रांची: कोल इंडिया को आने वाले दिनों में कुछ और खदानें मिल सकती है. कंपनी के उत्पादन लक्ष्य के मद्देनजर ऐसा हो सकता है. केंद्रीय कोयला मंत्री ने भी इसके संकेत दिये हैं. फिलहाल कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों के पास 463 कोयला ब्लॉक हैं. सरकार ने हाल ही में कंपनी को 16 नए कोयला ब्लॉक आवंटित किए हैं.
कंपनी मजबूत बनाने के लिए कटिबद्ध
केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी का कहना है कि केंद्र सरकार अपनी कोल इंडिया को मजबूत बनाने एवं उसका विस्तार करने के लिए कटिबद्ध है. इन्हीं प्रयासों के तहत कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल ही में कंपनी को 16 नए कोयला ब्लॉक आवंटित किए हैं. इस आवंटन के साथ कोल इंडिया के पास अब 463 कोयला ब्लॉक हो गए हैं. कंपनी का खनन योग्य कोयला रिजर्व बढ़कर 52,000 मिलियन टन (एमटी) हो गया है.
100 वर्षों तक बिजली निर्माण संभव
वित्तीय वर्ष 2018-19 में कोल इंडिया ने 606 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया था. इसमें 488 मिलियन टन कोयले की सप्लाई बिजली सयंत्रों को की गई थी. देश की तापीय बिजली की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर, कोल इंडिया के पास उपलब्ध खनन योग्य कोयला भंडार से देश में 100 वर्षों से अधिक अवधि तक तापीय बिजली बनाई जा सकती है.
1000 मिलियन टन उत्पादन लक्ष्य
कोल इंडिया को वित्तीय वर्ष 2023-24 में 1000 मिलियन टन यानी एक बिलियन टन कोयला उत्पादन करने का लक्ष्य दिया गया है. इस बारे में केंद्रीय कोयला मंत्री कहते हैं आवश्यकता पड़ने पर कोल इंडिया को और भी कोयला ब्लॉक आवंटित किए जाने सहित हरसंभव सहायता की जाएगी. कोयला क्षेत्र में कमर्शियल माइनिंग शुरू होने से कोल इंडिया के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. भविष्य में भी देश की बढ़ती हुई ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी कोयला आपूर्ति करने का मुख्य स्रोत कोल इंडिया ही बनी रहेगी.
कोयले की मांग बढ़ेगी
सरकार का लक्ष्य देश को विकास के पथ पर और भी तेजी से आगे बढ़ाने का है. जानकारों का कहना है कि इसके लिए आगामी 30-40 वर्षों में बिजली उत्पादन बढ़ाना होगा. बिजली का उत्पादन बढ़ाने के लिए कोयले की मांग भी बढ़ेगी. कमर्शियल माइनिंग का उद्देश्य इसी बढ़ी हुई मांग को पूरा करना और कोयला आयात पर देश की निर्भरता को कम करना है.
सबसे बड़ी कोयला कंपनी
कोल इंडिया विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है. कोल इंडिया अकेले भारत का लगभग 82 फीसदी कोयला उत्पादन करती है. कोयला खनन की लागत काम करने, उत्पादकता बढ़ाने एवं खनिकों की कार्य सुरक्षा को और बेहतर बनाने के लिए कोल इंडिया तेजी से अपनी खदानों में नवीनतम तकनीक से युक्त मशीनों का प्रयोग बढ़ा रही है. सीसीएल की खदानों में भी कई नई मशीनें लगाई गई है.
पुरानी हो गई है खदानें
सीसीएल प्रबंधन का कहना है कि यहां की कई खदानें पुरानी हो चुकी है. वर्षों से कोयला निकाले जाने के कारण उसमें कोयले का रिजर्व खत्म हो गया है. कंपनी की महत्वाकांक्षी परियोजना माने जाने वाली पिपरवार का रिजर्व भी कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा. यही कारण है कि कंपनी नए कोल ब्लॉग से उत्पादन पर जोर दे रही है. अभी कंपनी का फोकस लातेहार जिले में स्थित मगध और आम्रपाली परियोजना पर है.
देशभर में फैली कोयला कंपनी
कोल इंडिया की उत्पादक कंपनियां देशभर में फैली है. इसमें बीसीसीएल और सीसीएल झारखंड में स्थित हैं. ईसीएल का कुछ हिस्सा भी झारखंड में पड़ता है. इसके अलावा एनसीएल, डब्ल्यूसीएल, एसईसीएल, एमसीएल, एनईसी कोयला का उत्पादन करती है. इन कंपनियों में एसईसीएल और एमसीएल ही 100 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन करती है.