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जानें महिला होने के नाते आपके कानूनी अधिकार

by bnnbharat.com
January 24, 2020
in समाचार
जानें महिला होने के नाते आपके कानूनी अधिकार
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समाज में महिला उत्पीड़न, स्त्री द्वेष, महिलाओं का मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, लिंग भेद जैसी चीजें भी हो रही हैं और बहुत सी महिलाओं के लिए ये सब उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं. पर, अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो इन बाधाओं को पार करना ही होगा. भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और समानता से जुड़े कई कानून बनाए गए हैं, जो महिलाओं को सशक्त बनाते हैं. तो चलिए जानें ऐसे ही कुछ भारतीय कानूनों के बारें में जिनकी जानकारी हर महिला को होनी चाहिए.
वेतन का समान अधिकार 
समान वेतन का अधिकार हर महिला का हक है. समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता.

घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार

ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है. अगर किसी महिला के साथ घरेलू हिंसा जैसा अपराध हो रहा है तो वो खुद या उसकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.

मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार

मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) से बढ़ाकर 26 सप्ताह तक कर दिया गया है. 12 सप्ताह के लिए महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती है.
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
दुष्कर्म की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. स्टेशन हाउस ऑफिसर(SHO) के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण(Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे.

संपत्ति पर अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है.

काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है.

रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार

एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है.

 

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