रांची: छह दशकों से चली आ रही परंपरा इस वर्ष खत्म हो जाएगी. इसके साथ झारखंड विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय को काई प्रतिनिधि नजर नहीं आएगा. देश के 12 अन्य राज्यों की विधानसभा में भी यही स्थिति देखने को मिलेगी. लोकसभा में भी इस समुदाय के दो नामित सदस्यों को जगह नहीं मिलेगी. सरकार ने इस समुदाय के मनोनयन वाले इस कानून को समाप्त कर दिया है. इससे संबंधित 126 वीं संविधान संशोधन विधेयक 12 दिसंबर को राज्यसभा में पास हो चुका है.
इस संशोधन के तहत लोकसभा और देश भर की विधानसभा सीटों के लिए एससी-एसटी के आरक्षण को अगले 10 वर्षों (26 जनवरी 2020 से) तक के लिए बढ़ा दिया गया है. हालांकि एंग्लो इंडियन समुदाय को नामित किये जाने वाले प्रावधान को विस्तार नहीं दिया गया. इससे उक्त प्रावधान 25 जनवरी को स्वत: निरस्त हो जायेगा.
विभिन्न हिस्सों में रहे हैं एंग्लो इंडियन
एंग्लो इंडियन समुदाय के लोग देश के विभिन्नि हिस्सों में रहते हें. इस समुदाय को 1952 से यह आरक्षण मिला हुआ था. लोकसभा और 13 राज्यों की विधानसभाओं में इनके मनोनयन के प्रावधान का आधार भी यही था.
विधयेक पर बहस के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 1951 में एंग्लो इंडियन की आबादी करीब 1.11 लाख थी, जो अब सिर्फ 296 रह गयी है. यह बिल 10 दिसंबर को पहले लोकसभा और 12 दिसंबर को राज्यसभा से पास हो गया. विधेयक के पास होने के कारण इस समुदाय को मिला आरक्षण खत्म हो गया.
इन राज्यों में प्रावधान
झारखंड (पहले बिहार), आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल.