राहुल मेहता,
रांची: चुनाव में संख्याबल प्राथमिक होती है. परन्तु समाज में आवश्यकता की तीवत्रा को दर किनार नहीं किया जा सकता. समावेशी विकास एवं समावेशी समाज के लिए न्यायपूर्ण बराबरी आवश्यक है.
समावेशी विकास के लिए आवश्यक है ‘बराबरी’ के साथ-साथ ‘न्याय’ पर भी ध्यान देना, क्योंकि अनेक बार शाब्दिक ‘बराबरी’ असमानता को बढ़ावा देती हैं.
उदाहरण स्वरूप यदि एक वयस्क एवं एक बच्चे को समान मात्रा में भोजन दिया जाए तो यह बराबरी तो हो सकती है परन्तु ‘न्याय’ नहीं. बराबरी की मूल भावना ‘न्यायपूर्ण बराबरी है,’ अर्थात् आवश्यकताओं के प्राथमिकता के अनुरुप संशाधनों का बंटवारा.
दिव्यांगता से संबंधित पंचायत के अधिकार एवं दायित्वों का उल्लेख झारखण्ड पंचायत राज्य अधिनियम 2001, झारखण्ड पंचायत नियमावली 2011, झारखण्ड राज्य विकंलागजन नीति 2012, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, झारखण्ड सरकार के विभिन्न संकल्प में उल्लेखित हैं.
पंचायत प्रतिनिधियों का गांव के शासन व्यवस्था, विभिन्न कार्यक्रमों के तहत लाभूकों का चयन, योजनाओं का चयन, योजनाओं को पारित करवाने, अभिकर्ताओं का चयन, कार्ययोजना का क्रियान्वयन, योजनाओं की निगरानी व अनुश्रवण, पंचायत प्रखण्ड एवं जिला स्तरीय समन्वय आदि के साथ-साथ ग्रामीण को जागरूक करने एवं नीति निर्धारकों को परामर्श देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका है.
दिव्यांगजनों का अधिकार सुनिश्चित करना पंचायत प्रतिनिधियों का दायित्व है. गांधी जी का मानना था कि योजना बनाना एक कठिन कार्य है, परन्तु योजना बनाते समय गांव के सबसे कमजोर एवं निर्धन व्यक्ति को ध्यान में रखने से यह कार्य आसान हो जाता है.
दिव्यांगजनों हेतु विशेष कोेषः-
झारखण्ड राज्य विकलांग जन नीति 2012 के प्रावधान खण्ड-8 के अनुसार सभी विभाग को उनके वार्षिक बजट का कम से कम 3 दिव्यांगजनों के विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च करना है.
पंचायत को भी अपने वार्षिक बजट का कम से कम 3 प्रतिशत खर्च दिव्यांगजनों हेतु करना हैै. पंचायत यह खर्च गांव के योजनानुसार कर सकते हैं. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में यह राशी 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दी गई है.
ग्राम सभा की बैठक की सूचना सर्वसुलभ तरीकों से देने का प्रावधान है. सूचना देते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दिव्यांगजनों, विशेषकर श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित एवं बहु दिव्यांगता से ग्रसित वयस्कों तक सूचना अवश्य पहुंचे.
यह मानसिकता कि दिव्यांगजन ग्राम सभा में आकर क्या कर लेंगे अथवा दिव्यांगजन बैठक में नहीं आते अतः उन्हें सूचना ही न दी जाए, समावेश एवं समानता के सि़द्धान्तों के साथ-साथ कानूनन भी असंगत है.
दिव्यांगजनों के समावेश संदर्भ में एक मुखिया का नजरिया पथ प्रर्दशक सा प्रतीत होता है ” कार्य कठिन है क्योंकि जानकारी कम है, परन्तु इच्छा और हौसला में कमी नहीं है. सुगमता एवं सुगम मतदान के लिए कुछ कदम आगे बढे हैं, धीरे-धीरे समावेशी समाज भी बनायेंगें.’’