राहुल मेहता
रांची: सरसंघचालक मोहन भागवत जी के अनुसार पढ़े-लिखे और अमीर परिवार में तलाक के मामले ज्यादा होते हैं क्योंकि शिक्षा और धन-दौलत के साथ व्यक्ति में अहम भी आ जाता है. नतीजतन टकराव शुरू होता है जो तलाक का कारण बनता है. क्या वास्तव में ऐसा है या तलाक के और ही कारण है ?
विगत 30 वर्षों में भारत में तलाक के मामले लगभग 6 गुना बढ़ गए हैं. प्रति 1000 जनसंख्या में तलाक के मामले निम्नवत रहे हैं. 1998 में 0.50, 2000 में 0.90, 2005 में 1.50, 2010 में 2.00 और 2019 में 2.90. विश्व में सबसे ज्यादा तलाक के मामले मालदीव में (10.97) है इसके बाद बेलारूस (4.63) और संयुक्त राज्य अमेरिका (4.34) आते हैं. भारत में सबसे ज्यादा तलाक के मामले मिजोरम (40.8) में हैं. इसके बाद दूसरे क्रम में नागालैंड है. जहां प्रति हजार जनसंख्या में वर्ष 2016 में 8.80 मामले दर्ज किये गए थे.
राज्यवार देखा जाए तो उत्तर पूर्वी राज्य जहां मातृप्रधान समाज और जनजाति समुदाय की बहुलता है अपेक्षाकृत रूप से तलाक की दर ज्यादा है. जबकि पितृसत्तात्मक व्यवस्था वाले राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान आदि में आज भी तलाक की दर भारतीय औसत से कम है.
तलाक और अलगाव:-
ऐसे अनेक परिवार हैं जो विधिवत तलाक नहीं लेते लेकिन अलग-अलग रहते हैं. भारत में अलगाव के मामले तलाक की तुलना में तीन गुना है. इसका दो अर्थ है. पहला अनेक परिवार साथ तो नहीं रहते लेकिन सामाजिक मान्यताओं एवं अन्य कारणों से विधिवत तलाक भी नहीं लेते. दूसरा जो महिलाएं अलग होती हैं उनका पुनर्विवाह आज भी एक बड़ी चुनौती है.
भारतीय समाज में अनेक सामाजिक मानदंड रिश्तों को निर्धारित करते हैं. आदिकाल से यहां पति परमेश्वर माना गया है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि जिस घर में लड़की की डोली जाती है उस घर से उसकी अर्थी ही निकलती है. आज भी अनेक परिवार इन मानदंडों में खुद को जकड़ा पाते हैं. इस बेड़ी के कारण अधिकतर महिलाएं रिश्तों को निभाती हैं. अधिकतर खुशी से, तो कुछ मजबूरी वश, सब कुछ सहते हुए, रिश्ते का बोझ ढ़ोते हुए. क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है. वे इतने सशक्त नहीं हैं कि अपनी जिंदगी के लिए सामाजिक बेड़ियों को तोड़ सके या उन्हें लगता है कि अलगाव का परिणाम इससे भी बुरा हो सकता है.
तलाक के प्रमुख कारण:-
सामाजिक सशक्तिकरण एवं शिक्षा ने महिलाओं के मजबूरी को अवश्य कम किया है. वे अपनी जिंदगी को अपना अधिकार समझ एक सीमा तक ही सब कुछ सहने को मजबूर हैं. अति होने पर मजबूरी वश ही सही अलगाव का रास्ता चुनने को बाध्य होती हैं. शराब, आर्थिक तंगी, विवाहेत्तर सम्बन्ध जैसे मामले पहले भी थे. परन्तु तलाक के मामले निम्न कारणों से बढ़े हैं –
- संयुक्त परिवार के कम होने के कारण सामाजिक बंधन का ताना-बाना कमजोर होना
- महिला सशक्तिकरण के कारण अधिकार के पति जागरूक होना
- शिक्षा के कारण महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता
- प्रेम विवाह के कारण एक दूसरे से अपेक्षाओं में वृद्धि और छोटी से भी समस्या पर सामंजस्य में कमी
- पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण अहम् को चुनौती एवं आपसी टकराहट में वृद्धि
- सामाजिक मानदंडों को चुनौती एवं बदलाव
सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने जो बातें कही हैं वह आंशिक रूप से सत्य प्रतीत होती हैं. तब आखिर इसका निराकरण क्या है ? क्या महिलाओं को शिक्षा बंद कर देनी चाहिए या उनका सशक्तिकरण प्रक्रिया रोक देनी चाहिए या फिर पुरुषों को अपने विशेषाधिकार और अहम त्याग महिला सशक्तिकरण की दिशा में सहयोग प्रदान करना चाहिए ? देश में महिला सशक्तिकरण के लिए एक वर्ग महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहा है जबकि “फोरम टू इंगेज मेन” जैसे फोरम पुरुषों को संवेदनशील बनाने के लिए प्रयासरत है. जिससे आपसी टकराव कम हो और परिवार ज्यादा खुशहाल हो. दूसरे शब्दों में तलाक के मामले बढ़े हैं लेकिन इसका कारण महिलाएं नहीं पुरुष की मानसिकता और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के तहत समाजिक मानदंड हैं. बदलाव की जरूरत भी यहीं है.