रांची: विधायक सरयू राय ने कहा है कि पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीईटी) में हुई बाघिन की मौत के असली कारण को दबाने के लिये वन विभाग के अधिकारियों ने नियमों और आदेशों की धज्जियां उड़ायी है. तथ्य पर पर्दा डालने का प्रयास किया है. यही कारण है कि प्रावधान होने के बाद भी कमेटी से जांच नहीं कराई गई.
उन्होंने मुख्यमंत्री से ऐसे लोगों पर जिम्मेदारी सुनिश्चित कर कार्रवाई करने की मांग की है.
राय ने कहा कि राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के निर्देश पर झारखंड सरकार के वन विभाग के पीसीसीएफ और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के स्तर से 7 फरवरी, 2012 को एक अधिसूचना निकाली थी. इसमें उल्लेख है कि यदि किसी कारण से पीटीआर में बाघ/बाघिन की मौत हो जाती है, तो उसकी जांच तीन सदस्यों की एक विशेषज्ञ टीम करेगी.
टीम में डॉ. डी.एस श्रीवास्तव, मेदिनीनगर, स्थानीय सरकारी पशु चिकित्सक और नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान के विभागाध्यक्ष को शामिल किया गया है.
राय ने कहा कि इस अधिसूचना के अनुसार मौत के बाद बाघ/बाघिन का शव तब तक डीप फ्रिजर में रखा रहेगा, जब तक उपर्युक्त विशेषज्ञों की स्वतंत्र टीम जांचकर यह पता नहीं लगा लेती है कि उसकी मौत का कारण क्या है. इसके बाद यही टीम मौत के कारणों का विश्लेषण कर प्राधिकार को रिपोर्ट देगी.
इस मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने जांच टीम के सदस्य डी.एस श्रीवास्तव को बताये बिना मृत शव को जला दिया. पता नहीं कि अन्य दो भी जांच के समय वहां थे या नहीं. ऐसा करना वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम यमकों प्रासंगिक नियमों-निर्देशों का घोर उल्लंघन है. इस संबंध में वन विभाग के उच्च अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए.
राय ने कहा है कि वास्तव में राज्य सरकार का वन विभाग विगत 5 वर्ष से घोर अनियमित तरीके से चल रहा है. उच्च स्तर पर मनमाना निर्णय होते रहे हैं. जिस तरह गत विधान सभा चुनाव का परिणाम आया उसी दिन चुनाव आदर्श आचार संहिता लगे रहने बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक अपेक्षाकृत कनीय अधिकारी को राज्य का तदर्थ पीसीसीएफ बनाने का आदेश कर दिया. इसी तरह एक योग्य अधिकारी को पीसीसीएफ वाइल्ड लाईफ पद से हटा दिया.
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