रांची: एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है. कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब तक के समय को उत्तरायण कहते हैं. अर्थात देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि सूरज थोड़ी उत्तर दिशा की तरफ से उदित हो रहे हों और दिन बड़ा होने लगता है. तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इसमें सूरज की स्थिति यानी सूर्योदय के समय सूर्य थोड़ा दक्षिण की तरफ प्रतीत होते है. इस तरह दक्षिणायन में दिन की छोटा होता है और रातें बड़ी जैसा कि शरद ऋतु में होता है.
इस प्रकार यह दोनों अयन 6-6 माह के होते हैं. शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है. उत्तरायण के समय दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं.
जब सूर्य उत्तरायण होता है उत्तरायण काल में गृह प्रवेश, यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है.
दक्षिणायन का प्रारंभ 21/22 जून से होता है. 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है. यह समय देव रात्रि होती है. दक्षिणायन में रात लंबी और दिन छोटे होते हैं. दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुक जाता है. दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं. परन्तु तांत्रिक प्रयोगों के लिए यह समय सही माना जाता है.
सूर्य दक्षिणायन होने के समय पूजा-पाठ रोगों का समन करने के लिए लाभदायक होता है. सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश का पर्व मकर संक्रांति है. पुरानी कथाओं के अनुसार जब भीष्म मृत्यु शैया पर लेटे थे तो मां गंगा अवतरित हुई थी. इसी दिन से माघ स्नान का भी महत्व है. सूर्य के उत्तरायण होने पर पूजा पाठ, गृह प्रवेश और सिद्धियां करने में फायदा होता है.