लोकसभा चुनाव में मात के बाद विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक उफ़ान लाजमी है । हर दल अपनी-अपनी दाल गलाने में लगा है ।अगर बात करें तो झारखंड नामधारी सबसे बड़े दल झारखंड मुक्ति मोर्चा को स्थानीय नीति का मुक्तिबोध सता रहा है । झामुमो के युवराज सह गुरु जी की विरासत सम्भाल रहे हेमन्त सोरेन तो अर्जुन मुंडा सरकार से स्थानीय नीति के नाम पर अलग होकर कांग्रेस की लगभग छह माह तक परिक्रमा करते रहे लेकिन जिस कांग्रेस के भरोसे मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब वह देख रहे थे उसी कांग्रेस ने इनके पसीने निकाल दिए ।कई कदावर भी इनको अपने चौखठ पर नाक रगड़वाते रहे लेकिन अन्ततः कांग्रेस के राजेंद्र सिंह ही इनके लिये किंग मेकर बन कर उभरे और सरकार बनाते ही स्थानीय नीति के जीन को ठंडे बस्ते में डाल दिया और विधानसभा चुनाव तक इस दिशा में ठोस कदम ना उठाते हुए सत्ता की मलाई खाते रहे और भाजपा के बहुमत के झटके से 2019 का चुनाव उबरने का मौका देख कर रघुवर सरकार की स्थानीय नीति को चुनावी मुद्दा बना कर नीति में बदलाव की बात कर रहे है लेकिन ये मुद्दा झारखंड की जनता को शायद ही लुभा पाए और झामुमो के बयान बाजी पर लोग विश्वास कर शायद ही वोट करें।
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प्रमुख संवाददाता: उपेन्द्र कुमार सिंह

