रांची: अंग्रेज चले गये लेकिन गुलामी की अंतिम निशानी खास महाल सात दशक बाद भी दर्द दे रहा है. आजादी के बाद भी सरकार अंग्रेजो की बनाई वेवस्था को खत्म नहीं कर पाए है. खास महाल की जमीन झारखंड के जहां लोगों के लिए गले की फांस बन गई है, वहीं पदाधिकारियों के लिए चांदी का कटोरा.
खास महाल की जमीन पर वषोंर् से रहने वाले या व्यवसाय करने वाले लोग मालिकाना हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन स्थिति जस की तस है. यहां तक की लीज का नवीकरण भी टेढ़ी खीर है.
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क्या है खास महाल
ब्रिटिश शासनकाल में हजारीबाग के बड़े भू-भाग पर लार्ड कार्नवालिस ने स्थायी भूमि व्यवस्था लागू की थी. कुछ क्षेत्रों में भूमि का प्रबंध अस्थायी रूप से एक निश्चित समय के लिए किया जाता था. कुछ ऐसी भी भूमि थी जिसका प्रबंध सरकार की ओर से इस तरह की जाती थी जैसे वह स्वयं जमींदार हो. ऐसी ही भूमि को खास महाल कहा जाता है. खास महाल की जमीन दो प्रकार के हैं. एक पेटी स्टेट और दूसरा केसर हिंद.
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पेटी स्टेट
पेटी स्टेट वह भूमि है जो अंग्रेजों के द्वारा जमींदार को दिया गया और फिर जमींदार ने उस जमीन को लीज पर लोगों को दे दिया. वर्षों से खास महाल की जमीन पर लोग घर बनाकर रह रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस जमीन पर मालिकाना हक नहीं मिला है.
केसर हिन्द
इसे शुद्ध रूप में केशर ए हिन्द कहा जाता है. अंग्रेज खुद को और कुछ गणमान्य लोगो को केशर ए हिन्द की उपाधि से नामजते थे. इस उपाधि के साथ उनके नाम से कुछ जमीन भी दी जाती थी इस प्रकार के जमीन सरकारी और निजी हो सकती है. यह जमीन केंद्र सरकार के अधीन होता है जिले के कमिश्नर इसके मालिक होते हैंपरंतु इसकी रसीद नहीं काटी जाती है.
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बैंक से व्यवसायियों को नहीं मिल पाता लोन
खास महाल की जमीन पर व्यवसाय का विस्तार नहीं हो पाया है तो इसके पीछे खास महाल की जमीन पर वर्षो से रह रहे व्यवसायियों को मालिकाना हक नहीं मिल पाना है. व्यवसाय के विस्तार के लिए बैंक कारोबारियों को लोन नहीं देता है. बैंक लोन इसलिए नहीं देता है कि व्यवसाय सरकारी जमीन पर चल रहा है. सरकारी जमीन अर्थ यह है कि इस जमीन पर रहने वाले लोग जमीन का मोटेशन या रजिस्ट्री नहीं करा सकते हैं. केवल पावर ऑफ एटॉर्नी दिया जाता है जो कानूनी रूप से वैध नहीं है.
कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं किया जाता है रिन्यू
राज्य के कई खास महाल जमीन के विबाद में हाइकोर्ट ने लीज को रिन्यू करने का आदेश देने के बाद भी खास महाल अधिकारियों के कानो पर जु तक नहीं रेंगता. इस बारे में खास महाल के जानकारों का कहना है की ” खास महाल को रिन्यू नहीं कर इन पदाधिकारियों ने सरकार को अबतक करोड़ो का घाटा पहुचाया है. सिर्फ उन्ही लोगों का जमीन रिन्यू हो पाया है जिनकी पहुच ऊपर तक है, बाकी आम जन का कोई सुनने वाला नहीं”
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हजारीबाग में 130 एकड़ सरकारी जमीन पर है अतिक्रमण
लगभग 130 एकड़ जमीन में से आधी जमीन पर आंशिक और पूर्ण रुप से अतिक्रमण है. वर्षो से इन सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा बना हुआ है. जिनको खाली कराने की कोशिश समय-समय पर होती रहती है. लेकिन इस बार प्रशासन ज्यादा गंभीर दिख रहा है.
बताते चलें कि राज्य में खासमहल प्रकृति की 58751 एकड़ में जमीन है. 10518 लीजधारकों के नाम से संबंधित भूमि बंदोबस्त है. इनमें 9562 लीजधारक आवासीय श्रेणी में आते हैं. सरकार के बार-बार आदेश के बावजूद लीज रिन्यूअल के लिए लगभग 700 लीजधारकों ने ही राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग को आवेदन दे रखा है.