प्रमुख संवाददाता – उपेंद्र सिंह की रिर्पोट
झारखंड में भी लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में बह चुकी कांग्रेस उबरती हुई दिखाई नहीं पड़ रही है ।पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय को दरकिनार कर आलाकमान द्वारा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय को बनाया जाना एक खेमे को नागवार गुजर रहा था ।और इस बात की चर्चा दबी जुबान से होने लगी थी कि डॉ अजय झारखंड विकास मोर्चा को छोड़कर आये तो परम्परागत या पुराने समर्पित कांग्रेसियों को धता बताते हुये उनको प्रदेश अध्यक्ष पद पा बैठाने को एक धता अब तक स्वीकार नहीं कर रहा है ,और भीतर-भीतर इसका आक्रोश दबी जुबान से दिख भी रहा था जो ज्वालामुखी बन कर लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद फुट पड़ा है।

राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद ऊपरी तौर पर ही सही डॉ अजय ने भी इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन बैठक करना नहीं छोड़ा है। फिलहाल ये बात भी अजय विरोधी खेमे को पच नहीं रही है और इस्तीफ़ा को महज नौटंकी बताते हुए पद छोड़ने की मांग जारी है ।
डॉ अजय पर लोकसभा चुनाव में पैसे लेकर टिकट बाटने तक का आरोप लगातार लगाये जा रहे हैं और झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले यह गुबार अध्यक्ष अजय के लिये परेशानी का बड़ा सबब भी है । शायद अजय को अभयदान भी तब तक ही मिला हुआ है कि जब तक कि राष्ट्रीय स्तर पर राहुल के बाद कोई दमदार चेहरा पद नही संभाल लेता है ।

फिलहाल उस वक्त के इंतजार में ही सुबोधकांत जैसे कई कद्दावर नेता वेट एंड वाच की स्थिति में मौन साधे हुए है और विधानसभा रण में विजय होने के लिये अध्यक्ष को बदलने की मांग पर फैसला नहीं होता है। वहीं कांग्रेस के कुछ चेहरे कांग्रेस छोड़ने का मन बना चुके है जो कि पार्टी के लिये घातक है , क्योंकि हर कांग्रेसी को पता है कि झारखंड में पार्टी के पास खोने के लिये कुछ भी नहीं है. इसलिये अगर असन्तुष्ट कार्यकर्ता के मन की बात नहीं होती है तो हासिये पर आ चुकी है ।

