नीता शेखर,
रांची: वर्तमान समय आधुनिकता का दौर है. आज के लोग वेशभूषा और बातचीत से आधुनिक तो बन गये हैं पर शायद वह अपने मन की सोच को बदलना भूल गये हैं. लोगों की मानसिकता आज भी वही है.
इसका कारण परिवेश और परवरिश है, इसका एक कारण यह है भी कि उनका जन्म उन लोगों के बीच हुआ है जो पुरानी विचारधारा को मानते हैं, ऐसे माहौल में पढ़े-लिखे बच्चे आधुनिकता तो अपना लेते हैं पर उनकी मानसिक स्थिति नहीं बदलती हैं.
आधुनिक युग में लोगों की सोच छोटी होती जा रही है. आज पैसा ज्यादा हो गया है लोग ज्यादा पढ़ लिख गए हैं लेकिन पहले की तुलना में संस्कार खत्म हो गया, बहुत ही सही कहा गया है कि आधुनिकीकरण पुरानी प्रक्रिया के लिए चालू शब्द है. यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसमें कम विकसित समाज, विकसित समाजों की सामान्य विशेषताओं को प्राप्त करते हैं. आज भी दहेज के लिए बेटियों को जला दिया जाता है या मार दिया जाता है. आज भी लड़की बेबस और लाचार है. इसलिए वेशभूषा बदल लेने से आदमी आधुनिक नहीं बन जाता बल्कि जरूरत है अपनी मानसिकता को बदलने की.
आज की बेटियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी है लेकिन शादी की मामले में उनकी स्थिति आज भी वही है जो पहले थी. जब आप अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर आर्थिक मजबूती का एहसास करा देते हैं और आप सोचते हैं चलो अब बेटी के लिए कोई चिंता नहीं है. जब आप लड़का खोजने जाते है, तब पता चलता है कि आधुनिक घरों में रहने वाले लोग कितने आधुनिक हैं उनकी मानसिकता से पता चलता है आज आपकी लड़की कितना भी पढ़ जाए पर वही दहेज की समस्या सामने आ जाती है. लोग लिबास और घर तो बदल लेते हैं पर अपनी सोच नहीं बदल पाते.
आज से लगभग 2 साल पहले की बात है. मेरी दीदी की बेटी की शादी बड़े धूमधाम से हुई. लड़के के घर वालों ने कहा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. हम सब भी सोच रहे थे कि चलो बिटिया की शादी बड़ी धूमधाम से हुई. घर परिवार अच्छा मिला है. एक महीना तो बड़ी खुशी-खुशी गुजर गया पर उसके बाद तो उन्होंने जो डिमांड शुरू की, सभी आसमान से गिरे, हमारी कानून व्यवस्था भी ऐसी नहीं है कि तुरंत कार्रवाई कर सकें. चूंकी बिटिया नौकरी में थी, उसने तलाक ले लिया. आज वह खुश है.
मेरे कहने का मतलब यही है कि लिबास और रूप रंग बदलने से आदमी आधुनिक नहीं बन जाता है, बल्कि, जरूरत है सोच बदलने की. कहावत है “अधजल गगरी छलकत जाए” वैसे ही स्थिति हमारे समाज की हो रही है. एक तरफ तो अपने आप को आधुनिक समझते हैं और भीतर से पुरानी मानसिकता होती है. आज की बेटियां किसी भी बात में बेटों से कम नहीं है तो वह क्यों ऐसी बातों को अपने आप को लिफ्त करें. आज वह अपने पैरों पर खड़ी है. समाज के लोगों को बदलना है तो अपने नजरिए को बदलो. अपनी सोच को बदलो.ॉ
देश के लोग पश्चिमी सभ्यता की नकल करते हैं पर उनकी मानसिकता पर अमल नहीं करते. स्वस्थ मानसिकता स्वस्थ समाज की नींव रखती है. बचपन से ही नींव को मजबूत कर देना चाहिए. हर एक को चाहिए कि परिवार के नियम, सीख नैतिकता, मूल्य, संस्कार एवं सक्षम युवा निर्माण के लिए शिक्षित करें. जैसा हम अपने बच्चों के लिए सोचते हैं. सपने बुनते हैं. वैसे ही विचार हमें अपने सामाजिक व्यवहार में अपनाने चाहिए तभी हम सही मायने में आधुनिक कहलाएंगे.