नई दिल्ली. कहा जाता है कि सियासत में पहले से कुछ भी तय नहीं होता है. इसी तरह से सियासी समीकरण स्थिर भी नहीं होते हैं. ये ही वजह है कि झारखंड के गठन के वक्त से जोड़-तोड़ शुरू हो गई थी और राज्य के पहले मुख्यमंत्री को ही हटाकर दूसरे को गद्दी सौंप दी गई थी.
झारखंड की सियासत का इतिहास सियासी उठापटक से भरा पड़ा है. एक-दो नहीं यहां पांच-पांच बार सत्ता को लेकर उठापटक होती रही है. इतना ही नहीं एक छोटे से वक्त में झारखंड में तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है.
वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड गठन के बाद बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे.
वर्ष 2003 में उनके मंत्रियों ने बगावत कर दिया. जिसके बाद बीजेपी आलाकमान ने बाबूलाल मरांडी को हटाकर एक अन्य आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा को गद्दी सौंपी थी.
2005 में चुनाव के बाद किसी दल को बहुमत नहीं मिला. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने सरकार बनाई. शिबू सोरेन महज दस दिन तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे. उसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी.
2006 में निर्दलीय मधु कोड़ा ने अर्जुन मुंडा की सरकार गिरा दी. 19 जनवरी, 2009 को शिबू सोरेन फिर मुख्यमंत्री बने.
2009 में विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी और जेएमएम ने मिलकर सरकार बनाई. बीजेपी के समर्थन वापस लेने पर सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया. इसके बाद फिर अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. जेएमएम भी सरकार में शामिल थी.
अर्जुन मुंडा की सरकार से समर्थन वापस लेकर हेमंत सोरेन ने कांग्रेस और आरजेडी के सहयोग से सरकार बनाई.
बाबूलाल मरांडी- दो साल, चार महीने और तीन दिन.
अर्जुन मुंडा- एक वर्ष, ग्यारह महीने और 12 दिन
शिबू सोरेन- दस दिन
अर्जुन मुंडा- एक वर्ष, छह महीने और सात दिन
मधु कोड़ा- एक साल, ग्यारह महीने और आठ दिन
शिबू सोरेन- चार माह और 23 दिन
शिबू सोरेन- पांच माह और दो दिन
अर्जुन मुंडा- दो वर्ष, चार महीने और सात दिन
हेमंत सोरेन- एक साल, पांच महीने और 15 दिन
रघुवर दास ने 28 दिसंबर, 2014 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया.

