपनी सहेली के साथ गुमला मेला देखने आयी थी. पर उसकी सहेली को दोस्ती से ज्यादा प्यारा पैसा था. प्रीति चंद पैसों के लिए एक दलाल के हाथों बेच दी गयी. दिन-प्रतिदिन मरती, अपने भाग्य को कोसती प्रीति एक हाथ से दूसरे हाथ जाती रही. जगह बदली परन्तु शोषण नहीं. एक दिन किसी प्रकार वह भाग निकली एवं विभिन्न संस्थाओं के मदद से घर पहुंची.‘‘
मानव व्यापार हमारे समाज के लिए एक कलंक है. ऐसा नहीं कि इस कलंक से विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका या मीडिया अवगत नहीं. अवगत हैं परन्तु गंभीरता व समन्वय में कहीं कमी है जिसके कारण मानव व्यापार अनवरत जारी है.
मानव व्यापार
- लालच देकर जबरन या बहला-फुसला कर एक जगह से दूसरे जगह ले जाना मानव व्यापार कहलाता है.
- अधिकतर मामलों में कोई नजदीकी शामिल होता है.
- दलाल परिवार का भरोसा जीत अच्छे वेतन का लालच देकर बच्चों को ले जातें हैं.
- बाहर बच्चे दलालों पर आश्रित हो जातें हैं. क्रमश: यह जोर जबरदस्ती में बदल जाता है.
- लड़कियां, गुमशुदा, निष्कासित, अनाथ एवं नशे के आदि बच्चे आसान शिकार होते हैं.
- बाल व्यापार, पर्व-त्योवहार, परीक्षा के परिणाम की घोषणा, आपादा आदि के समय ज्यादा होता है.
- दलाल शहरी चकाचौंध, सहज पैसा कमाने का झांसा देकर बच्चों अभिभावकों के अज्ञानता का फायदा उठाते हैं.
भारत सरकार ने 12 दिसंबर 2002 को ‘‘मानव व्यापार निषेध सबंधी प्रोटोकाॅल को अंगीकृत किया.’’ भारत में ‘‘इमोरल ट्रैफिकिंग एण्ड प्रिवेंसन एक्ट-1956, सहित पर्याप्त कानूनी प्रावधान हैं परन्तु हकीकत यह है कि –
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद थाने में मामले सहज दर्ज नहीं होते.
- अधिकतर मानव तस्करी के मामले गुमशुदा के मामले स्वरुप दर्ज होते हैं.
- उज्जवला जैसे केन्द्रिय परियोजना झारखण्ड में क्रियान्वित नहीं हो पाते.
- अधिकतर मानव तस्करी के मामले में अपराधियों को सजा नहीं हो पाती.
ऐसा नहीं है कि सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं हुए. प्रयास हुए हैं परन्तु तालमेल की कमी, विभाग की उदासीनता के कारण प्रभाव कम नजर आते हैं. मानव व्यापार विरोधी कुछ प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं-
- झारखण्ड पुलिस द्वारा मानव तस्कारों का डाटा बेस तैयार करना.
- मननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपेक्ष्य में ज्ञापांक 1676 दिनांक 06.08.2013 के द्वारा सभी थानों को दिशा निर्देश.
- राज्य के प्रत्येक थाना में एक बाल कल्याण अधिकारी को नामित करना.
- गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिये पोर्टल प्रांरभ करना.
- बाल संरक्षण समितियों का गठन व प्रशिक्षण.
झारखण्ड सरकार राज्य ने ‘‘मानव व्यापार रोकने एवं छुड़ाये गये बच्चों के उचित पुनर्वास के लिए राज्य कार्ययोजना’‘ तैयार किया है जिसकी मुख्य विषेशताएं हैं –
- मानव-व्यापार के रोकथाम के तंत्र को सशक्त करना.
- बाल-संरक्षण के तंत्र को सषक्त करना.
- मानव तस्करों के खिलाफ त्वरित एवं उचित कानूनी प्रक्रिया का ढांचा विकसित करना.
- पुनर्वास की उचित व्यवस्था करना.
राज्य सरकार का प्रयास सराहनीय है परन्तु पूर्व के अनुभव से यह शंका होना वाजिब है कि कहीं इस योजना का हाल भी पूर्व के योजना जैसा न हो एवं यह एक सुन्दर प्रलेख बन कर रह जाये.