रांची: झारखंड के खूंटी जिले में मुर्गी और बतख के चूजों ने महिलाओं की तकदीर बदलने में बड़ी भूमिका निभायी, जबकि पावर टिलर की मदद से छोटे और मध्यम किसानों की आय में भी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. राज्य के अति नक्सल प्रभावित खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के शिलापट गांव की कई महिलाएं बतख पालन के जरिए आत्मनिर्भर हो रही हैं. इसमें झारखंड लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) का भी पूरा-पूरा सहयोग मिल रहा है.
शिलापट गांव में कुछ वर्ष पहले तक बेरोजगारी का आलम था, थोड़ी-बहुत खेती से लोगों का किसी तरह गुजारा होता था. लेकिन, जेएसपीएलएस की मदद से गांव की समूह से जुड़ी महिलाओं ने बतख पालन शुरू किया और अब उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया है. बतख पालन में जुटी महिलाओं का कहना है कि शुरुआत में यह काम मुश्किलों भरा लगता था, लेकिन अब वे सभी प्रशिक्षित हो चुकी हैं और बतख पालन का अनुभव हो जाने से अच्छा खासा मुनाफा भी होने लगा है.
बतख पालन के व्यवसाय से स्वावलंबी बन रहे लोग
ग्रामीणों के लिए बतखों के चूजे उपलब्ध कराने का जिम्मा जेएसपीएलएस का है. जेएसपीएलएस कर्मी नागेंद्र कुमार ने बताया कि विशेष तकनीक के जरिए चूजों को करीब पंद्रह दिन बखूबी संभाला जाता है, और तब इसे ग्रामीणों को सौंपा जाता है, ताकि बतखों की मृत्यु दर को कम किया जा सके. उन्होंने कहा कि उनकी ओर से उत्तम गुणवत्ता वाले बतख की प्रजाति को ग्रामीण महिलाओं को उपलब्ध कराया जाता है, जो एक वर्ष में करीब दो सौ अंडे देती हैं. इससे न सिर्फ ग्रामीणों को पौष्टिक आहार मिल रहा है, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि हो रही है. बतख पालन का व्यवसाय शुरू हो जाने से शिलापट गांव के लोग न सिर्फ स्वावलंबी बन रहे हैं, बल्कि यह गांव अब बतख के व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है.
मुर्गी पालन का व्यवसाय अपनाकर सशक्त बन रही हैं महिलाएं
इधर, खूंटी जिले के बम्हनी गांव की महिलाएं मुर्गी पालन का व्यवसाय अपनाकर सशक्त बन रही हैं. गांव की महिलाएं आज परिवार की तरक्की मे पुरुषों की भागीदार बन रही हैं. मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू करने के बाद उनके जीवन मे बड़ा बदलाव आया है. ग्रामीण महिलाओं ने देसी मुर्गियों के साथ अधिक गुणवत्ता वाले कड़कनाथ भी पाल रखे हैं. इससे इन्हें न सिर्फ पौष्टिक आहार मिल रहा है, बल्कि उसे बेचकर ये अपनी छोटी-बड़ी जरूरतें भी पूरी कर रही हैं.
इस तरक्की में जेएसएलपीएस की भी भागीदारी है. मुर्गी के चूजे से लेकर उसके रखरखाव का प्रशिक्षण जेएसएलपीएस उपलब्ध कराता है. ग्रामीण महिलाओं को अब मुर्गी पालन का व्यवसाय फायदे का कारोबार लगने लगा है. मुर्गी पालन ने महिलाओं के भीतर कुछ करने का जज्बा भी पैदा कर दिया है.
पावर टीलर ने महिला किसानों की मुश्किलों को कम किया
खूंटी जिले के घाघरा में समूह से जुड़ी महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आया है, और यह सब हुआ है जोहार परियोजना के तहत कृषि को आधुनिक तकनीक से जोड़े जाने के बाद. अपने खेत में पावर टीलर चला रही महिलाओं का जीवन भी फर्राटे भरने लगा है. अब गांव की समूह से जुड़ी महिलाएं जमकर खेती कर रही हैं और खूब मुनाफा भी कमा रही हैं. गांव में खेतों के जोत का आकार छोटा होने से वहां ट्रैक्टर पहुंचना संभव नहीं हो पाता था. साथ ही, वह ग्रामीणों के लिए काफी खर्चीला भी होता था. पावर टीलर की जुताई पतली भी होती है, जो खेतों की सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है.
जोहार परियोजना के तहत राज्य के किसानों को आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि उनकी कृषि को उन्नत बनाया जा सके. केवल खूंटी जिले में अबतक पैंतीस सौ किसानों को इसका लाभ पहुंचाया जा चुका है. घाघरा के ग्रामीणों के आर्थिक क्रियाकलाप का प्रमुख माध्यम कृषि है. लेकिन, परंपरागत तरीके से हो रही खेती में ग्रामीणों को वाजिब मुनाफा नहीं मिल पा रहा था. लेकिन, अब इसे आधुनिक तकनीक से जोड़ दिए जाने के बाद इनके दिन बहुरने लगे हैं.