आशका पटेल
झारखंड, 9 जुलाई : झारखंड में विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच धरातल पर स्थिति उतनी बेहतर नहीं हो पायी है । और शायद यहां की भौगोलिक परिस्थिति और प्रशासनिक उदासीनता सरकारी महकमा की कार्यशैली के साथ साथ जन जागरूकता का भी अभाव है और व्यवस्था में अभी भी सुधार की गुंजाइश भी है । राज्य के कुछ समस्याओं को दूर करने के लिये सरकारी स्तर पर सराहनीय कार्य भी हुए है लकिन कई मुद्दों पर राजनीतिक दलों के साथ-साथ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार भलें ही बेहतर विकास की बात कर रही है, जबकि सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां करती है ।
सामाजिक मुद्दों पर गोलबंदी कर आवाज बुलंद करने वाली दयामणि बारला की सोच है कि झारखंड में रहने वाली आदिवासी महिलाओं आज भी अपना विकास को लेकर तरसते नजर आ रही हैं । चाहे पलायन का मुद्दा हो, शिक्षा की जरूरत हो या राज्य में अपनी अलग पहचान बनाने की जद्दोजहद तमाम गंभीर समस्या पर समाजसेवी दयामणि बारला ने बी.एन.एन भारत से बातचीत करते हुये कहा कि वह लगातार महिलाओं की समस्याओं को लेकर भी सजग़ रही हैं।
बारला ने राज्य में आदिवासी महिलाओं की समस्या को एक बड़ा मुद्दा मानते हुये कहा कि महिलाओं की समस्या के समाधान के बिना राज्य के समुचित विकास का सपना अधुरा है, और राज्य में आदिवासी महिलाओं की स्थिति बेहतर नही हो पायी है । पंचायत चुनाव होने और महिलाओं की भागीदारी से भी महिलाओं का उत्थान अपेक्षा के अनुरुप नहीं हुआ है ।
शायद इसका एक कारण ये भी है कि झारखंड राज्य में आज तक कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं बनी है । उन्होंने बताया कि उपभोक्ता वादी जो संस्कृति के कारण भी आदिवासी समाज की महिलाओ पर पड़ा है , जो कि इस समाज के लिये सही नहीं है । क्योंकि लोग आपस में समय नहीं बिता पा रहे और विर्मश प्रभावित करने में स्मार्टफोन भी एक बड़ी वजह है, जिससे परिवारों में दूरिया उत्पन्न हो गयी है । इसलिये अगर समाज में महिलाओं को आगे आना है तो महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ाने की जरूरत है साथ ही बताया कि सत्ता और संसाधन के भी द्वारा महिलाओं के लिये खोलना होगा तभी आदिवासी महिलाएं आगे आ कर अपनी पहचान बना सकेंगी ।