Ravindranath Tagore: रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता के प्रसिद्ध जोर सांको भवन में हुआ था. इनके पिता देबेन्द्रनाथ टैगोर (देवेन्द्रनाथ ठाकुर) ब्रह्म समाज के नेता थे. रबीन्द् सबसे छोटे पुत्र थे. रबीन्द् का परिवार कोलकत्ता के प्रसिद्ध व समृद्ध परिवारों में से एक था. टैगोर ने विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जलियांवाला कांड (1919) की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा प्रदान की गई, ‘नाइट हुड’ की उपाधि लौटा दी.
भारत का राष्ट्र-गान रवीन्द्रनाथ टैगोर की ही देन है. रवीन्द्रनाथ टैगोर की बाल्यकाल से कविताएं और कहानियाँ लिखने में रुचि थी. रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति से अगाध प्रेम था. एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे.
रवीन्द्रनाथ की शिक्षा
रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्राथमिक शिक्षा सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई. इनके पिता चाहते थे कि रवीन्द्रनाथ बडे होकर बैरिस्टर बनें. इसलिए उन्होंने रवीन्द्रनाथ को क़ानून की पढ़ाई के लिए 1878 में लंदन भेजा लेकिन रवीन्द्रनाथ का मन तो साहित्य में था फिर मन वहाँ कैसे लगता! कुछ समय तक लंदन के कॉलेज विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री लिए वापस आ गए.
रवीन्द्रनाथ टैगोर का साहित्य सृजन
साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजन किया. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की सबसे लोकप्रिय रचना ‘गीतांजलि’ रही जिसके लिए 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं. भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएं हैं.
गीतांजलि लोगों को इतनी पसंद आई कि अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रैंच, जापानी, रूसी आदि विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया. टैगोर का नाम दुनिया के कोने-कोने में फैल गया और वे विश्व-मंच पर स्थापित हो गए.
रवीन्द्रनाथ की कहानियों में क़ाबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं.
रवीन्द्रनाथ की रचनाओं में स्वतंत्रता आंदोलन और उस समय के समाज की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.
सामाजिक जीवन
16 अक्तूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गया रक्षाबंधन उत्सव से ‘बंग-भंग आंदोलन’ का आरम्भ हुआ. इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया.
टैगोर ने विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जलियांवाला कांड (1919) की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा प्रदान की गई, ‘नाइट हुड’ की उपाधि लौटा दी. ‘नाइट हुड’ मिलने पर नाम के साथ ‘सर’ लगाया जाता है.
निधन
7 अगस्त, 1941 को कलकत्ता में इस बहुमुखी साहित्यकार का निधन हुआ.