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बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

राहुल मेहता

रांची: बिनोद का चेहरा गुस्सा से तमतामा रहा था. वह बच्चों और पत्नी को डांटे जा रहा था. उसके नाराजगी का वजह बेटे का परीक्षा में कम अंक लाना था. सुन-सुन कर अर्पिता का सब्र का बांध भी टूट गया और वह बोल उठी. “आपका क्या है? जब रिजल्ट निकले तो गुस्सा करना और दो-तीन दिन बच्चों को डांट-डपट करना. उसके बाद बच्चों के पढ़ाई की कोई निगरानी नहीं. अच्छे परिणाम के लिए साल भर बच्चों पर ध्यान देना होता है.” बेशक शब्द अर्पिता के थे लेकिन कहानी घर-घर की थी.

बेहतर निगरानी

निगरानी का मतलब कभी-कभार पूछ-ताछ और डांट-डपट मात्र नहीं. यह उचित विकास, संभावित खतरों से संरक्षण और अवांछित व्यवहार में सुधार हेतु बच्चे के जन्म से वयस्क होने तक की एक अनवरत प्रक्रिया है. बच्चे के विकास के साथ-साथ निगरानी का तरीका भी बदलता जाता है. शैशवावस्था का अत्यधिक संरक्षण क्रमशः किशोरावस्था तक पर्यवेक्षण में बदल जाती है. यदि उचित निगरानी के अभाव में बच्चे का उचित विकार नहीं हो पाता तो अत्यधिक अनुशासन और निगरानी में पले-बढ़े बच्चों को जब स्वत्रंतता मिलती है तो वे अक्सर उचित निर्णय नहीं ले पातें और उनके लक्ष्य से भटक जाने की संभावना बढ़ जाती है. अतः निगरनी का उद्देश्य बच्चों का समुचित और सर्वांगीण विकार के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाना भी होना चाहिए.

बेहतर निगरानी हेतु अभिभावकों की भूमिका

  • प्रत्येक बच्चा अलग होता है, उनकी आवश्यकताएं, व्यक्तित्व और सहनशीलता भिन्न होती है, इसका ध्यान रखें.
  • अपने बच्चे के व्यवहार और भावनाओं पर ध्यान दें, उनसे संवाद उनके व्यक्तित्व के अनुरूप करें.
  • सीमा निर्धारित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे नियमों का पालन कर रहे हैं.
  • यदि बच्चे कुछ गलती करते हैं तो डांटने के बजाय उन्हें गलती का अहसास करा गलती सुधारने में मदद करें
  • अनावश्यक मदद के बजाय परिस्थिति अनुसार बच्चे को समस्या के समाधान हेतु मदद करें.
  • बड़े बच्चे की निगरानी में कुछ बुनियादी सवाल पूछना शामिल है जैसे – मेरा बच्चा कहाँ है? किसके साथ है? क्या कर रहा है? आज उसका व्यवहार बदला- बदला सा क्यों है?(आदि).
  • हिंसा वाली फिल्म, खेल और मोबाइल पर नियंत्रण एवं नजर रखें. रात को बच्चे को मोबाइल न दें.

संभावित खतरों की पहचान और समाधान

अंशुता को कभी विद्यालय जाने के लिए तैयार होने को कहना नहीं पड़ता था. परन्तु पिछले कुछ दिनों से वह समय पर तैयार नहीं हो रही थी. आज जब मां ने उसे शीघ्रता के लिए कहा तो उसने बताया कि उसके सिर में दर्द है वह विद्यालय नहीं जाएगी. दवा से पहले उसे देर रात तक टीवी देखने के लिए डांट मिल गयी. दवा लेने के बावजूद दिन में उसका उदास चेहरा देख मां को कुछ शक हुआ. बहुत देर तक घुमा-फिरा कर कुरेदने पर अंशुता रो पड़ी. परेशानी सिर दर्द नहीं विद्यालय में उसके साथ हो रहा दुर्व्यवहार था. समस्या का समय पर पता चलने के कारण इसका विकराल होने के पूर्व ही समाधान हो गया. संभावित खतरों की पहचान के लिए अभिभावक-

  • गोद का छोटा बच्चा हो या किशोर उनके व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान दें और इसका कारण जानने का प्रयास करें
  • बच्चे के दोस्तों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों के संपर्क में रहें
  • बच्चे से ऐसा संबध बनाये कि वे अपनी परेशानी आपसे साझा करने में हिचके नहीं.
  • नियमित रूप से बच्चे के गृहकार्य, डायरी, स्कूल-बैग आदि पर निगरानी रखें
  • बच्चे को स्वत्रंता दे पर नजर बनाये रखें.
  • बच्चों को स्व-निगरानी और नियंत्रण हेतु प्रेरित करें.

अभिभावक अपनी दिनचर्या में मामूली परिवर्तन कार बच्चों की बेहतर निगरानी कर सकतें हैं. इसे अतिरिक्त कार्यबोझ समझ नजरंदाज न करें.

परवरिश सीजन – 1

बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)

बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)

पालन-पोषण की शैली (परवरिश-3)

बच्चों का स्वभाव (परवरिश-4)

अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)

उत्तम श्रवण कौशल (परवरिश-6)

तारीफ करना (परवरिश-7)

बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)

मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)

बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

किशोरावस्था में भटकाव की संभावना ज्यादा होती ह, अतः बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें (परवरिश-11)

भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)

बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)

टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)

नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)

छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)

बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)

बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)

बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)

बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)

आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)

परवरिश सीजन – 2

विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)

किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)

दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)

किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)

पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य