पृथ्वी दिवस: 1970 से हर साल 22 अप्रैल को मनाए जाने वाले विश्व पृथ्वी दिवस का सामाजिक तथा राजनीतिक महत्व ह. वैसे तो 21 मार्च को मनाए जाने वाले ‘इंटरनेशनल अर्थ डे’ को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन हासिल है, लेकिन इसका वैज्ञानिक तथा पर्यावरण संबंधी महत्व भी है. दुनियाभर में साल में दो दिन पृथ्वी दिवस मनाया जाता है (21 मार्च और 22 अप्रैल).
इसे उत्तरी गोलार्ध के वसंत तथा दक्षिणी गोलार्थ के पतझड़ के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।.लेकिन, दुनिया के अधिकांश देशों में अब 22 अप्रैल को ही ‘वर्ल्ड अर्थ डे’ मनाया जाने लगा.
हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके संरक्षण के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. ऐसे कई तरीके हैं जिससे हम अकेले और सामूहिक रूप से धरती को बचाने में योगदान दे सकते हैं. अपनी व्यस्तता में व्यस्त इंसान यदि विश्व पृथ्वी दिवस के दिन ही थोड़ा बहुत योगदान दे तो धरती के कर्ज को उतरने की कोशिस की जा सकती है.
पृथ्वी दिवस है, यदि यह खबर सोशल मीडिया में नहीं आती तो शायद ही किसी को याद भी आत. जागरूकता जगाने से पहले याद दिलाने की जिम्मेदारी भी समाचार माध्यमों के बाद सोशल मीडिया को ही उठाना पड़ती है, क्योंकि दुनिया भर में हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला पृथ्वी दिवस अब महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं बचा.
पृथ्वी बहुत व्यापक शब्द है जिसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी हैं. धरती को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिए पहल करना, न तो इसे लेकर कभी सामाजिक जागरूकता दिखाई गई और न राजनीतिक स्तर पर कभी कोई ठोस पहल की गई. धरती को बचाने का आशय है इन सभी की रक्षा के लिए पहल करना. लेकिन इसके लिए किसी एक दिन को ही माध्यम बनाया जाए, क्या यह उचित है? हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय करते रहना चाहिए.
पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम इतना तो करें कि पॉलिथीन के उपयोग को नकारें, कागज का इस्तेमाल कम करें और रिसाइकल प्रक्रिया को बढ़ावा दें.. क्योंकि जितनी ज्यादा खराब सामग्री रिसाइकल होगी, उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होगा.
तीन से पांच डिग्री तक बढ़ सकता है धरती का तापमान
ग्लोबल वार्मिंग के चलते हर आने वाला वर्ष पिछले वर्ष से अधिक गर्म होता जा रहा है. 2013 के आकलन में आइपीसीसी ने बताया था कि 21वीं सदी के अंत तक धरती का तापमान 1850 के सापेक्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है. विश्व मौसम संगठन के अनुसार यदि वार्मिंग की दर ऐसी रही तो सदी के अंत तक धरती का तापमान तीन से पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है. वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि धरती के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखना दुनिया के लिए बहुत जरूरी है. पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का मनुष्य अंधाधुंध उपयोग कर पारिस्थितिक तंत्र से छेड़छाड़़ कर रहा है, जो पर्यावरण के विनाश का संकेत है.
सदियों से किए जा रहे अत्याचार का बदला पृथ्वी अब ग्लोबल वार्मिंग के जरिये ले रही है. इससे निश्चित ही आने वाली पीढ़ी जहरीले वातावरण एवं नई-नई बीमारियों के साथ जीवन जीने को बाध्य होग. यदि पृथ्वी के तापमान बढ़ने का यही हाल रहा तो आने वाले समय में धरती पर रहना भी दूभर हो जाएगा. इस बदलाव से धरती का प्राकृतिक क्रियाकलाप तेजी से प्रभावित होगा.
दुनिया के विकसित देशों में जब तक औद्योगिक विकास प्रक्रिया चरम पर थी, तब तक उन्होंने धरती के वातावरण और लगातार बढ़ रही गर्माहट पर चुप्पी साधे रखी. लेकिन जैसे ही विकास की बयार बहने लगी, उन्होंने पर्यावरण की खराब होती हालत पर शोर मचाना शुरू कर दिया. हानिकारक गैसों को नियंत्रित करने की ठोस कवायद विकसित देशों को ही करनी चाहिए.