रांची: एनटीपीसी की चट्टी बरियातू कोल माइंस की भेंट चढ़ रहे एक के बाद एक बिरहोर परिवार के लोग। आज फिर एक आदिम जनजाति समुदाय की महिला गीता बिरहोर की हुई मौत,इससे पहले दो मौतें हो चुकी हैं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार के दखल/नोटिस के बाद भी नही सुन रही जिला प्रशासन और एनटीपीसी। जब संयुक्त जांच कमिटी ने बिना बिरहोर परिवार को बसाए खनन श्रेयस्कर होना नही बताया तो क्यों और किसके मिलीभगत से चल रहा खनन?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी माना एनटीपीसी सीएमडी और डीसी जनजातीय समुदाय के जीवन और कल्याण से ज्यादा खनन को प्राथमिकता दी जा रही है,जो उचित नही है और इस सम्बंध में जवाब तलब भी किया है। बिरहोर कॉलोनी से महज कुछ मीटर की दुरी पर हो रहा है कोयले का खनन। ब्लास्टिंग व प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं बिरहोर परिवार। जिला प्रसाशन और कोल कम्पनियाँ हो रही हैं मालामाल और बिरहोर परिवार हैं बेहाल।
बिलुप्त हो रहे बिरहोर परिवारों को बसाने व संरक्षण की बात करती है सरकार, लेकिन सरकार की योजनाओं को चूना लगा रही जिला प्रशासन दोषियों को बचाने के लिए एक ही घिसा पीटा, रटा टाया कुतर्क दिया जाता है कि बिरहोर समुदाय को खाना दिया जाता है, ट्रेनिंग दिया जा रहा है, पर्दा गाया गया है, दवा दे रहे हैं और बिरहोर कॉलोनी में बसना नहीं चाहते। लेकिन यह नहीं बताते की क्या बिरहोर समुदाय को कॉलोनी में बसाना है कि उन्हें उनके अनुसार वातावरण/जंगल में ? ख नन से पहले उन्हें क्यों नही बसाया गया, उनकी जान-माल चिंता/सुरक्षा क्यों नही किया गया ?
डैमेज कंट्रोल करने में जुट गए हैं दोषी और दोषियों के एजेंट, कि कैसे इस मामले को निपटाया जाए।