तमिलनाडु: तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयारामन जयललिता का राजनीतिक उदय वहां के मशहूर द्रविड़ आंदोलन से हुआ था. लेकिन जब वे पार्टी प्रमुख बनी तब उन्होंने इस आंदोलन के दौरान बनाए गए लगभग सभी बड़े नियम को तोड़ने की कोशिश की.
इसकी वजह उनका एक साथ राज्य के गरीब मतदाताओं के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ जुड़ाव पैदा करने की अद्भुत क्षमता थी. जानती थी तमिलनाडु के लोगों की मन की बात इसके जरिए वे जितनी कुशलता से तमिलनाडु के जनमानस के मन की थाह ले सकी वो किसी और के बस की बात नहीं थी.
अक्सर उनके विरोधी एम.करुणानिधि ही नहीं बल्कि उनकी अपनी पार्टी के नेता और मीडिया भी उनके अगले कदम की प्रतीक्षा ही कर रहे होते थे और जयललिता कुछ नया कर जाती थी. अंतिम सांस तक किया संघर्ष संस्कृत में जयललिता के नाम का मतलब होता है, ऐसा इंसान जो ‘हंसते-खेलते विजेता’ बन जाता है.
अपने स्वभाव के अनुसार, अपने अंतिम दिनों में भी वे अपोलो अस्पताल के बिस्तर से सभी को असमंजस में डाले हुईं थी. मरने से पहले अंतिम सांस तक उन्होंने संघर्ष किया. कई राजनीतिक प्रतिमान ध्वस्त किए तमिलनाडु ही नहीं भारतीय राजनीति की परिपाटी के अनुसार भी जयललिता ने तीन नए प्रतिमान गढ़े.
उन्होंने तीन स्थापित नियमों- राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा, ब्राह्मणों की बहुलता पर चोट किए और काफी हद तक तार्किक राजनीति की. उन्होंने अपने द्वारा उठाए गए हर राजनैतिक कदम में स्थापित संकीर्ण सोच की उपेक्षा की.डीएमके जब इस समय स्वर्गीय ई.वी.रामास्वामी नायकर द्वारा बनाए जस्टिस पार्टी की स्थापना के सौ साल पूरे होने की जश्न की तैयारी में है.
जस्टिस पार्टी ही आगे चलकर द्रविड़ कजघम पार्टी बन गई. नायकर एक नास्तिक थे, जिन्होंने ब्राह्मणवाद की खिलाफत की थी. उनकी पार्टी राज्य के गैर-आर्यन दक्षिण समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी. कर्नाटक से तमिलनाडु का सफर डीएमके का गठन स्वर्गीय अन्नादुरई ने किया था.
डीएमके, द्रविड़ कजघम पार्टी का ही बदला हुआ रूप था. एम.जी.रामाचंद्रन जो कई तमिल फिल्मों में जयललिता के साथी कलाकार थे और बाद में उनके राजनीतिक गुरु बने, वे अन्ना की मौत के बाद करुणानिधि के नेतृत्व वाली डीएमके पार्टी से अलग हो गए.
उन्होंने अपनी अलग पार्ट का गठन किया, जिसका नाम एआईएडीएमके था. एमजीआर का जन्म केरल में हुआ था और जयललिता की जड़ें कर्नाटक के मैसूर प्रांत के मेलुकोटी गांव के अयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था. दोनों ने ही मिलकर बड़े ही संयम और आत्मविश्वास के साथ पार्टी का नेतृत्व किया.
उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि डीएमके पार्टी ने सत्ता की अपनी यात्रा हिंदी विरोधी स्टैंड से लेकर तमिल अभिमान के बलबूते किया था. इतना ही नहीं ये लोग संस्कृत और संस्कृत भाषा के समर्थकों के विरोधी भी थे. डीएमके की राजनीति काफी हद तक पॉपुलिस्ट थी, जो सड़क पर चलने वाले आम आदमी को लुभाती थी. जबकि जयललिता उसके ठीक उलट थी.
तमिलनाडु से बाहर एक ब्राह्मण परिवार में जन्मीं जयललिता एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी लिखी कम बोलने वाली महिला थीं. वो एक मर्दवादी और महिला विरोधी माहौल में अकेली थी. महिलाएं, किसान और थेवर समुदाय थे राजनीतिक रीढ़ जयललिता ने अपनी राजनैतिक शैली में कुछ चीजें अपने राजनैतिक गुरु एमजीआर से सीखीं और कुछ चीजें उन्होंने अपनी खुद की डाली. महिलाएं, किसान और थेवर समुदाय के लोग एआईएएमडीके की राजनीति की रीढ़ हैं. इसी वजह से राज्य के पिछड़े थेवर समुदाय के बीच एआईएडीएमके ने अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है.
महिलाओं और थेवर समुदाय में गहरी पैठ स्वभाव से धार्मिक माना जाने वाले थेवर समुदाय ने जयललिता का आगे बढ़कर समर्थन किया, क्योंकि जयललिता के रूप में उन्हें एक ऐसा नेता मिला, जो बड़ी खुशी से पूजा-पाठ और धार्मिक कर्मकांड में शामिल होता था. उनकी सफलता की वजह तमिलनाडु के हर गली चौराहे पर स्थित मंदिरों से पता लगाया जा सकता है. यहां महिलाएं ज्यादा धार्मिक हैं. जयललिता की खास दोस्त शशिकला नटराजन भी थेवर समुदाय से ही आती हैं.
हालांकि, उन्हें बाद में पार्टी के काम-काज से दूर कर दिया गया था. ओ. पन्नीरसेल्वम जो जयललिता के सबसे नजदीकी सहयोगी रहे हैं, वो भी थेवर समुदाय से हैं. जयललिता ने जितने भी लोककल्याण कार्यक्रम चलाए, उनमें खासतौर पर महिलाओं को ध्यान में रखा गया है. एमजीआर ने जहां स्कूलों में मिड-डे मील स्कीम की शुरुआत की वहीं जयललिता ने गरीबों के लिए सस्ती अम्मा कैंटीन चलाई.
पिछले चुनावों में उनकी जीत की एक प्रमुख वजह उनके द्वारा महिलाओं के लिए शुरु की गई स्कूटर सब्सिडी और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए शुरू किया गया स्पेशल मैटरनिटी स्कीम है. जयललिता का एक बहुत बड़ा समर्थक वर्ग किसान है, जिनके लिए उन्होंने कावेरी नदी से ज्यादा पानी पाने के लिए अदालतों में भी लंबी लड़ाईयां लड़ी. अनुभव से हासिल की प्रशासन चलाने की क्षमता इतना सबकुछ करते हुए भी नौकरशाही को कैसे चलाया जाए, जयललिता अच्छी तरह से जानती थी.
हालांकि, अपने परिवार को चलाने के लिए उन्हें अपने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में आना पड़ा. लेकिन चेन्नई के कुलीन चर्च पार्क के कॉन्वेंट स्कूल का उनका शानदार रिकॉर्ड राजनीति में भी उनके काम आता रहा. यही वो वजह है जिस कारण वे प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारी फाइलों की जिम्मेदारी को बखूबी निभाती रही. लेकिन ये सब करते हुए भी वे जानती थी कि उन्हें अपना ग्लैमर किस तरह से बरकरार रखना है. फिर चाहे राजशाही तरीके से महलनुमा घर में रहने की बात हो या कारों के काफिले में चलने की या फिर अपने गोद लिए बेटे की शादी में पानी की तरह पैसा बहाने की.
इन सबकी वजह से वो जनता के दिलो-दिमाग पर छायी रहीं और उनका धाक जमा रहा. भ्रष्टाचार के कई मामलों में फंसने और थोड़े समय के लिए जेल जाने के बाद भी न तो उनकी जीवन शैली में कोई फर्क आया न ही जनता के दिलों में उनकी जगह बदली. इसका सबसे हालिया उदाहरण पिछले विधानसभा चुनावों में उनका दोबारा सत्ता हासिल करना है.
ये दिखाता है कि जयललिता का तमिलनाडु के लोगों के साथ एक असाधारण जुड़ाव है, जो जाति, धर्म, भाषा और समानतावादी, समाजवाद जैसे राजनीति के पारंपरिक सोच से कहीं ज्यादा है. रहस्य और रहस्यमयी होना उनकी राजनीति की मुख्य पहचान है.