कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष को कांग्रेस-जद(एस) के 15 बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने का निर्देश देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय बुधवार को अपना अहम फैसला सुनायेगा। इस फैसले से कर्नाटक में 14 माह पुरानी कुमारस्वामी सरकार की किस्मत तय हो सकती है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को इस मामले में सभी पक्षों की ओर से जोरदार दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कुमारस्वामी और विधानसभा अध्यक्ष ने बागी विधायकों की याचिका पर विचार करने के न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया।
वहीं, बागी विधायकों ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार बहुमत खो चुकी गठबंधन सरकार को सहारा देने की कोशिश कर रहे हैं।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारी होने के नाते उन्हें इन विधायकों के इस्तीफे पर पहले फैसला करने और बाद में उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग पर फैसला करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी गुरुवार को विधानसभा में विश्वासमत का प्रस्ताव पेश करेंगे और अगर विधानसभा अध्यक्ष इन बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं तो उनकी सरकार उससे पहले ही गिर सकती है।
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि वह विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता पर फैसला करने से नहीं रोक रही है, बल्कि उनसे सिर्फ यह तय करने को कह रही है क्या इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है। पीठ ने कहा कि उसने दशकों पहले दल-बदल कानून की व्याख्या करने के दौरान विधानसभा अध्यक्ष के पद को ‘काफी ऊंचा दर्जा दिया था और ‘संभवत: इतने वर्षों के बाद उसपर फिर से गौर करने की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता के मुद्दे पर परस्पर विपरीत दलीलें हैं और ”हम जरूरी संतुलन बनाएंगे। सत्तारूढ़ गठबंधन को विधानसभा में 117 विधायकों का समर्थन है। इसमें कांग्रेस के 78, जद (एस) के 37, बसपा का एक और एक मनोनीत विधायक शामिल हैं। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष का भी एक मत है। दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से 225 सदस्यीय विधानसभा में विपक्षी भाजपा को 107 विधायकों का समर्थन हासिल है। इन 225 सदस्यों में एक मनोनीत सदस्य और विधानसभा अध्यक्ष भी शामिल हैं।
अगर इन 16 बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाता है तो सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की संख्या घटकर 101 हो जाएगी। मनोनीत सदस्य को भी मत देने का अधिकार होता है। विधानसभा अध्यक्ष कुमार ने कहा कि वह संविधान के अनुरूप काम कर रहे हैं और अपना काम कर रहे हैं। कुमार ने कोलार जिले में संवाददाताओं से कहा, “आखिरकार, उच्चतम न्यायालय क्या फैसला देता है उसका अध्ययन करने के बाद ही मैं जवाब दूंगा।” उन्होंने कहा, “मैं केवल अपना कर्तव्य निभाऊंगा..सभी को कल तक इंतजार करना होगा।”
शक्ति परीक्षण से पहले अपने विधायकों को एक साथ रखने के लिए कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) ने अपने विधायकों को रिसॉर्ट्स में भेज दिया है। कांग्रेस ने मंगलवार को इस आशंका के बीच अपने विधायकों को शहर के एक होटल से बाहरी इलाके में एक रिसॉर्ट में भेज दिया कि उसके कुछ और विधायक इस्तीफा दे सकते हैं। न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष की उन दलीलों पर भी सवाल खड़े किये कि पहले अयोग्यता के मुद्दे पर फैसला किया जाना है। न्यायालय ने पूछा कि 10 जुलाई तक वह क्या कर रहे थे जब इन विधायकों ने छह जुलाई को ही इस्तीफा दे दिया था।
पीठ ने कहा, ”छह जुलाई को उन्होंने (बागी विधायकों) ने कहा कि उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया है। विधानसभा अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय के 11 जुलाई को आदेश देने तक कुछ भी नहीं किया।” न्यायालय ने पूछा, ”लंबित अयोग्यता मामले की क्या स्थिति है।” पीठ ने कहा, ”न्यायालय के आदेश के अनुसार वे (बागी विधायक) विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित हुए। तब उन्होंने (विधानसभा अध्यक्ष) क्यों इसपर फैसला नहीं किया। वह (विधानसभा अध्यक्ष) यह कह रहे हैं कि वह इसपर फैसला करने में समय लेंगे। इससे उनका क्या आशय है।”
कुमारस्वामी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि ये बागी विधायक ‘समूह में शिकार कर रहे हैं और विधानसभा अध्यक्ष इसको लेकर आंखें नहीं मूंद सकते क्योंकि उनका मकसद सरकार को गिराना है। धवन ने कहा, ”यह विधानसभा अध्यक्ष बनाम अदालत का मामला नहीं है।यह मुख्यमंत्री और उस व्यक्ति के बीच का मामला है जो मुख्यमंत्री बनना चाहता है और इस सरकार को गिराना चाहता है।” उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह विधानसभा अध्यक्ष को इन इस्तीफों पर फैसला करने और यथास्थिति बरकरार रखने के संबंध में अपने दो अंतरिम आदेशों को रद्द करे।
बागी विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं करके “पक्षपातपूर्ण” और “दुर्भावनापूर्ण” तरीके से काम कर रहे हैं और उन्होंने इस्तीफा देने के लिए इन सांसदों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक नियमों के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे पर “तत्काल” निर्णय लेना है और ऐसा नहीं करने के वह “नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।”
रोहतगी ने कहा, “यहां एक ऐसी सरकार है जो सदन में बहुमत खो चुकी है और यहां एक अध्यक्ष है जो इस सरकार को सहारा देना चाहता है। उन्होंने कहा कि इस्तीफा, अयोग्यता की कार्यवाही से अलग है, जो कि “मिनी-ट्रायल” के समान है। उन्होंने कहा कि इस्तीफा स्वीकार नहीं करने और अयोग्यता के मुद्दे को लंबित रखने के पीछे की समूची मंशा सत्तारूढ़ गठबंधन को व्हिप जारी करने में समर्थ बनाने के लिये है ताकि जब 18 जुलाई को विश्वास मत के प्रस्ताव को मतदान के लिए रखा जाता है, तो उनके विधायक खास तरह से कार्य करें, क्योंकि कोई भी विपरीत कार्रवाई अयोग्यता को आमंत्रित करेगी।
विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की याचिका 11 जुलाई को उनके इस्तीफे से पहले दायर की गई थी, जब वे व्यक्तिगत रूप से स्पीकर के सामने पेश हुए थे। उन्होंने कहा, “यह एक सामान्य आधार है कि इन 15 में से 11 विधायकों ने 11 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के सामने उपस्थित होकर अपने इस्तीफे सौंपे।” उन्होंने कहा, “इस्तीफा अयोग्यता की कार्यवाही को विफल करने के लिए आधार नहीं हो सकता है।”
हालाँकि, जब सिंघवी दलील दे रहे थे कि ये विधायक विधानसभा अध्यक्ष के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हुए थे, तो इसपर पीठ ने पूछा, “किस चीज ने आपको (स्पीकर) निर्णय लेने से रोक दिया जब ये विधायक इस अदालत के आदेश के बाद 11 जुलाई को आपके सामने व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा, “किस चीज ने आपको (अध्यक्ष) को यह कहने से रोका कि ये इस्तीफे स्वेच्छा से थे या नहीं?” वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, “इस्तीफे पर फैसला करने से पहले अध्यक्ष समग्र राय बना रहे थे”।
सिंघवी ने कहा कि स्पीकर का एक-पेज का हलफनामा है, जिसमें न्यायालय के उस अंतरिम आदेश को संशोधित करने की मांग की गई है, जिसके तहत उन्हें यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा गया था, ताकि वह इन विधायकों के इस्तीफे के मुद्दे पर फैसला कर सकें। जब वह दलील दे रहे थे तो पीठ ने कहा, “बहुत अच्छा। आप इस्तीफे का फैसला जल्द से जल्द करें और फिर अयोग्यता का फैसला करें।” सिंघवी ने कहा कि शीर्ष अदालत के पास इस तरह का अधिकार क्षेत्र नहीं है कि वह विधानसभा अध्यक्ष से किसी विशेष तरीके से कार्य करने के लिए कहे या इस्तीफे के मुद्दे पर समयबद्ध तरीके से फैसला करने को कहे। उन्होंने कहा कि अगर बुधवार तक कहा जाए तो विधानसभा अध्यक्ष अयोग्यता और इस्तीफा दोनों मुद्दे पर फैसला कर सकते हैं।
दिन की सुनवाई रोहतगी के पीठ से यह कहने के बाद पूरी हुई कि वह अपने अंतरिम आदेश को जारी रखने के लिये एक निर्देश पारित करे जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता के मुद्दे पर यथास्थिति बनाए रखने को कहा गया था। उन्होंने पीठ से यह भी कहा कि जब सदन की बैठक बुलाई जाए तो इन 15 बागी विधायकों को सत्तारूढ़ गठबंधन के व्हिप के आधार पर उपस्थित होने से छूट प्रदान की जाए।